ब्लॉक में सीट शेयरिंग को लेकर इनकार और दवाब वाली पॉलिटिक्स? TMC-AAP के बाद क्या होगा अखिलेश का दांव?

विपक्षी गठबंधन को लेकर नीतीश कुमार कभी राहुल गांधी के पास तो कभी उद्धव ठाकरे के पास घूमते रहे. उनकी मेहनत रंग भी लाई और 23 जून 2023 को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की पहली बैठक हुई. इस पहली बैठक में 16 पार्टियों के नेता पहुंचे.

करीब 25 दिनों के अंदर विपक्षी दलों की दूसरी बैठक कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में आयोजित हुई और विपक्षी दलों के गठबंधन को स्वीकार किया गया और इसमें 10 अन्य राजनीतिक पार्टियों को जोड़ा गया. गठबंधन का नाम भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन यानी I.N.D.I.A रखा गया. विपक्षी गठबंधन बनाने के पीछे का मुख्य उद्देश्य 2024 के आम चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA को हराना है, लेकिन फिलहाल, ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है.

ऐसा इसलिए… क्योंकि विपक्षी गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर ही कुछ तय नहीं हो पा रहा है. ममता बनर्जी ने बंगाल की सभी लोकसभा सीटों पर तो आम आदमी पार्टी ने पंजाब की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, यानी आम आदमी पार्टी पंजाब में जबकि तृणमूल कांग्रेस बंगाल में किसी भी विपक्षी दल के साथ गठबंधन कर चुनाव नहीं लड़ेगी.

यूपी में भी अकेले चुनाव लड़ेगी समाजवादी पार्टी?

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ये बस शुरुआत है और आशंका है कि अकेले चुनाव लड़ने वाला फैसला कहीं यूपी में भी न ले लिया जाए. कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी की ओर से भी ऐसा ही फैसला लिया जा सकता है. इसके पीछे का तर्क ये है कि पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया था. इसके बाद अखिलेश यादव कांग्रेस से बुरी तरह नाराज हुए थे.

तालमेल में गड़बड़ी को लेकर TMC ने कांग्रेस को बताया जिम्मेदार

एक दिन पहले बंगाल की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करने वाली ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों के बीच तालमेल न बन पाने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने बंगाल में लोकसभा चुनाव के लिए जो प्रस्ताव दिया था, उसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया था. दरअसल, ममता बनर्जी कांग्रेस को दो से तीन सीटें दे रही थी. जबकि कांग्रेस कम से कम 10-12 सीटें मांग रही थी. ममता ने कांग्रेस को सुझाव भी दिया था कि कांग्रेस को देशभर की 300 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, जबकि बाकी अन्य सीटें क्षेत्रीय पार्टियों के लिए छोड़ देना चाहिए. इस सुझाव को भी कांग्रेस ने मानने से इनकार कर दिया.

कांग्रेस ने ममता के आरोपों पर दी ये प्रतिक्रिया

उधर, ममता बनर्जी के आरोपों को लेकर कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ममता बनर्जी के बिना इंडिया गठबंधन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. कांग्रेस की ओर से ये भी कहा गया कि गठबंधन में थोड़ी दिक्कतें आती हैं, लेकिन समय के साथ उसे ठीक कर लिया जाएगा. बता दें कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी दावा कर चुके हैं कि गांधी परिवार और ममता बनर्जी के बीच अच्छे रिश्ते रहे हैं. किसी भी कीमत पर कांग्रेस बंगाल में गठबंधन के तहत ही चुनाव लड़ेगी.

हालांकि, बंगाल में गठबंधन को लेकर उपजी ऊहापोह को लेकर शिवसेना यूबीटी गुट और एनसीपी की अलग राय है. उनका मानना है कि ममता बनर्जी ने खास रणनीति के तहत अकेले चुनाव लड़ने वाला बयान दिया है. अब ये रणनीति क्या है, ये तो ममता बनर्जी बता सकती हैं या फिर विपक्षी गठबंधन में शामिल दल के नेता. इतना होने के बावजूद NCP ने हाल ही में दावा किया कि गठबंधन में कोई समस्या नहीं है. हालांकि ये एनसीपी, शिवसेना यूबीटी गुट और कांग्रेस को महसूस हो रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में यानी लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले अन्य राज्यों में भी सीट शेयरिंग वाले मुद्दे पर कुछ अन्य दलों का नाराजगी देखने को मिल सकती है.

INDIA गठबंधन में शामिल दलों के बीच पहले भी बिगड़ चुका है तालमेल

ये पहली बार नहीं है कि इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के बीच किसी मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पाई है. इससे पहले भी कई मुद्दों पर गठबंधन में शामिल दलों के बीच असमति बनी है. हालांकि, कुछ मौके ऐसे आए हैं, जब इंडिया गठबंधन के दलों ने एकजुटता दिखाई है. जैसे संसद का शीतकालीन सत्र. दरअसल, संसद में विपक्षी सांसदों के निलंबन के खिलाफ विपक्षी दलों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू किया था. उस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, एनसीपी अध्यक्ष शरद यादव, सीपीआई (एम) नेता सीताराम येचुरी और अन्य नेताओं ने नई दिल्ली के जंतर मंतर पर ‘लोकतंत्र बचाओ’ बैनर के तहत सांसदों के निलंबन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. आइए जानते हैं कि आखिर कब-कब किन मुद्दों पर इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के बीच नाराजगी सामने आई.

दरअसल, नाराजगी का सिलसिला गठबंधन की घोषणा से पहले से यानी पहली बैठक से ही सामने आई है.

23 जून को जब पटना में विपक्षी दलों की पहली बैठक हुई, तब अरविंद केजरीवाल नाराज नजर आए. दरअसल, वे चाहते थे कि दिल्ली में नौकरशाहों पर नियंत्रण वाले अध्यादेश के खिलाफ सभी विपक्षी राजनीतिक पार्टियां एकजुट हो और कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी का समर्थन करे.

17-18 जुलाई को जब कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में दूसरी बैठक हुई तो गठबंधन का नाम I.N.D.I.A (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) रखा गया. इस दौरान नीतीश कुमार ने नाम पर नाराजगी जता दी.
31 अगस्त-1 सितंबर को मुंबई में हुई तीसरी बैठक में ममता बनर्जी नाराज हो गईं. दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सीट बंटवारे के लिए समयसीमा तय न हो पाने को लेकर नाराजगी जताई थी.

19 दिसंबर को दिल्ली में चौथी बैठक में एक बार फिर नीतीश कुमार नाराज हो गए. दरअसल, बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम 2024 लोकसभा चुनाव में पीएम पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्ताव आया, जिसके बाद नीतीश ने नाराजगी जताई और बीच बैठक से चले गए.

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