ललन सिंह की विदाई तय! JDU पर कंट्रोल के साथ लालू पर ‘लगाम’ की तैयारी में हैं नीतीश कुमार
नीतीश कुमार सरकार और संगठन पर मजबूत पकड़ साबित करने के लिए एक्शन में देखे जा रहे हैं. इस कड़ी में जेडीयू अध्यक्ष की विदाई तय मानी जा रही है. राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाए जाने का एकमात्र उद्देश्य यही है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है. जाहिर है इसी कवायद को भांपते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह स्वयं इस्तीफे की पेशकश कर रहे हों, लेकिन इसकी स्क्रिप्ट नीतीश कुमार काफी पहले से तैयार कर रहे थे.ललन सिंह समझ चुके हैं कि वो नीतीश कुमार का भरोसा खो चुके हैं, इसलिए मौके की नजाकत को भांपते हुए ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से किनारा करने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. वैसे एक प्रयास सबकुछ ठीक करने का ललन सिंह द्वारा किया गया है लेकिन राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाने का एकमात्र मकसद नए अध्यक्ष का चुनाव है ये साफ प्रतीत हो रहा है.
नीतीश कुमार भले ही बिहार की तीसरी बड़ी पार्टी के नेता हों लेकिन सरकार और संगठन पर उनकी पकड़ हमेशा से मजबूत रही है. नीतीश कुमार को जब जब संगठन या सरकार में चुनौती मिली है नीतीश कुमार ने बड़े फैसले लेकर अपना दबदबा कायम रखा है. नीतीश कुमार इस कवायद में पहले भी पार्टी में जॉर्ज फर्नांडिस समेत शरद यादव और आरसीपी सिंह को पार्टी के अध्यक्ष पद से चलता कर चुके हैं. जाहिर है इस बार बारी ललन सिंह की है जो वर्तमान समय में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
ललन सिंंह से इसलिए खफा हैं नीतीश
नीतीश कुमार इस बात से खफा चल रहे थे कि ललन सिंह की वफादारी आरजेडी और उसके नेताओं के प्रति काफी बढ़ चुकी थी. नीतीश जेडीयू की अलग पहचान कायम करने को लेकर शुरू से बेहद गंभीर रहे हैं, जबकि ललन सिंह आरजेडी के साथ ज्यादा नजदीकी बढ़ाकर पार्टी के हितों की अनदेखी कर रहे थे ऐसा उन पर आरोप लगता रहा है. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने अशोक चौधरी सरीखे नेता को शह देकर ललन सिंह के विरोध की हवा तेज करनी पहले से ही शुरू कर दी थी. अशोक चौधरी राष्ट्रीय अध्यक्ष की मनाही के बावजूद ऐसा काम करते रहे हैं जो ललन सिंह को नागवार गुजरी है. ललन सिंह जेडीयू के ही दूसरे बड़े नेता संजय झा के सामने भी असहाय नजर आने लगे थे ये तब मालूम चला जब ललन सिंह को अपने क्षेत्र में काम करवाने के लिए संजय झा को चिट्ठी लिखनी पड़ी थी. संजय झा नीतीश सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं और उन्हें जल संसाधन मंत्री बनाने का पूरा श्रेय ललन सिंह को ही जाता है. जाहिर है ऐसे वाकये इस बात की ओर इशारा साफ तौर पर कर रहे थे कि अशोक चौधरी और संजय झा सरीखे नेता ललन सिंह के खिलाफ एक्शन मोड में उतर आए हैं तो इसके पीछे कोई और नहीं बल्कि जेडीयू के सुप्रीम नेता नीतीश कुमार हैं.
ललन सिंंह ने बनाया किनारा करने का मन
यही वजह है कि ललन सिंह अब स्वयं किनारा करने का मन बना चुके हैं ऐसा कहा जा रहा है. इसलिए सूत्रो की मानें तो ललन सिंह ने खुद इस्तीफे की पेशकश कर लोकसभा क्षेत्र में पूरा ध्यान लगाने की बात कहकर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कही है. दरअसल नीतीश कुमार फिलहाल अध्यक्ष पद स्वयं ग्रहण करेंगे ऐसा कहा जा रहा है. लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष पद पर किसी दलित या अति पिछड़े को बिठाकर नीतीश पार्टी पर पूरा कंट्रोल चाहते हैं ये तय माना जा रहा है.
