न डिप्टी सीएम-न सांसद… बिहार में बीजेपी को अपने दम पर चलाने वाले सुशील मोदी के लिए क्या है पार्टी का प्लान?

बिहार में एनडीए की सरकार बनने का जश्न आज मन रहा है. लेकिन बिहार बीजेपी का एक बड़ा नाम इस जश्न के बीच कहीं गुम होता दिख रहा है. साल 2020 से पहले लगातार नीतीश कुमार के साथ उपमुख्यमंत्री रहने वाले शख्सियत सुशील मोदी अब बीजेपी की एक्टिव पॉलिटिक्स से किनारे होते दिख रहे हैं. इसकी वजह भी है. पहले साल 2020 में सुशील मोदी को उप-मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया और उन्हें राज्यसभा भेजकर बीजेपी ने सुशील मोदी की सेवा राज्यसभा सदस्य के तौर पर लेती रही.

कल यानी रविवार को बिहार कोटे से दो राज्यसभा सदस्य बनाए जाने थे जिनमें सुशील मोदी का नाम नदारद रहा. इसके बाद अब ये कयास लगने लगा है कि बिहार की सियासत में पिछले तीन दशक से धमाकेदार मौजूदगी रखने वाले सुशील मोदी क्या हाशिए पर धकेल दिए गए हैं?

सुशील मोदी के नाम नहीं होने का मतलब क्या है?

सुशील मोदी साल 2005 से 2020 तक लगातार नीतीश कुमार के साथ उपमुख्यमंत्री पद पर बने रहे हैं. साल 2013-14 में जेडीयू जब बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ गई थी तब भी वो नीतीश कुमार के कैबिनेट में नहीं थे. लेकिन साल 2017 में दोबारा नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे.कहा जाता है कि साल 2000 से 2014 तक बिहार बीजेपी में सुशील मोदी के बगैर बीजेपी की राजनीति शुरू ही नहीं होती थी. लेकिन केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सत्ता आने के बाद सुशील मोदी के दिन पहले जैसे नहीं रहे ये साफ दिखने लगा था.

इसकी बड़ी वजहें भी हैं और वो वजह उस लंच का कैंसिल किया जाना बताया जाता है जिसको नीतीश कुमार ने साल 2013 में तत्कालीन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के बिहार आने पर कैंसिल कर दिया था. बहरहाल साल 2017 में सुशील मोदी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर बने रहते हुए उपमुख्यमंत्री तो बने थे. लेकिन बिहार में नए नेतृत्व की तलाश जारी थी. बिहार प्रदेश अध्यक्ष पद पर डॉ संजय जायसवाल हों या नित्यानंद राय, बीजेपी लगातार नए नेताओं को आगे बढ़ाकर वैकल्पिक नेतृत्व की तलाश कर रही थी. अब प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सम्राट चौधरी हैं, वहीं उपमुख्यमंत्री पद पर सम्राट चौधरी समेत विजय सिन्हा विराजमान हैं जो कभी सुशील मोदी के खास होने के दम पर लखीसराय से विधानसभा का टिकट हासिल करने में कामयाब हुआ करते थे.

भीम सिंह और धर्मशीला गुप्ता के नाम का ऐलान

रविवार को जिन दो नाम को राज्यसभा के लिए चुना गया है वो हैं डॉ भीम सिंह और धर्मशीला गुप्ता. दोनों पिछड़े और अति पिछड़े समाज से हैं. डॉ भीम सिंह चंद्रवंशी समाज से आते हैं वहीं धर्मशीला गुप्ता तेली समाज की बताई जा रही हैं. ज़ाहिर है पिछड़े और अति पिछड़े समाज के उम्मीदवारों को बीजेपी राज्यसभा भेजकर बिहार में इनके बीच गहरी पैठ बनाने के लगातार प्रयास कर रही है.

बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ० निखिल आनंद इस बारे में एक्स पर कमेंट करते हुए लिखते हैं कि ‘भाजपा ओबीसी-ईबीसी की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है’. डॉ निखिल आनंद के मुताबिक पीएम नरेंद्र मोदी देश के वंचित- शोषित समाज के नेतृत्व को लगातार मजबूत कर रहे हैं जो अपने आप में मिसाल है. डॉ आनंद केंद्रीय मंत्रिमंडल में ओबीसी समाज के 27 मंत्रियों के शामिल होने का भी जोरदार हवाला दे रहे हैं, लेकिन बीजेपी इन दिनों जिस तरीके से नए नेतृत्व को मौके देते दिख रही है उससे सुशील मोदी सरीखे नेताओं का भविष्य अधर में लटकता दिख रहा है.

