बदलती वैश्विक आर्थिक तंत्र का भारत चमकता सितारा… नोबेल विजेता ने बताया कैसे 70 साल पुराना सिस्टम हो रहा ध्वस्त

चीन और जर्मनी समेत दुनिया के कई देश आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष कर रहे हैं लेकिन भारत की इकॉनमी रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रही है। दुनियाभर के अर्थशास्त्री भी भारत की इकॉनमी का लोहा मान रहे हैं। इनमें नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री माइकल स्पेंस भी शामिल हैं। उनका कहना है कि इस समय भारत में ग्रोथ रेट की संभावना सबसे ज्यादा है। अब तक भारत सबसे बेहतर डिजिटल इकॉनमी के तौर पर उभरने में सफल रहा है। साथ ही भारत का फाइनेंस आर्किटेक्चर भी दुनिया में सबसे बेहतर है। यह खुला और प्रतिस्पर्द्धी है जो देश के कोने-कोने में समावेशी सेवाएं दे रहा है। अमेरिका के दिग्गज इकनॉमिस्ट स्पेंस को साल 2001 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

बेनेट यूनिवर्सिटी में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि ग्लोबल इकॉनमी में व्यवस्था बदल रही है। महामारी, भूराजनीतिक तनाव और क्लाइमेट से जुड़े मुद्दों के कारण 70 साल पुरानी व्यवस्था दरक रही है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से चली आ रही ग्लोबल इकॉनमी में अब बदलाव हो रहा है। यह वैश्विक व्यवस्था एफिशंट सप्लाई सिस्टम्स और कंपरेटिव एडवांटेज पर बनाई गई थी लेकिन इसमें अब तेजी से बदलाव हो रहा है। आज की दुनिया में कभी भी कोई संकट सिर उठा सकता है। ऐसी स्थिति में सिंगल सोर्स पर निर्भर रहना समझदारी नहीं है। इसका केंद्र अब पूर्व की तरफ शिफ्ट हो रहा है और इसलिए ग्लोबल इकॉनमी में एक बुनियादी बदलाव हो रहा है। सप्लाई चेन डाइवर्सिफाई हो रही है और ग्लोबल गवर्नेंस पहले से कहीं ज्यादा जटिल हो रही है।

लागत में गिरावट

स्पेंस ने कहा कि यह चुनौती वाला समय है लेकिन इसके बावजूद उम्मीद कायम है। साइंस और टेक्नोलॉजी ने काफी तरक्की की है जो मानव कल्याण में योगदान दे सकती है। इनमें जेनरेटिव एआई, बायोमेडिकल लाइफ साइंसेज और एनर्जी ट्रांजिशंस शामिल है। उन्होंने कहा कि पहले डीएनए सीक्वेंसिंग की लागत 10 मिलियन डॉलर थी जो अब केवल 250 डॉलर रह गई है। हालांकि उन्होंने साथ ही आगाह किया कि टेक्नोलॉजिकल ग्रोथ का फायदा बड़े और छोटे कारोबारियों को समान रूप से होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अब हमारे पास ऐसे साइंटिफिक और टेक्नोलॉजिकल टूल्स हैं, जिनका सही इस्तेमाल होने पर बड़ी संख्या में लोगों का भला हो सकता है।

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