बिजनेस कर नोटों के बंडल कमाने हैं तो White Labeling समझ लो, Redbull, Boat ने अरबों छापे हैं
साल 2023 में 1200 करोड़ कैन. कुल आज तक 10 हजार करोड़ कैन. ये भारी भरकम से आंकड़े हैं हल्का-फुल्का प्रोडक्ट बनाने वाली एक कंपनी के. ये तो सेल्स के नंबर हैं तो कंपनी के टर्नओवर का अंदाजा लगाया ही जा सकता है. नहीं लगाना तो हम बता देते हैं. साल 2023 का टर्नओवर 10554 बिलियन यूरो. इतना पढ़कर तो पहली नजर में लगेगा कि कंपनी के पास भारी-भरकम सेटअप होगा. दुनिया भर में कई प्लांट्स लगे होंगे. लेकिन एकदम नहीं. क्योंकि कंपनी ‘White Labeling’ करती है. बोले तो विशुद्ध मार्केटिंग. नाम है,
क्या है White Labeling?
भयंकर आसान भाषा में कहें तो एक कंपनी प्रोडक्ट बनाती है तो दूसरी उसके ऊपर अपना ब्रांड चिपकाकर मार्केट में बेचती है. आमतौर पर इस टर्म का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों के उत्पादों के लिए खूब होता है. अब आपको लगेगा जब बात इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों की है तो रेड बुल अपना सींग कैसे घुसा रहा. हम बताते, लेकिन पहले इस शब्द का अर्थ निकालते.
दरअसल इस टर्म का जन्म हुआ कॉफी, बीन्स बनाने वाली कंपनियों से. कई सारी ऐसी कॉफी बीन्स कंपनियां हैं जो खुद तो कॉफी बेचती हैं मगर दूसरी कई कंपनियों को बीन्स सप्लाई करती हैं. रही बात इसके आगे वाइट लिखा होने की तो ऐसा काम अधिकतर खुल्लम-खुल्ला होता है. मतलब ब्लैक वाले काम की आशंका बेहद कम. भले प्रोडक्ट पर ब्रांड का लेबल चस्पा हो लेकिन साथ में उसको बनाने वाले का नाम भी लिखा होता है. नाम से इतर अब रेड बुल का कार्यक्रम समझते हैं.
रेड बुल का बुलबुला
कंपनी की अपनी कोई प्रोडक्शन यूनिट नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया के Rauch की एक बॉटल यूनिट से सारा खेला होता है. ऐसा करने की तमाम वजहें हैं मगर सबसे बड़ा कारण इसके बनने के पीछे का है. इस प्रोडक्ट के पीछे हैं ऑस्ट्रेलियाई नागरिक Dietrich Mateschitz और थाईलैंड वासी Chaleo Yoovidhya. Dietrich अक्सर थाईलैंड जाते थे और वहां उन्होंने पिया ‘Krating Daeng’ नाम का लोकल ड्रिंक जिसे Yoovidhya बनाते थे. कुछ समय बाद Dietrich ने Yoovidhya को इस ड्रिंक को बड़े लेवल पर बनाने का ऑफर दिया. बात बन गई, लेकिन पैसे बहुत ज्यादा नहीं थे तो प्रोडक्शन यूनिट लगाने की जगह आउटसोर्स करने पर फोकस किया गया.