आरजेडी को अपने हद में क्यों रखना चाहते हैं नीतीश ?
10 दिसंबर से लगातार कई सरकारी कार्यक्रमों से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव किनारा करते रहे हैं. इतना ही नहीं तेजस्वी यादव उन कार्यक्रमों से भी दूर रहे हैं जो उनके विभाग के द्वारा आयोजित की गई थी. इन्वेस्टर्स मीट भी इसका एक अलग उदाहरण है जहां तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के साथ नहीं देखे गए थे. हद तो तब हो गई जब इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच बोल चाल साफ बंद थी. दोनों अलग अलग मीटिंग में आकर चले गए लेकिन बातें नदारद रही. जाहिर है यही बात सीएम नीतीश कुमार को नागवार गुजरी है. इसलिए आरजेडी से डील करने के लिए नीतीश जेडीयू का ऐसा राष्ट्रीय अध्यक्ष चाहते हैं जो जेडीयू के नफा और नुकसान को तवज्जो देते हुए बातें कर सकें. ललन सिंह इसीलिए जेडीयू अध्यक्ष पद पर बैठाए गए थे लेकिन उनकी लालू प्रसाद और तेजस्वी के प्रति ज्यादा दिलचस्पी नीतीश कुमार और उनके सिपहसलारों को नागवार गुजरी है.
RJD के सपोर्ट में बातें कर रहे थे ललन सिंंह
कहा जाता है कि ललन सिंह आरजेडी के सपोर्ट में लगातार बातें कर रहे थे जो जेडीयू के सर्वोपरि नेता को नागवार गुजर रही थी. इसलिए जब बातें बिगड़ गईं तभी राहुल गांधी ने अपने हाथों में कमान लेकर नीतीश कुमार को फोन किया था और उन्हें उचित जगह गठबंधन में देने की बात कह मामले को शांत करने की कोशिश की थी.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का बार-बार विदेश के दौरे पर जाने के अलावा चार्टर प्लेन से चलने की बात भी नीतीश कुमार को भा नहीं रही है. वहीं तेजस्वी यादव सहित आरजेडी पर शिकंजा कसने के लिए नीतीश कुमार ने ऐसा दांव चल दिया है, जिससे जेडीयू के भीतर भी आरजेडी के साथ विलय करने की मंशा रखने वालों को एक बड़ा मैसेज दिया जा सके. इतना ही नहीं नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का दरवाजा भी खुला हुआ है ये मैसेज देकर लालू प्रसाद समेत इंडी गठबंधन को भी बड़ा मैसेज देना नीतीश की रणनीति का अहम हिस्सा है.
बीजेपी के साथ जाने का मन बना चुके हैं नीतीश ?
बीजेपी के साथ जाने की कोशिश तभी संभव है जब राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर नीतीश खुद या उनके बेहद विश्वस्त नेता बिठाए जाएं. इसलिए नीतीश हर हाल में लोकसभा चुनाव से पहले ही इस पद को हथियाना चाहते हैं. जाहिर है लोकसभा चुनाव में टिकट तय करने में राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका अहम होती है. इसलिए ऐसे पद पर नीतीश वर्तमान परिस्थितियों में खुद विराजमान होंगे इसकी पूरी संभावना है. नीतीश अपनी जिम्मेदारी बांटने के लिए कार्यकारी अध्यक्ष का भी चुनाव कर सकते हैं जो दलित समाज या अति पिछड़े वर्ग का हो सकता है. जाहिर है ललन सिंह का हटना आरजेडी और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं होगा. नीतीश फिलहाल भले ही बीजेपी के साथ जाने का फैसला नहीं करें लेकिन ललन सिंह के हटने के बाद ये प्रयास तेज होने की पूरी उम्मीद है. कहा जाता है कि अशोक चौधरी. संजय झा समेत विजय चौधरी बीजेपी के साथ जाने के पक्षधर रहे हैं. इसलिए जेडीयू की प्रासंगिकता को बहाल रखते हुए नीतीश बिहार की सरकार पर मजबूत पकड़ कायम रख सकें इसका प्रयास तेज हो सकता है.