इस्तीफे के ट्रंपकार्ड से कितनी बड़ी बाजी खेल रहे हैं अरविंद केजरीवाल, 5 प्वॉइंट्स में दिल्ली की पूरी तस्वीर

अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा की घोषणा के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं. इसकी 2 वजहें भी हैं. पहली वजह दिल्ली का प्रस्तावित विधानसभा चुनाव है. दिल्ली में अब से 5 महीने बाद 70 सीटों के लिए विधानसभा के चुनाव होने हैं. जहां केजरीवाल सरकार को जनता की अग्निपरीक्षा से गुजरना है.
दूसरी वजह जेल जाने पर पद न छोड़ने वाले केजरीवाल का जेल से आते ही इस्तीफा देना है. मार्च 2024 में जब केजरीवाल जेल गए तो परंपरा के हिसाब से माना जा रहा था कि वे सीएम की कुर्सी छोड़ देंगे, लेकिन केजरीवाल ने इस्तीफा नहीं दिया.
ऐसे में अब सीएम पद से अरविंद के इस्तीफे ने यह चर्चा छेड़ दी है कि क्या कुर्सी छोड़कर केजरीवाल कोई बड़ी बाजी खेल रहे हैं?
1. केजरीवाल ने CM पद से इस्तीफा क्यों दिया?
अरविंद केजरीवाल के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की शर्तों की वजह से वे ठीक से काम नहीं कर पा रहे थे, इसलिए पद छोड़ने का फैसला किया है. हालांकि, इस्तीफे की जो इनसाइड स्टोरी है, उसके मुताबिक केजरीवाल अगर इस्तीफा नहीं देते तो दिल्ली की सरकार राजनैतिक और संवैधानिक संकट में फंस सकती थी.
दिल्ली में 8 अक्टूबर तक विधानसभा का सत्र बुलाना अनिवार्य है. अगर यह सत्र नहीं बुलाया गया तो विधानसभा भंग करने की नौबत आ सकती थी. इसी संकट से बचने के लिए केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देने की इनसाइड स्टोरी यहां पढ़िए..
2. कितनी बड़ी बाजी खेल रहे हैं केजरीवाल?
जेल से बाहर निकलते ही अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि मैं 100 गुणा ज्यादा ताकत के साथ बाहर आया हूं. इसके 2 दिन बाद ही केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल के इस इस्तीफे को ट्रंप कार्ड के रूप में देखा जा रहा है.
2013 में भी 49 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद जब 2 साल बाद विधानसभा के चुनाव हुए थे, तो केजरीवाल की पार्टी दिल्ली की 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज कर ली थी.
केजरीवाल के पास वर्तमान में इस्तीफा न देने का विकल्प सीमित था. ऐसी स्थिति में उन्होंने इस्तीफा देकर बड़ी बाजी खेल दी है.
3. इससे आम आदमी पार्टी को फायदा होगा?
दिल्ली चुनाव में यह 2 चीजों पर निर्भर करेगा. पहला, नया मुख्यमंत्री कौन बनेगा और दूसरा केजरीवाल और बीजेपी की रणनीति क्या है? दिल्ली के चुनाव को अरविंद केजरीवाल अगर इमोशनल बना पाएंगे तो आप को इसका फायदा मिलेगा. 2015 में आप ने इमोशनल आधार पर ही दिल्ली के इतिहास में सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. केजरीवाल के हटने के बाद बीजेपी अब किस तरह की रणनीति के साथ मैदान में आती है, इससे भी काफी कुछ तय होगा.
मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, यह भी आप के परफॉर्मेंस पर निर्भर करेगा. चुनाव तक अगर बनने वाला नया मुख्यमंत्री मजबूती के साथ पार्टी के लिए फील्डिंग करे तो यह आप के पक्ष में जा सकता था. अगर झारखंड की तरह चुनाव से पहले कुछ खटपट हुई तो नुकसान की भी संभावनाएं है.
दिल्ली की बात छोड़ दी जाए तो केजरीवाल के पद छोड़ने से आप को अन्य राज्यों में जरूर फायदा मिल सकता है. अरविंद केजरीवाल अभी आप के राष्ट्रीय संयोजक हैं और उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है.
दिल्ली से बाहर केजरीवाल अभी तक पंजाब, गुजरात और गोवा में पार्टी का विस्तार कर चुके हैं. आगामी दिनों में महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में विधानसभा के चुनाव हैं, जहां पार्टी और मजबूती से लड़ सकती है.
4. केजरीवाल के पद छोड़ने से नुकसान भी होगा?
फिलहाल, इसकी गुंजाइश कम दिख रही है. भारत की राजनीति में इमोशन एक बड़ा मुद्दा रहा है. केजरीवाल इस्तीफा देकर इमोशन कार्ड ही चल रहे हैं. दिल्ली शराब घोटाले में जेल से बाहर आने के बाद उन्होंन मंच से भी कहा कि मुझे शुरू से ही काम करने से रोका गया है फिर भी मैंने दिल्ली वालों का काम रुकने नहीं दिया. केजरीवाल आने वाले दिनों में इस मुद्दे को और तूल देंगे.
दिल्ली में सस्ती बिजली, शिक्षा और पानी बड़ा मुद्दा रहा है. केजरीवाल की पार्टी इस मुद्दे के सहारे ही राजनीति करती रही है.
केजरीवाल के पद छोड़ने से आप को नुकसान की संभावनाएं इसलिए भी नहीं है, क्योंकि उनके जेल में रहते पार्टी के भीतर कोई बड़ी टूट नहीं हुई. पूरी पार्टी इस घोटाले को साजिश बताती रही.
5. केजरीवाल के इस्तीफे से कांग्रेस का क्या होगा?
अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देकर पूरी लड़ाई को बीजेपी वर्सेज आप कर दिया है. दोनों पार्टियों की लड़ाई में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होने वाला है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसे-जैसे मजबूत हुई है, वैसे-वैसे कांग्रेस का जनाधार कमजोर हुआ है.
मसलन, 2013 में आप 28 सीटें जीती और उसका वोट प्रतिशत 29 के आसपास था. कांग्रेस को इस चुनाव में 8 सीट और 24.6 प्रतिशत वोट मिले थे. 2015 में जब केजरीवाल को बड़ी बढ़त मिली तो कांग्रेस सिमट गई.
2015 में आप का वोट प्रतिशत 29 से बढ़कर 51 पर पहुंच गया, जबकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में गिरावट आई. कांग्रेस को 2015 में सिर्फ 9 प्रतिशत वोट मिले.
ऐसे में अब केजरीवाल के इस्तीफे से आप फिर से मजबूत होती है, तो यह कांग्रेस के लिए संकट भरा होगा.

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