बिहारः प्रशांत किशोर के जन सुराज ने अगले महीने किन 4 नेताओं को हराने की ठानी?
प्रशांत किशोर ने 2 अक्टबूर को अपने नए राजनीतिक दल – जन सुराज की औपचारिक शुरुआत कर दी. पहले वह और उनके अभियान के लोग सीधे 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे थे. लेकिन पार्टी की स्थापना के दिन पीके ने अगले महीने संभावित उपचुनाव में भाग लेने का ऐलान कर दिया.
लोकसभा चुनाव में बिहार की 4 विधानसभा – तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज के विधायकों के सांसद बन जाने से यहां उपचुनाव की स्थिति उपजी है. तरारी की सीट भाकपा माले के पास थी. जबकि रामगढ़, जहानाबाद लालटेन (राजद) का गढ़ रही है. वहीं, इमामगंज पिछले एक दशक में जीतनराम मांझी की पहचान के साथ नत्थी हो गई है.
जाहिर तौर पर प्रशांत उपचुनाव में इन सीटों पर जीत हासिल कर इंडिया गठबंधन और एनडीए, दोनों को सियासी संदेश देना चाहते हैं. सीधे तौर पर अगर कहें तो वह इन सीटों से सांसद चुने गए सुदामा प्रसाद (भाकपा माले), सुधाकर सिंह (राजद), सुरेंद्र यादव (राजद) और जीतनराम मांझी (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) की को राजनीतिक झटका देना चाहते हैं.
जीतनराम मांझी तो अब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री हैं. साथ ही, वह बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. सो, उनके राजनीतिक कद से ज्यादातर लोगों का वास्ता है लेकिन मांझी के अलावा और दूसरे नेता भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं. इन चारों नेताओं और उनकी सीटों के हवाले से कुछ बातें –
1. सुदामा प्रसाद – बीते लोकसभा चुनाव में 63 वर्षीय भाकपा माले नेता सुदामा प्रसाद ने बीजेपी के अहम नेताओं में से एक आर. के. सिंह को हरा दिया. सिंह करीब नरेंद्र मोदी के पहले और दूसरे कार्यकाल में, करीब 7 साल से देश के उर्जा मंत्री थे. बावजूद इसके, वह अपनी आरा की लोकसभा सीट नहीं बचा सके. सुदामा प्रसाद की जीत की काफी चर्चा हुई.
प्रसाद सांसद चुने जाने से पहले 2015 से लगातार तरारी सीट से विधायक थे. तरारी विधानसभा पहले जदयू नेता रहे सुनील पांडेय का गढ़ हुआ करता था. नीतीश कुमार की पार्टी से (तीर के निशान पर) सुनील 2010 से 2015 तक तरारी से विधायक चुने गए. उनसे पहले यह सीट वजूद मेें ही ही नहीं थी. इसकी जगह पीरो विधानसभा होती थी.
तरारी सीट से जन सुराज का चुनाव लड़ना न सिर्फ भाकपा माले और उनके ओबीसी नेता की मजबूत जमीन को चुनौती देने वाला होगा. बल्कि इस इलाके के भूमिहारों के बीच राजनीतिक पैठ रखने वाले सुनील पांडेय को भी ललकारने वाला होगा. किशोर की पार्टी यहां से चुनाव जीत एक बड़ा उलटफेर करना चाहेगी.
2. सुधाकर सिंह – सुधाकर सिंह राष्ट्रीय जनता दल के बिहार ईकाई के अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे हैं. कैमूर जिले के अंतर्गत आने वाली रामगढ़ विधानसभा जगदा बाबू की पहचान रही है. सिंह यहां से लगातार 24 साल (1985-2009) विधायक रहे. पर पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट से उनके बेटे सुधाकर सिंह की महज 189 वोटों से जीत हुई.
2024 लोकसभा चुनाव में सुधाकर सिंह ने बक्सर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. जहां से उनके पिता जगदानंद सिंह 2009 से 2014 तक सांसद रह चुके हैं. सुधाकर सिंह बीजेपी के मिथिलेश तिवारी को हराकर अब वह सांसद हो चुके हैं. रामगढ़ की सीट खाली हो चुकी है.
ऐसे में, रामगढ़ में अपनी पार्टी का कैंडिडेट खड़ा कर पीके सीधे तौर पर राजद अध्यक्ष और उनके इर्द-गिर्द पसरी सियासत को एक धक्का देना चाहेंगे. जगदानंद सिंह विधानसभा चुनाव में पीके की सभी 243 सीटों पर जमानत जब्त होने की भविष्यवाणी कर चुके हैं. लिहाजा, सिंह के गढ़ रामगढ़ में पीके की पार्टी के प्रदर्शन केबड़े मायने निकाले जाएंगे.
3. सुरेंद्र यादव – सुरेंद्र प्रसाद यादव 2024 लोकसभा चुनाव में राजद की टिकट पर जहानाबाद से सांसद चुने गए हैं. 1990 से 2020 तक (बीच में दो साल छोड़कर) यानी सांसद चुने जाने से पहले वह जहानाबाद के अंतर्गत आने वाली बेलागंज सीट से 8 बार विधायक चुने गए. बेलागंज में पिछले 34 सालों से राजद का का झंडा झुका नहीं है.
सुरेंद्र यादव का राजद में काफी बड़ा राजनीतिक कद है. 1998 से लेकर 2000 के बीच, करीब दो बरस तक वह जहानाबाद से सांसद भी रहे थे. ये वही समय था जब लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री थे. कहते हैं कि आडवाणी के हाथों से महिला आरक्षण बिल छीनकर फाड़ देने के वाकिये से सुरेंद्र यादव सुर्खियों में आए थे.
इसके बाद अगले 24 साल वह बिहार की राजनीति ही में सक्रिय रहे. अब जब वह दिल्ली चले गए हैं तो जाहिर तौर पर उनके इलाके, बेलागंज में एक राजनीतिक खालीपन का आलम होगा. किशोर की पार्टी इस सीट को जीतकर राजद के तीन दशक पुराने गढ़ को ढा देना चाहेगी. क्या वह ऐसा कर पाएगी?
4. जीतनराम मांझी – इमामगंज विधानसभा गया जिले के अंतर्गत आती है और पिछले 1 दशक के दौरान जीतनराम मांझी का चुनावी क्षेत्र बनकर उभरा है. मांझी इस लोकसभा चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी और अपनी पार्टी – हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता के तौर पर गया से सांसद चुने गए हैं.
मांझी की सियासी पहचान एक दलित नेता की है. इधर पीके ने भी अपनी पार्टी का पहला कार्यवाहक अध्यक्ष मनोज भारती को बनाया है, जो बकौल किशोर भारतीय विदेश सेवा से रिटायर होने के अलावा दलित भी हैं. इमामगंज विधानसभा एससी समुदाय के लिए आरक्षित है.
ऐसे में, मनोज भारती को पार्टी की कमान सौंपने का कुछ लाभ हुआ या नहीं, इसकी भी पहचान इमामगंज में कुछ हद तक हो जाएगी.किशोर अगर इमामगंज सीट पर किसी भी तरह बाजी पलटते हैं तो बिहार में दलित नेता की तौर पर खुद को खड़ा कर रहे जीतनराम मांझी की राजनीतिक छवि को बड़ा धक्का पहुंचेगा.
मगर पीके के लिए तरारी से रामगढ़ और बेलागंज से इमामगंज तक, ये सबकुछ करना इतना आसान नहीं होगा.