पंजाब की सियासत में डेरों के पास रहता है ‘वोट का रिमोट’, नेता और जनता दोनों पर कंट्रोल
Dera Factor in Punjab Politics: पंजाब की सियासत की बात हो और यहां के डेरों की चर्चा ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. यहां की सियासत और डेरे मानों एक-दूसरे के पूरक हैं. पंजाब ही नहीं, इसके पड़ोसी राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी डेरों की ताकत साफ तौर पर देखी जा सकती है. ये डेरे रातों-रात किसी की भी सत्ता पलटने का दम रखते हैं. तभी तो चुनाव पास आते ही सभी सियासतदान डेरों की चौखटों पर माथा टेकने पहुंच जाते हैं.
पंजाब की सियासत में धार्मिक डेरों का हमेशा से ही प्रभाव रहा है. यहां के डेरे हर चुनाव को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते रहे हैं. यही वजह है कि चुनाव आते ही सभी राजनीतिक पार्टियां इन डेरों के चक्कर लगाना शुरू कर देती हैं. इस बार भी यह सिलसिला काफी पहले शुरू हो चुका है. सभी राजनीतिक दल किसी न किसी रूप में इन डेरों के संपर्क में हैं. डेरों का अपना बहुत बड़ा वोट बैंक है. डेरों का रुझान राजनीतिक दलों की दिशा बदलने की क्षमता रखता है. इस बात की पुष्टि पिछले कई चुनावों में हो भी चुकी है.
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के एक शोध के अनुसार, पंजाब की कुल आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा किसी न किसी डेरे में आस्था रखता है। सूबे में एक हजार से ज्यादा छोटे-बड़े डेरे हैं, जिनके अनुयायी और समर्थक देश-विदेश में फैले हुए हैं. डेरा प्रमुखों के कहने पर ही ये लोग तय करते हैं कि उनका वोट किस पार्टी और किस उम्मीदवार को जाएगा.
सियासी तस्वीर बदलने की ताकत रखते हैं ये डेरे
डेरा सच्चा सौदा की बात करें तो इसका मालवा क्षेत्र में बहुत प्रभाव है, जबकि राधा स्वामी डेरा ब्यास माझा में सैंकड़ों बार अपना शक्ति प्रदर्शन कर चुका है. सचखंड डेरा बल्लां का दोआबा में खासा प्रभाव है तो वहीं लुधियाना में डेरा ढक्की साहिब और नामधारी संप्रदाय के लाखों अनुयायी हैं. इन सभी डेरों का अपना-अपना राजनीतिक आधार है. एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब में 9 हजार सिख और 12 हजार गैर-सिख डेरे हैं, जिन्हें करीब 300 डेरा प्रमुख संचालित कर रहें हैं. इनका पंजाब के साथ-साथ हरियाणा और हिमाचल में भी प्रभाव है. इनमें से कुछ डेरे तो ऐसे हैं जो सूबे की सत्ता पर सीधे तौर पर असर डालते हैं.
डेरा सच्चा सौदा: इस डेरे का मुख्यालय तो हरियाणा के सिरसा जिले में है, लेकिन इसके सबसे ज्यादा अनुयायी पंजाब में बसते हैं. बठिंडा जिले का सलाबतपुरा डेरा पंजाब का सबसे बड़ा सच्चा सौदा डेरा है. गुरमीत राम रहीम इसका प्रमुख है. पंजाब में डेरों के कई चर्चा घर हैं. मालवा की सीटों पर डेरा सच्चा सौदा का अच्छा खासा प्रभाव है. डेरा सच्चा सौदा का 27 विधानसभा क्षेत्रों में गहरा प्रभाव है. इसका खुद का सियासी विंग है, जो यह तय करता है कि वह किन पार्टियों का समर्थन करेगा. विंग कभी सार्वजनिक तौर पर तो कभी गुपचुप तरीके से समर्थन का फैसला लेता है. फिलहाल, डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम साध्वी यौन शोषण मामले में रोहतक की सुनारिया जेल में 20 साल की सजा काट रहा है, लेकिन उसके जेल जाने से डेरे का सियासी प्रभाव जरा भी कम नहीं हुआ है. डेरे का सियासी विंग पहले की तरह ही अपने अनुयायियों को फैसला सुनाने के लिए तैयार है कि वे किस पार्टी को वोट डालें. सूत्रों की मानें तो पंजाब में 30 मई को चुनाव प्रचार खत्म होते ही डेरे की तरफ से सर्मथन को लेकर ऐलान किया जाएगा.
राधा स्वामी डेरा ब्यास: डेरा ब्यास पंजाब के साथ-साथ अन्य कई राज्यों के लोगों की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है. डेरा ब्यास की स्थापना 1891 में बाबा जयमल सिंह जी ने की थी. डेरा ब्यास की एक किताब के मुताबिक, देशभर में उनकी 5 हजार तो विदेशों में 99 शाखाएं हैं. सिर्फ पंजाब में ही डेरा ब्यास के 80 से 90 सत्संग घर हैं. अमृतसर, गुरदासपुर, जालंधर, पटियाला और होशियारपुर लोकसभा सीटों पर इस डेरे का सीधा प्रभाव माना जाता है. मौजूदा समय में बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों इसके प्रमुख हैं. चुनाव के समय हर पार्टी के नेता इस डेरे की चौखट पर नतमस्तक होने पहुंचता है. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों के साथ कई बार मुलाकात कर चुके हैं. उनके अलावा केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह भी डेरा ब्यास जाकर अपनी हाजिरी लगवा चुके हैं. जबकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत अन्य कई बड़े दल भी कई बार इस डेरे के चक्कर काट चुके हैं.
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान: जालंधर के नूरमहल में स्थित दिव्य जागृति संस्थान का आठ विधानसभा क्षेत्रों में सीधा प्रभाव माना जाता है. इस डेरे की स्थापना आशुतोष महाराज ने 1983 में की थी. उन्होंने इस संस्थान को स्थापित करने में कड़ी मेहनत और तपस्या की. धीरे-धीरे डेरे में लोगों की आस्था बढ़ी और वे इसके अनुयायी बनते चले गए. संस्थान की मानें तो इस समय देश-विदेश में इसके तीन करोड़ अनुयायी हैं, 350 शाखाएं हैं, जो देश के साथ-साथ विदेशों में भी फैली हुई हैं. 29 जनवरी 2014 को आशुतोष महाराज समाधि में चले गए. उनके अनुयायियों का मानना है कि वे आज भी जीवित हैं और समाधि या गहरे ध्यान की स्थिति में हैं. उनका पार्थिव शरीर 1 दिसंबर 2014 से फ्रीजर में रखा हुआ है. आशुतोष महाराज के अनुयायी पहले की तरह ही डेरे की और से जारी आदेशों को पत्थर की लकीर मानते हैं और डेरा प्रबंधकों के कहने पर ही किसी विशेष पार्टी को अपना वोट देते हैं.
डेरा सचखंड बल्लां: जालंधर के बल्लां गांव में स्थित डेरा सचखंड बल्लां इस समय लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है. इस डेरे की स्थापना 1900 की शुरुआत में पीपल दास, जिनका असल नाम हरनाम दास था, ने की थी. वर्तमान में संत निरंजन दास इसके प्रमुख हैं. बठिंडा जिले के एक गांव गिल पट्टी के रहने वाले पीपल दास और सरवन दास गिल पट्टी छोड़कर जालंधर के पास बल्लां गांव पहुंचे. पीपल दास ने ग्रामीणों को आसपास की जमीन उन्हें दान करने के लिए राजी किया और डेरे की स्थापना की. इस डेरे का भी जालंधर की आठ विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है. आम आदमी प्रमुख अरविंद केजरीवाल यहां हाजिरी लगवा चुके हैं जबकि सूबे के मुख्यमंत्री भगवंत मान अक्सर डेरा बल्लां जाते रहते हैं. हाल ही में उन्होंने डेरे को 25 लाख रुपये भी दान किए थे. इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रताप सिंह बाजवा समेत कई बड़े नेता भी यहां नतमस्तक हो चुके हैं.
निरंकारी मिशन: संत निरंकारी मिशन की स्थापना 1929 में बूटा सिंह ने की थी. साल 2018 से सतगुरु बाबा हरदेव सिंह की बेटी मां सुदीक्षा मिशन की छठी आध्यात्मिक प्रमुख हैं. बाबा बूटा सिंह ने अपना पद बादशाह बाबा अवतार सिंह को सौंप दिया था. विभाजन के बाद बाबा अवतार सिंह दिल्ली चले आए और बाबा बूटा सिंह की विरासत को आगे बढ़ाया. उनके बाद उनके बेटे गुरबचन सिंह 1962 में इस मिशन के उत्तराधिकारी बने. 24 अप्रैल 1980 को बाबा गुरबचन सिंह की हत्या कर दी गई. निरंकारी मिशन के सियासी प्रभाव की बात करें तो इसका 4 विधानसभा क्षेत्रों में अच्छा-खासा प्रभाव है.
नामधारी समुदाय: नामधारी समुदाय सिख समुदाय का एक अभिन्न अंग है. सतगुरु राम सिंह नामधारी का जन्म 3 फरवरी 1816 को पंजाब प्रांत में हुआ था. सतगुरु ने खालसा के गौरव को बनाए रखने और अंग्रेजों से आजादी हासिल करने का संकल्प लिया था. नारी मुक्ति, अंतरजातीय विवाह और सामूहिक विवाह के साथ-साथ उन्होंने गौरक्षा पर भी ध्यान दिया. राम सिंह जी ने ही नामधारी संप्रदाय की स्थापना की. इस समुदाय का मुख्य डेरा लुधियाना के भैनी साहिब में है लाखों लोग इसके अनुयायी हैं. इस डेरे का भी अच्छा-खासा सियासी प्रभाव है. कई सियासी दिग्गज चुनाव के दिनों में यहां वोट की भिक्षा मांगने के लिए पहुंचते हैं.
अब जब 1 जून को पंजाब में लोक सभाचुनाव के लिए वोटिंग होने जा रही है. ऐसे में देखना काफी दिलचस्प होगा कि किसी सियासी पार्टी को कौन से डेरे का आशीर्वाद मिलता है.