कश्मीर में निर्दलीय किसका बनाएंगे और किसका बिगाड़ेंगे गेम, आजाद उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने का टूटा रिकार्ड

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए पहले और दूसरे चरण की सीटों पर नामांकन खत्म हो चुका है. 2014 के मुकाबले इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों का ज्यादा दांव लगा हुआ है. आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है. जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस, पीडीपी नेशनल कॉन्फ्रेंस ही नहीं छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियां भी चुनाव मैदान में उतरी हुई हैं. इस बार 44 फीसदी निर्दलीय कैंडिडेट मैदान में है, उसका चुनावी नतीजों पर भी प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि निर्दलीय किसका खेल बनाएंगे और किसका गेम बिगाड़ते हैं?
जम्मू-कश्मीर के दो चरण की 50 विधानसभा सीटों पर कुल 485 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए हैं, जिसमें 214 निर्दलीय प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. पहले चरण की 24 विधानसभा सीट पर 92 और दूसरे चरण की 26 विधानसभा सीट पर 122 निर्दलीय कैंडिडेट हैं. जम्मू-कश्मीर की सियासत में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं. हालांकि, जमात-ए-इस्लामी से जुड़े लोगों ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाई थी, लेकिन चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिल सकी है. इसके चलते जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर के लोग निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोक दी है. यही वजह है कि इस बार निर्दलीय उम्मीदवारों के उतरने का सारा रिकॉर्ड टूटता नजर आ रहा है.
2014 और 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी
2014 में राज्य में आखिरी बार विधानसभा चुनाव हुए थे. 2014 के चुनाव में पहले दो चरणों की विधानसभा सीटों पर कुल 278 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, जिसमें 87 निर्दलीय उम्मीदवार थे. इस तरह से 31 फीसदी कैंडिडेट निर्दलीय थे. इस चुनाव में तीन निर्दलीय विधायक चुने गए थे. इससे पहले 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 518 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें से 190 निर्दलीय प्रत्याशी थे. इस तरह से कुल कैंडिडेट के 37 फीसदी उम्मीदवार निर्दलीय थे. इस चुनाव में चार निर्दलीय विधायक बने थे.
2024 के चुनावी पिच पर निर्दलीय कैंडिडेट
जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से इस बार दो चरण में 44 फीसदी कैंडिडेट निर्दलीय हैं. उससे सियासी खेल में बड़ा हेरफेर हो सकता है. प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी संगठन से जुड़े छह सदस्य निर्दलीय चुनावी मैदान में है. पुलवामा सीट से तलत मजीद, कुलगाम सीट से सयार अहमद रेशी, देवसर सीट से नजीर अहमद बट विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं. यह नेता जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे है, जिसे भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा था. शोपियां से नामांकन करने वाले सरजन बरकती का पर्चा रद्द कर दिया गया है.
तहरीक-ए-आवाम पार्टी
जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) और कई अलगाववादियों ने तहरीक-ए-आवाम नाम की पार्टी बनाई है, लेकिन अभी तक चुनाव आयोग से पार्टी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है. ऐसे में जमात-ए-इस्लामी से जुड़े नेता निर्दलीय मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा कई दूसरे भी नेताओं ने निर्दलीय ताल ठोक रखी है. जम्मू-कश्मीर में 1987 से पहले तक जमात-ए-इस्लामी हर विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाती रही है और जितती भी रही है, लेकिन उसके बाद चुनाव नहीं लड़ी.
अतीत नहीं, वर्तमान में जीना
जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे तलत मजीद कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा राजनीतिक हालत को ध्यान में रखते हुए चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का वक्त आ चुका है. जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर आज से पहले तक मेरी क्या राय थी, वह सार्वजनिक है. जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए. बतौर कश्मीरी हमें अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में जीना चाहिए और एक बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए.
बीजेपी अपना मुख्यमंत्री
जम्मू कश्मीर में बीजेपी पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति पर काम कर रही है. इसमें जम्मू रीजन की 35 और कश्मीर घाटी की 10 सीटों पर जीत की आस लगाए हुए हैं. बीजेपी जम्मू क्षेत्र की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि मुस्लिम बहुल कश्मीर रीजन में बहुत ही रणनीति के साथ कदम रखे हैं. बीजेपी ने कश्मीर क्षेत्र की सीटों पर खुद उतरने के बजाय कई छोटी पार्टियों और निर्दलीय को समर्थन किया है.
कश्मीर रीजन वाली सीटें
जम्मू-कश्मीर में निर्दलीय कैंडिडेट ज्यादातर कश्मीर रीजन वाली सीटों पर उतरे हैं, जहां पर सियासी प्रभाव पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों का है. इन्हीं इलाके की सीटों पर कश्मीर में आधार रखने वाले दल भी किस्मत आजमा रहे हैं. इसमें गरीब डेमोक्रेटिक पार्टी, अमन और शांति तहरीक-ए-जम्मू व कश्मीर, ऑल जम्मू-कश्मीर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी, जम्मू-कश्मीर ऑल अलायंस डेमोक्रेटिक पार्टी, जम्मू-कश्मीर नेशनलिस्ट पीपुल्स फ्रंट जैसे दल शामिल हैं. इनके चुनाव लड़ने से कश्मीर क्षेत्र की सीटों पर वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा है. इसमें किसी भी दल का खेल बिगड़ सकता है.
सांसद इंजीनियर राशिद
निर्दलीय और अलगाववादियों के विधानसभा चुनाव लड़ने के पीछे उम्मीद की किरण सांसद इंजीनियर राशिद बनकर उभरे हैं. 2024 लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन जैसे नेताओं के खिलाफ इंजीनियर राशिद निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे थे और भारी मतों से जीत दर्ज कर सांसद बने. इसी के चलते ही अब अलगाववादियों ने विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला किया है. इसीलिए जम्मू-कश्मीर में अब तक के सबसे ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में हैं.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *