ऐसा लगता है कि शासकों का आदेश ही संविधान है… यूपी में कांवड़ यात्रा नेम प्लेट विवाद पर बोले मौलाना अरशद मदनी

उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों के नेम प्लेट लगाने के आदेश पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है. अब जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी यूपी सरकार पर हमला बोला है. मदनी ने इसे इसे धर्म की आड़ में राजनीति के नए खेल की संज्ञा दी और कहा कि यह एक भेदभावपूर्ण और साम्प्रदायिक फैसला है. सरकार के इस फैसले से देश विरोधी तत्वों को लाभ उठाने का मौका मिलेगा साथ ही साथ राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को भी गंभीर क्षति पहुंच सकती है. जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कल अपनी कानूनी टीम की एक बैठक बुलाई है. इस बैठक में असंवैधानिक और अवैध आदेश के कानूनी पहलुओं पर चर्चा की जाएगी.
मौलाना अरशद मदनी ने आगे कहा कि पहले मुजफ्फर नगर प्रशासन की ओर से इस तरह का आदेश जारी किया गया, लेकिन अब उसे पूरे राज्य में लागू कर दिया गया है. आदेश में केवल मुजफ़्फ़र नगर और इसके आसपास ही नहीं बल्कि कांवड़ यात्रा के रास्ते में जितने भी फल-सब्जी विक्रेता, ढाबों और होटलों के मालिक के लिए है. सभी से कहा गया है कि वो दुकान के सामने अपने नाम का कार्ड लटका के रखें या फिर चस्पा करें.
मदनी का दावा- कई कर्मचारियों को आने से रोका गया
उन्होंने दावा किया कि सरकार के इस फैसले के बाद बहुत से ढाबों और होटलों के मैनेजर या मालिक जो मुसलमान थे, कांवड़ यात्रा के दौरान उन्हें काम पर आने से मना कर दिया गया है. जाहिर है कि सरकारी आदेश का उल्लंघन का साहस भला कौन कर सकता है.
मदनी ने यह भी कहा कि देश के सभी नागरिकों को संविधान में इस बात की पूरी आजादी दी गई है कि वह जो चाहें पहनें, जो चाहें खाएं, उनकी व्यक्तिगत पसंद में कोई बाधा नहीं डालेगा. यह नागरिकों के मूल अधिकारों का मामला है। संविधान में साफ शब्दों में कहा गया है कि देश के किसी नागरिक के साथ उसके धर्म, रंग और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. हर नागरिक के साथ समान व्यवहार किया जाएगा.
‘धर्म के आधार पर भेदभाव आम बात हो गई है’
उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ सालों से शासन-प्रशासन का जो व्यवहार सामने आया है, उसमें धर्म के आधार पर भेदभाव आम बात हो गई है, बल्कि अब ऐसा लगता है कि शासकों का आदेश ही संविधान है. उन्होंने कहा कि यह कितनी दुखद बात है कि सरकार गठन के समय संविधान के नाम पर शपथ लिया जाता है, लेकिन शपथ लेने के बाद उसी संविधान को किनारे रख दिया जाता है.

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