विश्व थैलेसीमिया दिवस 2024: क्या है थैलेसीमिया बीमारी, क्यों बच्चों को रहता है इसका खतरा
दुनियाभर में हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है. इसका मकसद लोगों को थैलेसीमिया बीमारी के बारे में जागरूक करना होता है. थैलेसीमिया का खतरा बच्चों में सबसे ज्यादा होता है. ये बीमारी माता-पिता से बच्चों में जाती है. भारत में हर साल 10 हजार से अधिक बच्चे इस बीमारी के साथ जन्म लेते हैं. इनमें से कई बच्चों की मौत भी हो जाती है. शरीर में खून की कमी, ट्रांसप्लांट के लिए डोनर न मिलना जैसे फैक्टर मौत का कारण बनते हैं. आइए इस बीमारी के बारे में एक्सपर्ट्स से डिटेल में जानते हैं.
मैक्स हॉस्पिटल में ऑन्कोलॉजी विभाग में डॉ रोहित कपूर बताते हैं कि थैलेसीमिया बीमारी एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. यानी कि ये बीमारी माता-पिता से बच्चों में फैलती है. इस बीमारी में शरीर में रेड ब्लड सेल्स कम मात्रा में बनती हैं. इससे शरीर में खून की कमी हो जाती है. ऐसे में बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. ज्यादा खून चढ़ने की वजह से मरीज के शरीर में ज्यादा आयरन जमा होना शुरू हो जाता हैं. इसका असर हार्ट, लिवर और फेफड़ों पर पड़ता हैं.
कैसे होता है इलाज
डॉ कपूर के मुताबिक,थैलेसीमिया का इलाज मुमकिन है, बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए इस बीमारी का ट्रीटमेंट किया जाता है. इसके लिए एक टेस्ट किया किया जाता है इसको एचएलए कहते हैं. अगर मरीज का भाई या बहन फुल एचएलए मैच होते हैं तो ये डोनर बनते हैं . अगर मैच नहीं होता है तो फिर दूसरा डोनर खोजा जाता है. हालांकि हर मरीज के मामले में डोनर नहीं मिल पाता है. ऐसे में मरीज को खून चढ़ाया जाता है और ये कम्र चलता रहता है.
थैलेसीमिया के लक्षण
नारायणा हॉस्पिटल में कंसलटेंट-हेमेटोलॉजी, हेमाटो ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट डॉ सौम्या मुखर्जी बताती हैं कि थैलेसीमिया से पीड़ित मरीज में उम्र बढ़ने के साथ-साथ अलग अलग तरह की समसस्याएं हो सकती हैं. आमतौर पर थैलेसीमिया के लक्षण में एनीमिया हो जाता है. इसके अलावा बच्चे के जीभ और नाखून पीले पड़ने लगते हैं, बच्चे का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है. उसका वजन गिरने लगता है और वह काफी कमजोर हो जाता है.
थैलेसीमिया का बचाव
डॉ. सरिता रानी जायसवाल बताती हैं कि बीमारी से बचाव के तौर पर सबसे पहले थैलेसीमिक व्यक्ति को शादी से पहले अपने भाविक जीवनसाथी की जांच करवा लेनी चाहिए. महिलाएं गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं. हड्डियों को मजबूत रखने के लिए अच्छी डाइट लें, अपनी दवाइयां समय पर लें, इलाज को बीच में न छोड़े और नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें.