आजादी के 77 साल बाद भी कोटा के इस गांव की राह भूल गया विकास, बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे लोग

Kota News Today: कोटा जिले में एक ऐसा गांव है जहां समस्याओं का अंबार हैं. समस्याएं भी छोटी-मोटी नहीं है, लगातार कोशिशों के बावजूद हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. सरकार की उदासीनता, जनप्रतिनिधियों की लापरवाही और गांव की मजबूरी इस कदर हावी है कि 15 साल से खंभों पर लाइट नहीं आई है.

सालों से लोग साफ पानी को तरस रहे हैं.

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घर-घर नल पहुंचाने का दावा कर रहे हैं, दूसरी ओर यहां के लोगों का पानी देखे हुए सालों हो गए हैं. यही नहीं यह तो महज एक बानगी है. गांव में हालात इतनी खस्ता है कि गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिए अपने पीहर या रिश्तेदार के यहां छोड़ना पड़ता है, जिससे किसी इमरजेंसी हालात पैदा होने पर अस्पताल पहुंचाया जा सके. यह गांव कोटा जिले का मंदरगढ़ है. यह गांव मुकुंदरा रिजर्व में आने के कारण अपनी पीड़ा को बयां कर रहा है.

बुनियादी सुविधाओं के नाम पर खोखले वादे
इस गांव की सड़कों पर चलना मुश्किल होता है. शिक्षा और चिकित्सा का अभाव है. यह गांव मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में होने से परेशानियों से दो चार है. 827 मतदाताओं वाले इस गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. विधानसभा चुनाव में इस गांव ने मतदान का बहिष्कार किया था. उसके बाद कई आश्वासन मिले और समस्याओं के समाधान के लिए विश्वास भी दिलाया गया, लेकिन मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बसे 827 मतदाताओं वाले मंदरगढ़ गांव की हालात जस की तस है.

आगामी लोकसभा चुनाव में मंदरगढ़ गांव के लोगों ने मतदान करने का वादा किया है. ग्रामीणों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में वे मतदान करेंगे. इस बार उन्हें विकास की उम्मीद दिखी है. यहां पर मतदान के बहिष्कार के बाद बिजली के खंभों पर लाइट लगाने का काम शुरू हो चुका है. हालांकि अभी भी सुविधाओं के नाम पर खोखले वादों के अलावा और कुछ नहीं है.

गांव में कैसी है रोजमर्रा की जिंदगी?
हालिया दिनों में इस गांव तक पहुंचाना किसी चुनौती से काम नहीं है. इस गांव तक जाने के लिए घने जंगल को पार कर मोहनपुरा से करीब 4 किलोमीटर दूर ऊबड़ खाबड़ कच्चे रास्तों को पार कर पहुंचते हैं. यहां के सड़कों की हालात खस्ता हाल है. आलम यह है कि अगर किसी मरीज को अस्पताल ले जाना हो तो आसानी से ले जाना नामुमकिन है. मरीज की जान दांव पर रखकर ही अस्पताल पहुंच सकते हैं. यहां पर मरीज को खाट पर रखकर चार लोग कंधों पर डाल कर ले जाते हैं.

गांव के रमेश मीणा बताते हैं कि कुछ घरों में सोलर प्लेट्स के माध्यम से लाइटें टिमटिमाती हैं. दुकानों पर बैट्री की सहायता से काम चलाया जाता है, स्कूल के ट्यूबवेल से पीने का पानी लाया जाता है. उन्होंने बताया कि सोलर प्लेट्स का कुछ सहारा है, लेकिन वह भी आधा अधूरा है. दूसरी ओर गांव में पेयजल के लिए पाइपलाइन बिछी हुई है. कुछ समय तक गांव में पानी आया, लेकिन बाद में इन नलों में पानी आना बंद हो गया.

बरसात में कैद हो जाते हैं स्थानीय निवासी
गांव से मुख्य मार्ग तक पहुंचाने के लिए 4 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है. रास्ता भी कच्चा है, बरसात के दिनों में यहां हालात और भी मुश्किल हो जाते हैं. बारिश के बाद कच्चे रास्तों से निकलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में घरों रहकर कई दिन बिताना पड़ता है.

12-14 किमी घने जंगल से जाना होता है स्कूल
गांव के निवासी रमेश ने कहा कि बच्चों को पढ़ने के लिए मंडाना में रखना पड़ता है. उनका कहना है कि बच्चे पढ़ने के लिए ननिहाल में रहते हैं, यहां आठवीं तक स्कूल है और 150 बच्चे पढ़ाई करते हैं. उन्होंने कहा कि इससे आगे की पढ़ाई के लिए गांव से 12 से 14 किलोमीटर दूर गांव में जाना होता है, वह भी जंगली जानवरों के डर के साये में. रमेश ने बताया कि इस गांव के निवासियों की सुनने वाला कोई नहीं है.

ग्रामीणों के मुताबिक, बड़े-बड़े दावे और वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों इस गांव तक वोट मांगने तो पहुंचती हैं, लेकिन उनकी समस्याओं को देखकर आश्वासन देकर चली जाती हैं. चुनाव दर चुनाव, साल दर साल बीतते जा रहे हैं, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान होना बड़ा मुश्किल नजर आ रहा है.

इस संबंध में डीसीएफ मुकुंदरा रिजर्व अभिमन्यु सहारण का कहना है कि रिजर्व जंगल में बसे गांव के लिए परिवेश पोर्टल बना हुआ है. इस पर संबंधित विभाग प्रस्ताव भेज सकते हैं. बिजली के लिए प्रस्ताव प्रक्रियाधीन है.

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