हेमंत सोरेन या फिर BJP… आखिर किसके ट्रैप में फंसे झारखंड के पूर्व CM चंपई?

चौबे गए थे छब्बे बनने, दुबे बनकर लौटे… ये कहावत चंपई सोरेन पर बिल्कुल सटीक बैठ रही है. चंपई सोरेन झारखंड से कोलकाता के जरिए दिल्ली पहुंचे थे. यहां पहुंचकर उनकी योजना हेमंत सोरेन की सरकार को झटका देने की थी, लेकिन सारी योजना को झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने एक झटके में फेल कर दी. चंपई को पूरा भरोसा था कि उनके साथ खराब हालत में भी कोल्हाण के चार विधायक तो आएंगे ही, लेकिन चंपई को एक भी विधायक का साथ नहीं मिला.
इसलिए चंपई सोरेन का मकसद दिल्ली में चकनाचूर हो गया. जाहिर है चंपई का वेलकम दिल्ली में बड़े नेता करने वाले थे, लेकिन चंपई की राजनीतिक ताकत की हकीकत को देखकर दिल्ली में बीजेपी के बड़े नेताओं ने कन्नी काट ली. इसलिए चंपई की सारी योजना धरी की धरी रह गई.
बीजेपी के ट्रैप में कैसे फंसे चंपई सोरेन?
सूत्रों के मुताबिक, चंपई सोरेन के राजनीतिक और मीडिया सलाहकार के जरिए बीजेपी उनको ये समझाने में कामयाब हुई कि उनके साथ गलत हुआ है. जिस तरह से उन्हें सीएम के पद से हटाया गया है वो उनके सम्मान पर बड़ा प्रहार है. इसलिए एक आदिवासी नेता के तौर पर उन्हें इस मुद्दे को जनता के बीच उठाना चाहिए और हेमंत सोरेन के खिलाफ बगावत करना चाहिए.
बीजेपी चंपई सोरेन को कोल्हाण का बड़ा नेता मानती है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हाण में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा था. इसलिए बीजेपी हेमंत सोरेन के जेल जाते ही चंपई सोरेन पर डोरे डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही थी. सूत्र बताते हैं कि जेल में रहते हुए हेमंत सोरेन की पूरी नजर झारखंड के सरकार पर थी. चंपई ने केंद्र की ओर से कानून में संशोधन को जिस तरह से अखबार में बड़े बड़े विज्ञापनों के सहारे समर्थन दिया था उससे जेएमएम ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी खासा नाराज थी.
जेल से निकलते ही हेमंत ने सीएम कुर्सी वापस ली
इसलिए हेमंत सोरेन जैसे ही जेल से बेल पर बाहर आए, कांग्रेस ने फौरन उन्हें गद्दी संभालने का फरमान सुनाकर सब कुछ दुरुस्त करने को कहा. हेमंत सोरेन जेल से बाहर आते ही चंपई सोरेन को तमाम कार्यक्रमों में जाने से रोक दिया. घटक दलों की मीटिंग बुलाकर खुद को फिर से नेता साबित कर सीएम की कुर्सी हथियाने में देर नहीं की. जाहिर है चंपई ये सब बुझे हुए मन से देख रहे थे लेकिन विधायकों और पार्टी में अलग-थलग पड़े होने की वजह से बगावत करने की स्थिति में नहीं थे.
यही वजह थी कि मुख्यमंत्री से हटाए जाने के बाद भी चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन की सरकार में एक बार फिर से मंत्री का पद संभाल कर काम करना ही बेहतर समझा. तकरीबन एक महीने बाद चंपई का दर्द बाहर आना शुरू हो गया था. हेमंत सोरेन अपनी पार्टी और विधायकों को एकजुट रखने की कवायद में जुट गए थे. चंपई सोरेन के कार्यकाल को बीजेपी बेहतर बताकर डोरे डालने में जुट गई थी. वहीं चंपई सोरेन अपने समर्थकों के साथ हेमंत सोरेन को अपने अपमान का जवाब देने का मन बना चुके थे. लेकिन ऐन वक्त पर चंपई का सारा खेल हेमंत सोरेन ने खराब कर दिया और चंपई अकेले दिल्ली से बैरंग लौटने को मजबूर हुए.
चंपई सोरेन का खेल हेमंत सोरेन ने कैसे खराब किया?
चंपई सोरेन को उम्मीद थी कि 6-7 नहीं तो कम से कम कोल्हाण के चार विधायकों का साथ उन्हें जरूर मिलेगा. लेकिन इनमें से एक ने भी चंपई सोरेन का साथ न देकर उल्टा हेमंत सोरेन से मिलने उनके आवास पर पहुंच गए. बहरागोड़ा से जेएमएम विधायक समीर मोहंती, जुगसलाई से मंगल कालिंदी, घाटशिला से रामदास सोरेन और पोटका से संजीव सरदार हेमंत सोरेन के पास पहुंचकर अपनी वफादारी का सबूत पेश करने पहुंच गए .
वैसे कोल्हाण से एक और बड़े नेता दशरथ गगरई हेमंत सोरेन के आवास पर नहीं पहुंचे. सूत्र बताते हैं कि हेमंत सोरेन ने अपने खुफिया विभाग को एक्टिव कर सारे विधायकों पर नजर बनाए रखी और दशरथ गगरई को कोल्हाण के बड़े नेता के तौर पर पेश करने की हां भर उन्हें बेवफाई करने से रोक दिया. जाहिर है ये वो खास विधायक हैं जो चंपई सोरेन के साथ जा सकते थे, लेकिन हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार पर मजबूत पकड़ कायम रखते हुए चंपई के सारे दांव को फेल कर दिया. सूत्रों के मुताबिक दशरथ गगई को अब इनाम दिया जा सकता है और कोल्हाण के बड़े नेता के तौर पर कमान उन्हें सौंपी जा सकती है.
बीजेपी चंपई के कंधे पर हाथ रख किस फिराक में थी?
झारखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक है. इसलिए पक्ष और विपक्ष अपने किले को मजबूत करने में जुट गए हैं. बीजेपी इस फिराक में थी कि अगर चंपई सरकार गिराते हैं तो इल्जाम जेएमएम के एक नेता पर लगता न कि बीजेपी पर. वहीं सरकार गिरने के बाद राष्ट्रपति शासन में चुनाव होगा और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता था.
ऐसा इसलिए क्योंकि कहा जाता है कि सत्ताधारी दल को चुनाव में अपने मनमाफिक अफसरों के जरिए लाभ मिलता है. वहीं, हेमंत सोरेन आदिवासी नेताओं का सम्मान नहीं करते हैं, ये मैसेज जनता के बीच पहुंचाने में बीजेपी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी. आदिवासियों के हिमायती के तौर पर विधानसभा चुनाव में वोट हासिल करने में कामयाब रहेगी. इसलिए चंपई सोरेन के जरिए बीजेपी जेएमएम को बड़ा झटका देना चाह रही थी, लेकिन झारखंड के पूर्व सीएम के हाथ दिल्ली पहुंचने के बाद कुछ खास नहीं लगा है.
चंपई को लेकर क्या सोच रही है बीजेपी?
बीजेपी में बड़े नेतृत्व में अब ये सोच घर कर गया है कि चंपई सोरेन को लेकर जो भी फैसला करे वो झारखंड का स्थानीय नेतृत्व करे तो ज्यादा बेहतर होगा. ऐसे में जाहिर है अधर में चंपई का भविष्य लटक गया है. वैसे बीजेपी पिछले चुनाव में कोल्हाण में काफी खराब प्रदर्शन की थी. इसलिए कहा जा रहा है कि रांची या जमशेदपुर में बीजेपी में शामिल करा कोल्हाण में चुनाव जीतने की रणनीति से चंपई को पार्टी में शामिल कराया जा सकता है.
चंपई की एंट्री को झारखंड बीजेपी में तीन पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास इसे सहज तरीके से लेंगे इसको लेकर कानाफुसी तेज हो गई है. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन को दुमका से चुनाव लड़ाया था, जो हार में तब्दील हुआ. दुमका बीजेपी की जीती हुई सीट थी, लेकिन 2024 में सीता सोरेन बीजेपी उम्मीदवार होने के बावजूद चुनाव जीतने में असफल रही हैं.

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