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ब्लॉग: भारत के सामने एक नई चुनौती है पश्चिम एशिया का संकट

जराइल और ईरान के बीच चल रही गंभीर सैन्य टकराहट और पश्चिम एशिया के गहराते संकट को और भयावह बनने से रोकने के लिए अरब और खाड़ी देशों के शीर्ष नेतृत्व सहित अमेरिका और पश्चिमी देशों के बीच गहन मंत्रणाओं का दौर चल रहा है।

भारत ने भी इस संकट पर गंभीर चिंता जताते हुए सैन्य टकराहट तुरंत रोकने की पुरजोर अपील की है, लेकिन निश्चित तौर पर संकट ने भारत की सफल मानी जाने वाली पश्चिम एशिया नीति के सम्मुख नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इजराइल और ईरान दोनों ही भारत के मित्र और सामरिक साझीदार रहे हैं। दोनों के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते हैं।

इस तनावपूर्ण स्थिति के भारत पर फौरी तौर पर पड़े असर का अगर जिक्र करें तो ईरान के सुरक्षा बलों ने होरमुज की खाड़ी के निकट गत 13 अप्रैल को एक इजराइली वाणिज्य जल पोत को बंधक बना लिया जिस पर कुल सवार 25 कर्मियों में से 17 भारतीय कर्मी शामिल हैं। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इस क्षेत्र की स्थिति पर ईरान और इजराइल के विदेश मंत्रियों से चर्चा के दौरान भारतीय कर्मियों के इस मामले को भी उठाया और बंधकों को फौरन रिहा करने की बात कही। राहत की बात यह है कि ईरान ने इस मामले में भारतीय प्रतिनिधियों से बात करने देने की बात मान ली है।

दूसरा है भारत और इजराइल के सरकारी सहयोग से इजराइल भेजे जा रहे भारतीय कामगारों का विवादास्पद मुद्दा। इन कामगारों का पहला जत्था वहां पहुंच चुका है. अब गत सप्ताहांत भारतीयों के लिए इजराइल व ईरान न जाने को लेकर विदेश मंत्रालय की जो एडवाइजरी आई, उससे जान जोखिम में डाल कर इजराइल जाने वाले भारतीयों के जाने पर फिलहाल रोक लग गई है। गाजा युद्ध शुरू होने के बाद वहां निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या कम हो गई है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इजराइल ने वहां काम कर रहे 80 हजार फिलिस्तीनी लोगों के वहां आने पर प्रतिबंध लगा दिया। अब इस सेक्टर में जान फूंकने के लिए इजराइल को इन कामगारों की जरूरत पड़ रही है।

कुल मिला कर कहें तो भारत ने पश्चिम एशिया नीति की चुनौतियों को सदैव ही संतुलन साधते हुए संबंध आगे बढ़ाए हैं। दरअसल इस क्षेत्र के देशों के बीच में न केवल मतैक्य नहीं है अपितु काफी कड़वाहटें हैं। भारत ने सदैव ही क्षेत्र के प्रमुख देशों मिस्र, ईरान, इजराइल, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ संबंधों में संतुलन बनाते हुए उन्हें गति देने की डिप्लोमेसी से काम लिया है। उम्मीद है कि इसी संतुलन से वह इस बार भी इस नई चुनौती से निपट लेगा क्योंकि भारत के लिए इस चुनौती से निपटना उसके राष्ट्रीय हितों, सामरिक साझीदारी, आर्थिक हितों और उस क्षेत्र में काम करने वाले लाखों कामगारों के हितों से भी जुड़ा है।

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