जम्मू-कश्मीर में दिखेगा एक और बदलाव, 33 शिक्षण संस्थानों-सड़कों का नाम अब शहीदों के नाम पर
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 33 सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और सड़कों के नाम को बदलकर अब शहीदों और प्रतिष्ठित हस्तियों के नाम पर रख दिया है. सरकार ने अपने आदेश में प्रशासनिक सचिवों को प्रभावी बनाने के लिए अपने रिकॉर्ड में संशोधन करने सहित तत्काल आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया हैं. ऐसा पहली बार है जब जम्मू-कश्मीर में इस तरह की पहल की जा रही है.
साल 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने यह पहल शुरू की. जहां सरकारी बुनियादी ढांचे का नाम अन्य संपत्तियों, पहलों के पिछले नामों की तुलना में शहीद बहादुरों के नाम पर रखा गया था. कश्मीर में 33 सरकारी संपत्तियों में से दो अनंतनाग में है जबकि 31 सरकार बुनियादी ढांचे जम्मू क्षेत्र में है.
जिन लोगों के नाम पर संस्थानों और इमारतों के नाम रखे गए हैं उनमें स्वर्गीय हिमायूं मुजामिल भट का नाम भी शामिल है. भट्ट जो कि डिप्टी एसपी थे. पिछले साल अनंतनाग में एक मुठभेड़ के दौरान उनकी मौत हो गई थी. अब अनंतनाग में गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज का नाम इन्ही के नाम पर होगा. इसके अलावा श्रीनगर के गवर्नमेंट बॉयज हाई स्कूल का नाम भी अब स्वर्गीय मसरूर अली वानी के नाम पर होगा. मसरूर अली वानी एक पुलिस इंस्पेक्टर थे जो कि आतंकवादियों के हमले में शहीद हो गए थे.
पिछले महीने बारामूला स्टेडियम का बदला था नाम
गौरतलब है कि पिछले महीने जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बारामूला जिले में एक स्टेडियम का नाम बदलकर पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत के नाम पर रखा था. देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की दूसरी पुण्यतिथि पर उत्तरी कश्मीर जिले के जांबाजपोरा इलाके में स्थित झेलम स्टेडियम का नाम बदलकर ‘जनरल बिपिन रावत स्टेडियम’ कर दिया गया.
इससे पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मुख्य चौक बारामूला का नाम बदलकर पुलिसकर्मी मुदासिर अहमद उर्फ बिंदास के नाम पर ‘बिंदास चौक’ कर दिया था, जो इस साल 25 मई को उत्तरी जिले के क्रेरी इलाके में एक मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे. इस तरह से जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पिछले साल जनवरी में 57 स्कूलों और पुलों का नाम बदलकर शहीदों और प्रतिष्ठित हस्तियों के नाम पर रखा था.
नाम बदलने के पीछे क्या है उद्देश्य?
जम्मू-कश्मीर प्रशासन के इस कदम का उद्देश्य राष्ट्र के प्रति शहीदों के सर्वोच्च बलिदान को अमर बनाना है. श्रद्धांजलि के प्रतीक के रूप में, जम्मू कश्मीर ने पहली बार अक्टूबर 2021 में भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के जश्न के हिस्से के रूप में संस्थानों का नाम शहीदों और प्रतिष्ठित हस्तियों के नाम पर रखने की घोषणा की थी.
बता दें की जम्मू कश्मीर घाटी के लोग और सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्राओं ने प्रशासन के इस कदम का स्वागत किया है. लोगों का मानना है कि घाटी में आतंकवाद के चलते देश के लिए बलिदान देने वाले सिपाही और सामाजिक शख्सियतों को बेहतर स्थान मिल रहा है.
फैसले की हो रही सराहना
छात्रों ने इस कदम का स्वागत करते नजर आ रहे हैं और मानते हैं कि घाटी में आतंकवाद के चलते देश के लिए बलिदान देने वाले सिपाही और समाजी शख्सियतों को कोई स्थान नहीं मिल रहा था , लोग उनके दौर की खाली बातों तक ही सीमित रखते थे. अधिकतर लोगों का कहना हैं कि जम्मू कश्मीर के लेखकों से लेकर शहीद होए जवानों को भी आने वाली पीढ़ी याद करेगी.