लगातार 4 ओलंपिक में मिली कामयाबी, क्या पेरिस में तिरंगा लहरा पाएंगे भारतीय पहलवान?

बीजिंग ओलंपिक के बाद से भारतीय पहलवानों ने खेलों के महाकुंभ में परचम लहराया है. हालांकि लगातार चार ओलंपिक में सफलता के बाद अब पेरिस में मेडल जीतना पहलवानों के लिए आसान नहीं होगा. वो इसलिए क्योंकि भारत का केवल एक पुरुष खिलाड़ी और पांच महिला खिलाड़ी ही ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर पाए हैं. जबकि पिछले चार सालों की बात करें तो सुशील कुमार ने साल 2008 में कांस्य पदक जीत कर भारत में कुश्ती का माहौल बनाया था और इसके चार साल बाद लंदन ओलंपिक में उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया जबकि योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता. साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक खेल 2016 में कांस्य पदक जीत कर यह सिलसिला जारी रखा और टोक्यो ओलंपिक में रवि दहिया ने रजत और बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक जीता. अब पेरिस ओलंपिक में कौन से पहलवानों पर भारत को मेडल जिताने की जिम्मेदारी होगी, आइए डालते हैं उनपर एक नजर.
अमन सहरावत पर है जिम्मेदारी
अमन सहरावत फ्री स्टाइल 50 किलो कैटेगिरी में मेडल जीतने के दावेदार होंगे. अपने खेल में निरंतर सुधार करने वाले अमन ने 57 किग्रा भार वर्ग में रवि दहिया की जगह ली. उनका दमखम और धैर्य बनाए रखना मजबूर पक्ष है. अगर मुकाबला 6 मिनट तक चलता है तो उन्हें हराना आसान नहीं होगा. हालांकि उनके खेल में रणनीति की कमी साफतौर पर नजर आती है. उनके पास प्लान बी नहीं होता है. पेरिस में उन्हें रेई हिगुची और उज्बेकिस्तान के गुलोमजोन अब्दुल्लाव से कड़ी चुनौती मिल सकती है.
महिला पहलवानों पर भी दारोमदार
विनेश फोगाट (महिला 50 किग्रा): इसमें कोई दो राय नहीं है कि विनेश फोगाट भारत की सबसे बेहतरीन महिला पहलवानों में से एक हैं. मजबूत डिफेंस और उतना ही शानदार अटैक उनकी ताकत है. लेकिन पिछले एक साल में उन्हें चोटी की खिलाड़ियों के खिलाफ खेलने का कम मौका मिला है. इसके अलावा वो कम वेट कैटेगिरी में हिस्सा ले रही है. उन्हें वजन कम करने की मुश्किल प्रक्रिया से गुजरना होगा.
अंतिम पंघाल (महिला 53 किग्रा): हिसार की यह तेज-तर्रार खिलाड़ी पेरिस ओलंपिक कोटा हासिल करने वाली पहली पहलवान थी. जब विरोध प्रदर्शन अपने चरम पर था, तब उन्होंने विनेश को ट्रायल के लिए चुनौती भी दी थी. अंतिम का मजबूत पक्ष उनका लचीलापन है जिससे वह विरोधी की पकड़ से जल्दी बाहर निकल जाती हैं. उन्होंने हालांकि एशियाई खेलों में हिस्सा नहीं लिया और पीठ की चोट के कारण उन्हें इस साल एशियाई चैम्पियनशिप से बाहर होना पड़ा. पिछले कुछ समय में कम प्रतियोगिताओं में भाग लेने का उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है.
अंशु मलिक (महिला 57 किग्रा): जूनियर स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद सीनियर स्तर में जगह बनाने वाली अंशु पदक के दावेदारों में शामिल हैं. मैट पर तेज़ी से मूवमेंट करना और आक्रामक खेल शैली अंशु की सबसे बड़ी ताकत है. हालांकि उनकी फिटनेस चिंताजनक पहलू है। वह कंधे की चोट से परेशान रही हैं. उनका दावा है कि यह सिर्फ गर्दन की ऐंठन है, लेकिन उसका परीक्षण नहीं किया गया है.
निशा दहिया (महिला 68 किग्रा): निशा के बारे में बहुत अधिक दावे नहीं किए गए. उन्होंने शुरू में काफी उम्मीद जगाई लेकिन चोटिल होने के कारण उनकी प्रोग्रेस पर असर पड़ा. वह अपनी आक्रामक शैली से मजबूत विरोधी को भी चौंका देती है. वह बेखौफ होकर खेलती है जो उनका मजबूत पक्ष है. उन्हें हालांकि बड़ी प्रतियोगिताओं में खेलने का कम अनुभव है जो उनकी कमजोरी है. इसके अलावा मुकाबला लंबा चलने पर वो कमजोर पड़ सकती हैं.
रितिका हुड्डा (महिला 76 किग्रा): रितिका अपनी ताकत के दम पर मजबूत खिलाड़ियों को भी चौंका देती हैं. इससे अनुभवी पहलवानों के लिए भी उन्हें हराना मुश्किल साबित हो सकता है. रितिका के पास ताकत और तकनीक है, लेकिन उन्हें मुकाबले के आखिरी 30 सेकंड में अंक गंवाने की आदत है. अगर वह बढ़त भी बना लेती है, तो वह उन अंकों को खो सकती है. मुकाबले के आखिर में ध्यान भटक जाना उनकी कमजोरी है.

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