1980 के बाद पैदा हुए लोगों में क्यों है मंकीपॉक्स का ज्यादा खतरा? एक्सपर्ट्स से जानें

मंकीपॉक्स वायरस के मामले अब लगातार बढ़ रहे हैं. अफ्रीका के बाद स्वीडन से लेकर पाकिस्तान तक ये वायरस पांव पसार चुका है. भारत भी इसके केस आने का खतरा है. ऐसे में सरकार अलर्ट है और अस्पतालों को मंकीपॉक्स मरीजों के इलाज के लिए तैयार किया गया है. मंकीपॉक्स भी एक संक्रामक बीमारी है जो एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. कुछ मामलों में ये वायरस मौत का कारण बन सकता है. ऐसे में एक्सपर्ट्स ने बचाव की सलाह दी है. खासतौर पर जिन लोगों ने 1980 के बाद जन्म लिया है उनको विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा की 1980 के बाद जन्मे लोगों को मंकीपॉक्स का रिस्क अधिक क्यों है? इस बारे में जानते हैं.
एक्सपर्ट्स बताते हैं की मंकीपॉक्स और स्मालपॉक्स वायरस के लक्षण लगभग एक जैसे हैं. मंकीपॉक्स भी स्मालपॉक्स परिवार का ही एक वायरस है. जिसकी शुरुआत कई दशकों पहली अफ्रीक से हुई थी. यह वायरस बंदरों से इंसानों में फैला था और इसके बाद एक से दूसरे व्यक्ति में मंकीपॉक्स का ट्रांसमिशन हुआ था. मंकीपॉक्स और स्मालपॉक्स के वायरस का प्रभाव भी कई मामलों में एक जैसा है. ऐसे में जिन लोगों को स्मालपॉक्स का टीका लग चुका है उनको मंकीपॉक्स से रिस्क कम हो सकता है.
1980 के बाद पैदा हुए लोगों में मंकीपॉक्स का खतरा ज्यादा क्यों है?
दुनियाभर में 1960 से लेकर 1970 तक स्मालपॉक्स वायरस के काफी मामले आए थे. इस वायरस से बचाव के लिए स्मालपॉक्स की वैक्सीन से बड़े पैमाने पर टीकाकरण किया गया. देखते ही देखते केस कम होने लगे और साल 1980 के आते आते स्मालपॉक्स के केस आने बंद हो गए. 1980 में WHO ने स्मालपॉक्स बीमारी को खत्म घोषित कर दिया और इसका टीकाकरण खत्म कर दिया गया. केवल 1980 तक पैदा हुए बच्चों को जन्म के समय स्मालपॉक्स यानी चेचक की वैक्सीन लगी थी. उसके बाद इसका वैक्सीनेशन नहीं हुआ. चूंकि 1980 से पहले वालों लोगों को स्मालपॉक्स की वैक्सीन लग चुकी है तो उनको मंकीपॉक्स से खतरा कम हो सकता है.
स्मालपॉक्स की वैक्सीन कितनी कारगर?
महामारी विशेषज्ञ डॉ जुगल किशोर बताते हैं कि साल 1980 तक पैदा हुए लोगों को चेचक का टीका लगा है. ऐसे में उनको दूसरे लोगों की तुलना में मंकीपॉक्स का खतरा कम होगा. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि चेचक का टीका लगवा चुके लोगों को मंकीपॉक्स नहीं हो सकता है. वायरस उनको संक्रमित कर सकता है लेकिन इस बात की आशंका कम है कि लक्षण गंभीर होंगे. ऐसे में सतर्क रहने की जरूरत है.
इस बार मंकीपॉक्स का स्ट्रेन भी बदला हुआ है ऐसे में खतरा अधिक है. फिलहाल मंकीपॉक्स को लेकर अलर्ट रहना होगा. एयरपोर्ट पर निगरानी बढ़ानी होगी. अगर किसी में फ्लू और शरीर पर दाने निकलने की समस्या दिख रही है तो उस व्यक्ति को जल्द से जल्द आईसोलेट करना होगा. हालांकि ये वायरस कोविड जितना संक्रामक नहीं है और लेकिन इसमें डेथ रेट भी अधिक हो सकता है.
क्या अब लगवा सकते हैं स्मालपॉक्स वैक्सीन?
डॉ किशोर बताते हैं कि साल 2022 में जब मंकीपॉक्स के मामले अमेरिका औक यूरोप में आए थे तब इन देशों में मंकीपॉक्स से बचाव के लिए स्मालपॉक्स के टीके Jynneos और ACAM2000 से टीकाकरण किया था, हालांकि भारत में स्मालपॉक्स की वैक्सीन मौजूद नहीं है 1980 में स्मालपॉक्स को WHO ने दुनिया से खत्म घोषित कर दिया था तो उसके बाद इसकी वैक्सीन भारत में नहीं बनी है. केवल अमेरिका और रूस में ही यह वैक्सीन लैब में मौजूद है. इसलिए ऐसा नहीं है की अब कोई भी स्मालपॉक्स की वैक्सीन लगवा सकता है. ऐसे में जरूरी है कि लोग सतर्क रहें और खुद का मंकीपॉक्स से बचाव करें.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *