सिर्फ आत्मरक्षा में मार सकते हैं हमलावर जानवर, उत्तराखंड हाईकोर्ट का आदेश
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इंसानों पर हमलावर हो रहे जंगली जानवरों को लेकर महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि इंसानों पर हमलावर हो रहे जानवरों को बिना चिह्नित किए मारने के आदेश जारी ना किए जाएं। पहले जानवरों को चिह्नित कर पकड़ा जाए या फिर ट्रेंकुलाइज करें। अगर पकड़ में नहीं आता है तो उसे मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संस्तुति जरूरी है।
अदालत ने यह भी कहा है कि अगर कोई जानवर इंसान पर जानलेवा हमला करता है तो आत्मरक्षा के लिए उसे मारा जा सकता है, लेकिन घटना घटने के बाद की स्थिति में हमलावर जानवर को पहले चिह्नित किया जाना आवश्यक है। जिससे निर्दोष जानवर न मारे जाएं। मामले में सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया। निर्देश दिए हैं कि वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11ए का पालन किया जाए।
यह था मामला
भीमताल में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के आदेश का कोर्ट ने स्वत संज्ञान लेते हुए सुनवाई की थी। खंडपीठ ने जब जानवरों को मारने से जुड़े एक्ट की जानकारी मांगी तो वनाधिकारी इसके बारे में नहीं बता पाए थे। वनाधिकारी यह भी नहीं बता पाए थे कि भीमताल में इंसानों पर हमलावर हो रहा जानवर गुलदार है या बाघ। इस पर कोर्ट ने वन विभाग से पहले जानवर को चिह्नित करने के निर्देश दिए थे। साथ ही वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के अनुसार कार्रवाई करने को कहा था। जिसके बाद वन विभाग हरकत में आया और हमलावर हो रहे जानवर की पहचान के प्रयास शुरू किए। जिसके बाद पता चला था कि हमलावर जानवर बाघ है। पहचान के बाद ही उसे पकड़ने के लिए पिंजरे लगाए गए, जिसमें एक बाघिन फंस गई थी। अब आदमखोर बाघिन वन विभाग के रेस्क्यू सेंटर में है।
विभाग ने बताया भीमताल में तीनों महिलाओं को बाघ ने ही मारा था
हाईकोर्ट के समक्ष वन विभाग की ओर से गुरुवार को बताया गया कि भीमताल में तीन महिलाओं की जान लेने वाला जानवर बाघ ही है। कोर्ट के निर्देश पर पिंजरे लगाए गए थे। जिसमें एक बाघिन को पकड़ा गया है। पकड़ी गई बाघिन ने ही तीनों लोगों की जान ली थी या नहीं। इस बात की पुष्टि के लिए फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।