टीबी का इलाज करने वाले डॉक्टर ही आ रहे हैं इस बीमारी की चपेट में, एक स्टडी में हुआ खुलासा
भारत में टीबी की बीमारी के मामले पहले की तुलना में कम हुए हैं, लेकिन आज भी ये बीमारी एक बड़ी चिंता बनी हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में टीबी के कुल मरीजों में से 25 फीसदी भारत में है. टीबी एक संक्रामक रोग है. ये एक से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है. संक्रमित व्यक्ति के साथ रहने से भी ये बीमारी फैलती है. लेकिन टीबी का इलाज करने वाले डॉक्टर और इस बीमारी की जांच करने वाले स्वास्थ्य कर्मचारी भी टीबी की चपेट में आ रहे हैं. डॉक्टरों को टीबी का खतरा आम लोगों के मुकाबले ज्यादा है. यह जानकारी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की एक रिसर्च में सामने आई है.
सफदरजंग अस्पताल की तरफ से की गई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि टीबी का इलाज करने वाले 1 लाख स्वास्थ्य कर्मचारियों में से 3,000 को यह संक्रामक बीमारी हुई है. विशेषज्ञों की टीम के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन ने भारत में स्वास्थ्य कर्मियों में स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं को बढ़ा दिया है. चेस्ट डिजीज के मोनाल्डी आर्काइव्स में प्रकाशित इस शोध ने इस बीमारी की रोकथाम और बेहतर इलाज की आवश्यकता पैदा कर दी है.
शोध के महत्त्वपूर्ण तथ्य
सफदरजंग अस्पताल में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर बताते हैं कि इस शोध में प्रति एक लाख स्वास्थ्य कर्मियों में करीब 2,400 टीबी से ग्रस्त पाए गए जो कि सामान्य लोगों में होने जाने वाली दर से कही अधिक हैं. यानी आम लोगों के मुकाबले इस बीमारी का इलाज करने वाले लोगों को इस बीमारी का ज्यादा खतरा है. इस शोध में 2004 से लेकर 2023 के बीच किए गए दस अध्ययनों की समीक्षा की गई है इसमें एक लाख पर करीब 6500 लैब टेक्नीशियन, 2000 डॉक्टर और 2700 नर्सों में टीबी की उच्च संक्रमण दर की पहचान हुई है. ये डेटा स्वास्थ्य कर्मियों में इस गंभीर संक्रमण दर को उजागर करता है जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. इस रिसर्च में सफदरजंग अस्पताल के अलावा तीर्थांकर महावीर यूनिर्सिटी के मुरादाबाद के डॉ रवींद्र नाथ भी शामिल थे.
संक्रमण दर अधिक होने की वजहें
इस शोध के अनुसार इसके कई कारण बताए गए हैं-
– इन वार्ड्स में पर्याप्त वेंटिलेशन का न होना अहम कारण हैं क्योंकि खराब एयर सर्कुलेशन की वजह से इस तरह की टीबी जैसी एयरबोर्न डिजीज का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.
– इसके अलावा स्वास्थ्य कर्मियों का इन पेशेंट को देखते समय पीपीई किट और एन95 मास्क का इस्तेमाल न करना भी अहम कारण है.
– इसके अलावा इन स्वास्थ्य कर्मियों का मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट और एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट पेशेंट के लगातार संपर्क में आना भी इस खतरे को बढ़ाता है.
इसलिए तुरंत प्रभाव से इन स्वास्थ्य कर्मियों को निम्न उपाय अपनाने चाहिए
– इस तरह के पेशेंट की देखभाल और इलाज करते समय पीपीई किट और एन95 मॉक्स का उपयोग करें.
– सभी स्वास्थ्यकर्मी समय-समय पर अपनी नियमित जांच करवाएं.
ये स्टडी उस लक्ष्य के लिए एक बड़ी चिंता पैदा करती है जो भारत सरकार ने 2025 तक टीबी के उन्मूलन के लिए रखा है. टीबी आज भी देश के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता है जिससे हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं वही हजारों अपनी जान गंवा देते हैं. ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों का इस बीमारी की चपेट में आना बेहद चिंताजनक है जिसको तुरंत विचार करना चाहिए और ठोस कदम उठाने चाहिए