साधारण घास का असाधारण तेल! चर्म रोग का है रामबाण इलाज, कीमत 1200 रुपए लीटर

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जिनका प्रयोग कई रोगों के उपचार के लिए किया जाता है. इन जड़ी-बूटियों की खेती कर किसान भी अच्छा मुनाफा कमाते हैं. वहीं यहां कई ऐसे औषधीय पौधे भी हैं, जिनके कई औषधीय लाभ तो है लेकिन इनकी खेती के लिए अभी कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहा. ऐसा ही एक पौधा है कुणजा. कुणजा पर्वतीय क्षेत्रों में उगने वाला एक आम लेकिन खास गुणों वाला है. चीन में कुणजा के तेल की भारी डिमांड रहती है लेकिन भारत में अभी इस पौधे की ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया है.

कुणजा के तेल का प्रयोग दाद, खाज, खुजली में भी किया जाता है. साथ ही शायद ही ऐसा कोई धार्मिक अनुष्ठान हो, जो बिना कुणजा के संपन्न हो सके. कुणजा के तेल को बाजार में महंगे दामों पर भी बेचा जाता है. इसके तेल की कीमत 1200 रुपये प्रति लीटर है.

1200 रुपये लीटर है तेल की कीमत 

श्रीनगर गढ़वाल स्थित हेप्रेक संस्थान के रिसर्चर जयदेव चौहान बताते हैं कि कुणजा में एंटी बैक्टीरियल व एंटीं फंगल गुण पाया जाता है, जो चर्म रोग के इलाज में कारगर साबित होती हैं. चीन में कुणजा को मुगवर्ट के नाम से जाना जाता है. वह कहते हैं कि चीन में इसका तेल 1200 रुपये लीटर बिकता है. वहां न केवल कुणजा से तेल तैयार किया जाता है बल्कि मेडिसिन के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है.पत्तों में कड़वापन है पहचान जयदेव बताते हैं कि कुणजा का वानस्पतिक नाम आर्टीमीसिया वलगेरिस है. कुमाऊं व नेपाल में इसे पाती/तीता पाती के रूप में जाना जाता है. इसके पत्तों में कड़वापन होता है. कुणजा में औषधीय गुण होने के साथ एरोमा अर्थात सुगंध भी है. कुणजा ऐसा पौधा है, जो बीज से नहीं बल्कि जड़ों से फैलता है. कई जगह यह घास के रूप में भी दो/तीन मीटर तक उगा रहता है.

घास के तौर पर होता है इस्तेमाल

जयदेव बताते हैं कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कुणजा आमतौर पर देखने को मिल जाता है. कई जगह घास के रूप में भी यह फैला रहता है, अगर कुणजा को व्यवसाय से जोड़ा जाए, तो पहाड़ के किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है.

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