शिंदे, उद्धव से लेकर RSS तक की रैली…दशहरा पर सेट हो गया महाराष्ट्र का चुनावी एजेंडा?

महाराष्ट्र में इस बार की दशहरा रैलियां शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन गई हैं. वजह राज्य में अगले महीने प्रस्तावित विधानसभा का चुनाव है. बीड से लेकर नागपुर तक की इन रैलियों में नेता और पार्टियां अपना-अपना एजेंडा सेट करने जुट गए हैं. दिलचस्प बात है कि पहली बार महाराष्ट्र में दशहरा के मौके पर 3 पार्टियों ने वीडियो टीजर भी जारी किया है. ये सभी टीजर चुनाव को देखते हुए ही बनाया गया है.
दशहरा पर पार्टी और नेताओं की कवायद के इतर सवाल उठ रहा है कि क्या ये रैलियां पार्टियों के लिए फायदेमंद साबित हो पाएगी?
नागपुर से लेकर बीड तक दशहरा की रैली
नागपुर में शनिवार सुबह मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दशहरा रैली को संबोधित किया. भागवत का भाषण बांग्लादेश और वहां के हिंदुओं की स्थिति पर केंद्रित रहा. नागपुर के बाद बीड में दशहरा की 3 रैली है.
एक रैली मराठा नेता मनोज जरांगे की है. जरांगे बीड में रैली कर पूरे मराठवाड़ा को साधना चाहते हैं. मराठवाड़ा महाराष्ट्र चुनाव के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. बीड में धनंजय मुंडे और उनकी चचेरी बहन पंकजा की रैली है.
दोनों ही ओबीसी समुदाय के नेता माने जाते हैं. मराठा और ओबीसी इन दिनों महाराष्ट्र में आमने-सामने हैं. मुंबई की बात करें तो यहां पर 3 रैलियां प्रस्तावित है. एक रैली शिवाजी पार्क में है, जिसे उद्धव ठाकरे संबोधित करेंगे.
दशहरा पर शिवाजी पार्क की रैली को पहले बालासाहेब ठाकरे संबोधित करते थे. एकनाथ शिंदे बांद्रा-कुर्ला मैदान में रैली को संबोधित करेंगे. यह मैदान मातोश्री से कुछ ही दूर पर स्थित है. मातोश्री उद्धव ठाकरे का घर है.
दशहरा की रैली शक्ति प्रदर्शन क्यों?
1. महाराष्ट्र में चुनाव, सब अपना एजेंडा सेट कर रहे
महाराष्ट्र में अब से एक महीने बाद विधानसभा चुनाव का बिगुल बज जाएगा. चुनावी साल होने की वजह से बड़ी से लेकर छोटी पार्टियां तक अपना-अपना एजेंडा सेट करने में जुटी है. पार्टी के अलावा नेता भी अपने इलाके में दमखम दिखा रहे हैं.
महाराष्ट्र में विजयादशमी के पर्व को काफी अहम माना जाता है. ऐसे में नेताओं इसके जरिए अपने-अपने कार्यकर्ताओं के भीतर जान भी फूंकने की कोशिश कर रहे हैं.
राजनीतिक दलों के अलावा आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे मराठी नेता मनोज जरांगे ने भी बीड में अपने कार्यकर्ताओं को बुलाया है. जरांगे इसके जरिए शक्ति प्रदर्शन करना चाहते हैं.
2. हिंदुत्व की छवि को मजबूत करने की कवायद
महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. विजयादशमी की रैली को यहां हिंदुत्व की छवि को मजबूत करने के तौर पर ही देखा जाता रहा है. विजयादशमी पर सबसे पहले रैली की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने की थी.
बालासाहेब ठाकरे ने जब शिवसेना की स्थापना की थी, तब उन्होंने भी हर साल दशहरा पर रैली करने की परंपरा शुरू की. संघ प्रमुख की तरह ही शिवसेना इसके जरिए अपना विचार लोगों तक पहुंचाने का काम करती है.
3. रैली पर राजनीतिक दलों के टीजर जारी
दशहरा की रैली पर अभी तक 3 पार्टियों की तरफ से टीजर जारी किया है. पहला टीजर शिंदे गुट की तरफ से जारी किया गया है. इस टीजर में दिखाया गया है कि शिंदे शिवसेना को कांग्रेस से बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वहीं उद्धव गुट ने शिंदे गुट के जरिए बीजेपी को निशाने पर लिया है.
उद्धव के टीजर में विश्वासघात और गद्दार जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है. एक टीजर शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने भी किया है. पवार की टीजर में एकनाथ शिंदे, अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधा गया है.
दशहरा की रैली पार्टियों के लिए कितना फायदेमंद?
दशहरा की इन रैलियों से नंबर गेम पर असर हो ना हो, लेकिन सियासी माहौल जरूर बनता है. 2023 की रैली में उद्धव ठाकरे ने गद्दारी, मराठा आंदोलन और 400 पार के नारे को मुद्दा बनाया था. महाराष्ट्र के चुनाव में इन मुद्दों की गूंज रही और बीजेपी को नुकसान हुआ.
इस बार जहां शिवसेना (शिंदे) ने कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन को बड़ा मुद्दा बनाया है. वहीं दूसरी तरफ उद्धव गुट के निशाने पर गद्दारी और बगावत ही है. आरएसएस ने बांग्लादेश के हिंदू और संस्कृति का मुद्दा उठाकर हिंदुत्व के मुद्दों को धार देने की कोशिश की है.

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