पूजा-पाठ से बचिए… सुप्रीम कोर्ट के जज साहब ने किसे और क्यों कहा? जमानत पर जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट के जज ने शीर्ष अदालत में जमानत याचिकाओं की लगातार बढ़ती संख्या पर चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण आर गवई ने कहा कि शीर्ष अदालत में जमानत याचिकाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि जिला अदालतों या यहां तक कि उच्च न्यायालयों में भी जमानत नहीं दी जा रही हैं. वहीं, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका ने जज-वकीलों को पूचा-पाठ से बचने की सलाह दी और कहा कि उन्हें संविधान की प्रति के समक्ष सम्मान प्रकट करके अपना कार्य शुरू करना चाहिए.

दरअसल, पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में एक नए न्यायालय भवन के ‘भूमि पूजन’ के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इन दोनों जजों ने टिप्पणी की. जस्टिस गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रतिदिन 15 से 20 जमानत याचिकाओं पर सुनवाई होती है. उन्होंने कहा, ‘इन दिनों स्थिति यह है कि जिला न्यायालय में जमानत नहीं मिल पाती है. हाईकोर्ट में भी जमानत लेना एक चुनौती बन गया है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है.’

जमानत देने में क्यों डर?

जस्टिस गवई ने पूछा, ‘हमें जमानत देने से क्यों डरना चाहिए?’ उन्होंने कहा, मुकदमा खत्म होने से पहले 9-10 साल जेल में बिताने के बाद भी अगर न्यायाधीश (किसी आरोपी की) जमानत याचिका पर विचार नहीं करते हैं, तो हमें मौजूदा व्यवस्था के बारे में सोचना चाहिए.

पूजा-पाठ छोड़िए…

वहीं, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओका ने कहा कि विवाह से संबंधित विवाद बढ़ रहे हैं और देशभर में पारिवारिक अदालतों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है. यह एक गंभीर मुद्दा बन गया है, खासकर शहरों में. एक विवाह विवाद के लिए 10-15 केस दर्ज किए जाते हैं. इसलिए जिला, सत्र और पारिवारिक अदालतों की संख्या को बढ़ाने की जरूरत है. कानूनी बिरादरी को ‘पूजा-पाठ’ से बचने की सलाह देते हुए, न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि उन्हें संविधान की प्रति के समक्ष सम्मान प्रकट करके अपना कार्य शुरू करना चाहिए.

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