नए नेतृत्व को उभारने में कैसे जुट गई है बीजेपी

ये हाल सिर्फ बिहार में ही नहीं है. एमपी,राजस्थान, और छत्तीसगढ़ में नए सीएम को बहाल कर बीजेपी ने बड़ा दांव खेल दिया है. कहा जा रहा है कि विपक्ष की भयानक कमजोर स्थितियों को देखते हुए बीजेपी नए नए प्रयोग कर रही है जो एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का भी काट है वहीं नए नेताओं को मौका देकर बीजेपी कार्यकर्ताओं में ये भरोसा पैदा करने में कामयाब हो रही है कि बीजेपी में किसी भी छोटे कार्यकर्ताओं को मौका दिया जा सकता है. बिहार बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री पद न देकर राज्यसभा भेजना ही सुशील मोदी के लिए साफ इशारा था कि अब उनके सितारे गर्दिश में जा चुके हैं.

क्या अब मार्ग-दर्शक मंडल में दिखेंगे सुशील मोदी?

दरअसल सुशील मोदी 72 साल के हो चुके हैं और बिहार में पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में कई ऐसे सांसदों का टिकट काट रही है जो 70 साल की उम्र को पार कर चुके हैं. बीजेपी ऐसा एक रणनीति के तहत कर रही है. इसलिए बीजेपी के भीतर कई नेता दबी जुबान में ये स्वीकार कर रहे हैं कि बिहार बीजेपी में अब सुशील मोदी मार्ग-दर्शक मंडल में ही दिखेंगे. इस फेहरिस्त में कई और सांसदों का नाम बताया जा रहा है जिनमें रमा देवी,अश्वनी चौबे,राधा मोहन सिंह, छेदी पासवान जैसे नेता हैं, लेकिन बिहार बीजेपी के प्रवक्ता और विधायक मनोज शर्मा सुशील मोदी को हाशिए पर धकेले जाने की बात को सिरे से खारिज करते हैं. मनोज शर्मा कहते हैं कि बीजेपी अपने नेताओं के अनुभवों का प्रयोग सरकार से लेकर संगठन तक में करती रहती है. इसलिए सुशील मोदी को हाशिए पर धकेले जाने की बात करना बेमानी होगा.

दरअसल बीजेपी के कुछ नेता मानते हैं कि इस बार कई राज्यसभा के नेताओं को लोकसभा चुनाव में उतरना पड़ सकता है. इसलिए ये संभव है कि सुशील मोदी पार्टी के अनुभवी और पुराने चेहरे होने की वजह से फिर से भागलपुर से उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं, लेकिन सुशील मोदी को लोकसभा में उम्मीदवार बनाए जाने की बात करने वालों की संख्या बिहार बीजेपी में काफी कम है. कुछ लोग उम्मीद का हवाला देकर उनमें आगे तीन चार चाल एक्टिव राजनीति करने का भविष्य देख रहे हैं . वैसे ऐसा होगा ही ये कहने वाले लोगों में उम्मीद तो है लेकिन विश्वास का अभाव साफ नजर आता है.

बीजेपी में सुशील मोदी क्यों पड़ चुके हैं अलग थलग?

दरअसल राजनीति का पुराना दौर काफी बदल चुका है. फिलहाल राजनीति में शाह और मोदी की जोड़ी के अलावा बिहार के मसले पर जे पी नड्डा और धर्मेन्द्र प्रधान की सक्रियता नजर आती है. कहा जाता है कि केन्द्र में अरुण जेटली के निधन के बाद सुशील मोदी के लिए वकालत करने वाला कोई बच नहीं गया है. वहीं नए पौध को तैयार करने की जुगत में जुट चुकी बीजेपी अब पिछड़े और अति पिछड़े समाज से भी ऐसे लोगों को आगे ला रही है जिनमें आगे बीस से तीस साल की राजनीति शेष है.

जाहिर है सुशील मोदी वैश्य समाज से आते हैं. लेकिन उनका रूट बिहार में है इसको लेकर भी कई तरह की चर्चाएं होती रहती हैं. बिहार के ही रेणु देवी,तारकिशोर प्रसाद को मौका देकर बीजेपी पिछली बार पिछड़े और अति पिछड़े समाज में मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश करती दिखी है. वैसे में इस बार उपमुख्यमंत्री के तौर पर विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी को जगह देकर बीजेपी अगड़े और पिछड़े के बीच संतुलन कायम कर आगे की राजनीति करती दिख रही है.

72 साल के उम्र के पड़ाव पर पहुंचकर सुशील मोदी बीजेपी के कोटे से उपमुख्यमंत्री, राज्यसभा सदस्य, सांसद की शोभा बढ़ा चुके हैं. ऐसे में बीजेपी अब उनके अनुभवों को सहारा ले सकती है लेकिन भविष्य के तौर बीजेपी उनमें कोई खास मौका नहीं देख रही है. यही वजह है कि एक अनुशासित सिपाही की तरह राज्यसभा में दोबारा उम्मीदवार नहीं बनाए जाने पर सुशील मोदी ने कहा कि वो पार्टी के शुक्रगुजार हैं कि पार्टी ने उन्हें 33 वर्षों तक अलग अलग पद पर काम करने का अवसर प्रदान किया है.

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