ये हैं काशी की राजमाता जमुना देवी, मणिकर्णिका घाट पर गद्दी संभालने वाली डोमराजा परिवार की अकेली महिला
अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा में वह पूरे परिवार के साथ शामिल हुई थीं। जमुना देवी डोमराजा परिवार की अकेली महिला हैं जो अपनी पारी में गद्दी संभालती हैं।पति के मर गईले के बाद सब कुछ बर्बाद हो गयल, कोठी में भी केहू साथ देवे वाला ना रहल। हमरे भईया शिवपुर सेंट्रल जेल में जेलर रहलन। ओनसे मदद ले के कोर्ट कचहरी गइली। तब जा के मसाने पर काम करे क मौका मिलल। एक महीना में तीन दिन और आधा दिन क पारी मणिकर्णिका घाट पर मिल जाला। एक दिन में 25 से 30 हजार रुपया क कमाई हो जाला। ओही से गुजारा होला…। ये कहना है डोमराजा अनिल चौधरी की माता जमुना देवी का।
जमुना देवी काशी के डोमराजा परिवार की राजमाता हैं। अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा में वह पूरे परिवार के साथ शामिल हुई थीं। जमुना देवी डोमराजा परिवार की अकेली महिला हैं जो अपनी पारी में गद्दी संभालती हैं।75 साल की जमुना देवी हिस्सेदारी में मिले पूरे महीने के केवल साढ़े तीन दिन की पारी को अपने परिवार की विरासत समझकर कर्तव्य का निर्वहन करती हैं। एक महिला होने के कारण श्मशान घाट पर जाना और शवों को आग देना बहुत कठिन काम है। अपने जीवन के संघर्ष के दिनों को याद करते हुए उनकी आंखें भर आती हैं।
जमुना देवी की शादी महज नौ साल की उम्र में हो गई थी। शादी के चार साल के बाद ही पति का देहांत हो गया। जायदाद की लालच में दशाश्वमेध पर कोठी में रहने वाले परिवार के अन्य लोगों ने उनका सहयोग नहीं दिया। बहुत दिनों तक मायके रहने के बाद उन्होंने अपने भाई की मदद ली। सेंट्रल जेल में जेलर रहे उनके भाई ने कोर्ट में याचिका दायर की। मुकदमा लड़ा। तब जा के हक मिला। पति का काम करने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया। तब से वह कोठी को छोड़कर हरिश्चंद्र घाट पर ही रहती हैं। जमुना कहती हैं, परिवार से सहयोग न मिलने और पेट पालने के लिए मजबूरी में यह काम शुरू किया।
नहीं चाहतीं कि दूसरी महिला मसान पर जाए
डोम परिवार के बच्चों के लालन-पालन और उनकी शिक्षा पर जमुना देवी का कहना है कि उनके बच्चे पढ़ नहीं पाते। बचपन से ही वे इन कामों में लग जाते हैं, लेकिन अब समाज जागरूक हो रहा है। बच्चे स्कूल जाते हैं। कहती हैं कि मसान घाट ही इन बच्चों के खेलने का मैदान है। वे वहीं लाशों को देखते हुए बड़े होते हैं और इन्हीं कामों में लग जाते हैं। जमुना देवी नहीं चाहती हैं कि उनकी तरह कोई दूसरी महिला भी मसान पर जाए। लाशों के बीच रहे। रोते-बिलखते लोगों को देखे।
प्रभु श्रीराम के दर्शन कर जीवन धन्य हो गया
अयोध्या में खास मेहमान के तौर बुलाए जाने के बारे में जमुना कहती हैं कि मेरा भतीजा जगदीश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बना था। पीएम जब भी आते थे जगदीश से जरूर मिलते थे। जगदीश की मृत्यु के बाद भी उनका हमारे परिवार से खास जुड़ाव है। यही वजह है कि हमें रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण मिला। प्रभु के दर्शन कर जीवन धन्य हो गया। उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से आने-जाने और रहने का इंतजाम किया गया था। वहां कोई परेशानी नहीं हुई। यहां से बाबा मसान का तीन किलो का चांदी का त्रिशूल लेकर गई थीं।