कुर्सी में जड़वा दिया 1100 किलो सोना, हीरे-जवाहरात के सिंहासन पर बैठ करते थे शौच; कौन थे वो रईस
आजादी के समय भारत में 562 देशी रियासतें हुआ करती थीं. सबके अपने शासक, राजा, नवाब और निजाम थे. इन राजा-महाराओं के शौक निराले थे. शिकार से लेकर मोटरें, खेलकूद, महल और हरम अपने आप में अनूठा था. राजाओं को सबसे अधिक लगाव हीरे-जवाहरात और मोतियों से था. बड़ौदा के महाराजा (King Of Baroda) एक तरह से सोने और हीरे-जवाहरात की पूजा किया करते थे. वह अपने दरबार में जो पोशाक पहनकर आते थे, वह सोने की तार की बुनी हुई होती थी और उनकी रियासत में एक ही परिवार ऐसा था, जिसे उसके तारों को बुनने की अनुमति थी.
एक ही परिवार बनाता था कपड़े
इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ”फ्रीडम एट मिडनाइट” (Freedom at Midnight) में लिखते हैं कि जो परिवार महाराजा बड़ौदा की पोशाक तैयार करता था, उस परिवार के हर आदमी के नाखून इतने लंबे बढ़ा दिए जाते थे, कि उनमे कंघियों जैसे दांतें काटे जा सकें. फिर नाखून की इन्हीं कंघियों से वे सोने के तार का ताना-बाना बिलकुल सीधा रखकर गठा हुआ कपड़ा बुनते थे.
सितार-ए-दक्खन के मालिक
बड़ौदा के महाराजा के पास हीरे-जवाहरात का जो ऐतिहासिक संग्रह था, उसमें दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा सितार-ए-दक्खन भी शामिल था. यह हीरा कभी फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय ने अपनी प्रेयसी यूजीन को दिया था. उनके इस रत्न भंडार में सबसे बहुमूल्य वस्तु मोतियों के बने हुए कई परदे थे, जिन पर लाल और हरे जवाहरात से बहुत खूबसूरत बेल-बूटे बनाये गये थे.