Bhadohi Lok Sabha Seat: मोदी लहर से अब तक भदोही सीट पर BJP का कब्जा, इस बार ‘साइकिल-पंजा’ कस पाएंगे ‘शिकंजा’?
यूपी की 80 लोकसभा सीट में से एक है भदोही . इसे संत रविदास नगर के नाम से भी जाना जाता है.ये कालीन नगरी के नाम से भी प्रसिद्ध है. कालीन निर्माण और हस्तकला के लिए इस शहर को पूरी दुनिया में जाना जाता है. भदोही का राजनीतिक समीकरण समझने से पहले भूगोल पर एक नजर डालते हैं. भदोही के पूरब में वाराणसी और पश्चिम में प्रयागराज है. उत्तर में जौनपुर और दक्षिण में मिर्जापुर जिला है. भदोही का मुख्यालय शहर ज्ञानपुर है. इसमें कुल 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. 2008 में हुए परिसीमन के बाद भदोही लोकसभा सीट अस्तित्व में आया है. 2009 में नए सीट भदोही में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ और बसपा ने जीत दर्ज की. यहां से पहली गोरखनाथ त्रिपाठी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. इसके बाद 2009 और 2014 में बीजेपी ने जीत दर्ज की और अब बीजेपी हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रही है.
2009 से पहले भदोही की जनता मिर्जापुर भदोही लोकसभा सीट से सांसद चुनने के लिए वोट करती थी. यहां सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के जॉन एन विल्सन ने 1952 में जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1957 में भी वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1962 में कांग्रेस पार्टी ने फिर जीत दर्ज की और श्यामधर मिश्र सांसद बने. 1967 में जनसंघ के वंश नारायण सिंह ने जीत दर्ज किया. इसके बाद फिर कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की और अजीज इमाम संसद पहुंचे.
फूलन देवी बनी थी यहां सांसद
इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में यहां जनता पार्टी के फकीर अली अंसारी सांसद चुने गए. 1980 में इंदिरा गांधी ने वापसी की तो मिर्जापुर भदोही में कांग्रेस पार्टी की भी वापसी हुई. यहां अजीज इमाम फिर सांसद बने. इसके बाद यहां उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस पार्टी के ही उमाकांत ने जीत दर्ज की. फिर 1984 में उमाकांत दोबारा सांसद चुने गए. इसके बाद 1989 में वीपी सिंह की लहर में जनता दल ने जीत दर्ज की और युसूफ बेग सांसद बने. 1991 में राम मंदिर आंदोलन के बाद ये सीट बीजेपी के खाते में चली गई और वीरेंद्र सिंह सांसद बने. 1996 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी को मैदान में उतारा और वह जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं. दो साल बाद बीजेपी के वीरेंद्र सिंह ने ये सीट फूलन देवी से छीन लिया और वो फिर यहां से सांसद चुने गए. इसके एक साल बाद फूलन देवी ने 1999 में पलटवार किया और दोबारा चुनाव जीत कर यह सीट सपा की झोली में डाल दी. फूलन देवी की हत्या के बाद 2002 में हुए चुनाव में रामरति बिंद सांसद बने. 2004 में बसपा के नरेंद्र कुशवाहा ने यहां जीत दर्ज की.