चेहरे की हड्डियों को खा जाती है ये बीमारी, इस उम्र के लोगों को है सबसे ज्यादा खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नोमा बीमारी को हाल ही में नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज की लिस्ट में जोड़ा है.नोमा बीमारी को कैंक्रम ओरिस या गैंग्रीनस स्टामाटाइटिस के रूप में भी जाना जाता है. इस कदम का उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना और गंभीर संक्रमण से निपटने के प्रयासों को तेज करना है.

इस लिस्ट में एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मैक्सिको और प्रशांत द्वीप समूह जैसे उष्णकटिबंधीय स्थानों में प्रचलित बीमारियों को शामिल किया गया है. इसमें ट्रेकोमा, लीशमैनियासिस, उबासी, सर्पदंश, खुजली और चगास रोग शामिल हैं. इन बीमारियों के होने की वजह ये भी है कि इस जगहों पर रहने वाले लोगों के पास पीने के साफ पानी के निपटारे के लिए सही तरीका नहीं है.

क्या है नोमा?

नोमा चेहरे और मुंह पर होने वाली एक गंभीर बीमारी है. यह छोटे अल्सर के रूप में शुरू होता है. इस बीमारी का नाम ग्रीक शब्द में है, जिसका मतलब खा जाना होता है. नोमा चेहरे और मुंह के टिशूज और हड्डियों को खा जाती है. यह बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है. इसमें 90% मामलों में मृत्यु हो जाती है. आम तौर पर यह बीमारी ट्रॉपिकल एरिया में 2 से 6 साल तक के बच्चों को प्रभावित करती है. साथ ही यह एचआईवी और ल्यूकेमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित और कम इम्युनिटी वाले लोगों को भी प्रभावित करती है.

नोमा बीमारी गैर संक्रामक है.यह छूने या नोमा से पीड़ित व्यक्ति के आस पास रहने वालों में नहीं फैलती है. डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह बीमारी ज्यादातर गरीबी, कुपोषण, गंदी जगह पर होती है.

नोमा के लक्षण

बुखार, वजन कम होना, सांस की दुर्गंध भी नोमा बीमारी के लक्षण हैं.इसके अलावा यह रोग मुंह के अंदर बैक्टीरिया से होने वाली मसूड़ों की सूजन से शुरू होता है. ऐसे में अगर सूजन का वक्त रहते इजाल नहीं करवाया तो बैक्टीरिया तेजी से फैलने लगता है और हड्डियों को खाना शुरू कर देता है.

यूएन एचआरसीएसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी में जो लोग बच जाते हैं उन्हें मुंह बंद करना, सांस लेने, बोलने जैसी कई समस्याओंका सामना करना पड़ता है.

नोमा का रोकथाम और इलाज

शुरुआती चरण में इस बीमारी का इलाज काफी आसान है, जैसे साफ जगह पर रहना, मुंह को धोना और सही पोषण लेना. हालांकि इसके फैलने के बाद इसे सर्जरी की मदद से भी खत्म नहीं किया जा सकता है

नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज के प्रति भारत सरकार की पहल:-

राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम:
देश में रेबीज को खत्म करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया है. इस कार्यक्रम के तहत पूरे देश के सरकारी अस्पतालों में आवारा कुत्तों को टीकाकरण और मुफ्त टीके दिए जाते हैं.

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