हरियाणा में निर्दलीय विधायक का निधन, विधानसभा के नंबर गेम में बीजेपी को एक और झटका

हरियाणा में निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन के बाद राज्य की नायब सिंह सैनी सरकार एक और मुश्किल में फंस गई है. राकेश हरियाणा की बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक थे, जो कि गुरुग्राम जिले के अंतर्गत आती है. शनिवार को हार्ट अटैक की वजह से उनकी मौत हो गई. निर्दलीय विधायक की मौत के बाद पहले से अल्पमत में चल रही नायब सिंह सैनी सरकार के सामने बहुमत का आंकड़ा हासिल करना एक बड़ी चुनौती बन गई है. तीन निर्दलीय विधायकों की ओर से समर्थन वापस लिए जाने के बाद पहले से अल्पमत में चल रही सैनी सरकार के पास एक और विधायक की कमी हो गई है.
हरियाणा में बीजेपी के पास 40 विधायक हैं और एक राकेश और एक हरियाणा लोकहित पार्टी विधायक गोपाल कांडा का समर्थन प्राप्त है. इस हिसाब से देखें तो बीजेपी के पास कुल 42 विधायक हैं, लेकिन राकेश के निधन के बाद यह आंकड़ा 41 पहुंच गया है. अब सैनी को अपनी सरकार बचाने के लिए 3 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी जबकि पहले दो के समर्थन से ही बात बन जाती.
राकेश की मौत के बाद 90 विधायक दल वाले सदन में फिलहाल कुल 87 विधायक बचे हैं. लोकसभा चुनाव लड़ रहे और विधायक पद से इस्तीफा दे चुके बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर और रणजीत चौटाला पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं. इस्तीफों और निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद की मौत की वजह से तीन विधायक पद खाली हैं. मौजूदा स्थिति में हरियाणा में किसी भी सरकार को सदन में बहुमत के लिए 44 विधायकों का समर्थन होना जरूरी है. अब देखना होगा बीजेपी तीन सीटों की कमी कैसे पूरी करेगी या इसका फायदा विपक्षी पार्टियां उठा ले जाएंगी.
क्या है हरियाणा का नंबर गेम?
हरियाणा में बीजेपी के पास 40 विधायक हैं और एक निर्दलीय और एक हरियाणा लोकहित पार्टी विधायक गोपाल कांडा का समर्थन उसको प्राप्त है. इस तरह से बीजेपी गठबंधन के पास 42 सीटें होती थीं, जो बहुमत से दो सीट दूर थी. वहीं विपक्षी पार्टियों की बात करे तो, कांग्रेस के पास कांग्रेस के 30 और 3 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है. हरियाणा की क्षेत्रीय पार्टी JJP के पास 10 विधायक हैं, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के पास एक और बलराज कुंडू के तौर पर एक और निर्दलीय विधायक का साथ हैं.
अगर इन सभी को साथ जोड़ दिया जाए तो सीटों की संख्या 45 बैठती है, लेकिन ऐसा होना फिलहाल असंभव लग रहा है क्योंकि चर्चा है कि जेजेपी कांग्रेस के समर्थन देने के मुड में नहीं है. इसके अलावा आईएनएलडी के साथ भी उसके मतभेद हैं. यही वजह है कि हरियाणा में सरकार के अल्पमत होने के बाद भी विपक्षी पार्टियां ज्यादा एकजुट नजर नहीं आई हैं.
उपचुनाव पर भी टिकी हैं नजरें
लोकसभा चुनाव के साथ-साथ करनाल में विधानसभा का उप-चुनाव भी हो रहा है. पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई थी. इस सीट से नायब सिंह सैनी चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में अगर उप-चुनाव में सैनी की जीत हो जाती है तो यह बीजेपी की राह और आसान कर देगी. खट्टर ने 2014 और 2019 में इस सीट से जीत हासिल की थी.
फिलहाल सरकार को कोई खतरा नहीं
हरियाणा की राजनीति में इसलिए भी उथल पुथल नहीं मची है क्योंकि इसी साल 13 मार्च को नायब सिंह सैनी ने विधानसभा में बहुमत साबित किया था. कानून के मुताबिक, एक बार बहुमत साबित करने के बाद छह महीने तक विधानसभा में कोई बहुमत परीक्षण नहीं होता है. इस हिसाब से देखें तो सैनी सरकार के पास 13 सितंबर तक का समय है. इसके बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव का दौर शुरू हो जाएगा.

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