रॉकेट में हीलियम का क्या काम, जानिए क्यों किया जाता है इसका इस्तेमाल

स्टारलाइनर के जरिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पहुंचे दो अंतरिक्ष यात्री फिलहाल वहां फंसे हुए हैं. उनके वापसी मिशन में देरी की वजह हीलियम लीक बताई जा रही है. इस समस्या के कारण स्पेसएक्स का पोलारिस डॉन मिशन भी लॉन्च में देरी का सामना कर चुका है. यह पहली बार नहीं है कि हीलियम के कारण कोई अंतरिक्ष मिशन प्रभावित हुआ हो, इससे पहले इसरो का चंद्रयान 2 और ईएसए का एरियन 5 भी इसी कारण से लेट हुए थे.
हीलियम गैस की विशेषताएं इसे रॉकेट इंजनों के लिए एक अच्छा विकल्प बनाती हैं. यह न तो किसी पदार्थ से रियक्ट करता है और न ही इसमें आग लगती है. हीलियम, हाइड्रोजन के बाद दूसरा सबसे हल्का तत्व है और इसका प्रयोग इंजन में प्रेशर बनाए रखने के लिए किया जाता है. रॉकेटों को कक्ष तक पहुंचाने के लिए एक तय गति और ऊंचाई प्राप्त करनी होती है, जिसके लिए शक्तिशाली इंजन की आवश्यकता होती है. हीलियम अपने हल्केपन के कारण ईंधन प्रणालियों मे एक अच्छा विकल्प है.
हीलियम के लीक होने का खतरा
स्टारलाइनर की घटना के बाद इसके उपयोगिता पर सवाल उठ रहे है, लेकिन जानकर इसे अच्छा विकल्प मानते है . हीलियम के लीक होने की संभावना कम होती है, लेकिन अगर ऐसा होता भी है तो इसका पता आसानी से चल जाता है.
पृथ्वी के वायुमंडल में हीलियम की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे लीक का पता लगाना आसान हो जाता है. यही कारण है कि हीलियम का उपयोग रॉकेट और अंतरिक्ष यान में संभावित कमियों की पता लगाने के लिए किया जाता है. पिछले कुछ अंतरिक्ष मिशन में इसके वजह से दिक्कत आई है, लेकिन जानकर फिर भी इससे अच्छा विकल्प मानते है. उनका कहना है कि इसके लिक को रोकने के लिए कुछ विशेष करने के लिए जरुरत है.

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