प्रोपर्टी पर कब्जा पाने के लिए 38 सालों तक लड़ी कानूनी लड़ाई, अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

कोर्ट-कचहरी का चक्कर क्या होता है? कानूनी लड़ाइयों में कैसे पीढ़ियां खप जाती हैं? तारीख पर तारीख के घनचक्कर में कैसे पिस जाती है जिंदगी? ये समझना हो तो जयपुर की एक प्रॉपर्टी से जुड़े केस को देख लीजिए।

एक शख्स प्राइम लोकेशन पर (Property at prime location) खरीदता है। किरायेदार अड़ जाता है। वह प्रॉपर्टी खाली नहीं करता। मामला अदालत में चला जाता है।

अंतिम फैसला आने यानी शीर्ष अदालत से मामले के निपटारे में 38 साल लग जाते हैं। कल्पना कीजिए, आपने जवानी में प्रॉपर्टी खरीदी और पजेशन मिलते-मिलते बुढ़ापा आ गया! ये मामला है जयपुर की एक प्रॉपर्टी से जुड़े विवाद(Property related disputes) का।

30 जनवरी 1985 को रवि खंडेलवाल नाम के शख्स ने जयपुर में प्राइम लोकेशन पर एक प्रॉपर्टी खरीदी। प्रॉपर्टी जयपुर मेटल इलेक्ट्रिक कंपनी से खरीदी गई। उस समय उस पर तुलिका स्टोर्स का बतौर किराएदार कब्जा था।

प्रॉपर्टी खरीदने के बाद खंडेलवाल ने तुलिका स्टोर्स से जगह खाली करने को कहा लेकिन उसने इनकार कर दिया। दलील दी कि कानूनन किसी किरायेदार को 5 साल से पहले खाली नहीं कराया जा सकता अगर वह खुद की मर्जी से नहीं जा रहा है।

तब राजस्थान के कानून में ये प्रावधान था। हालांकि, बाद में कानून में बदलाव भी हुआ और अनिवार्य टिनेंसी का प्रावधान खत्म कर दिया गया। खैर, मामला अदालत में पहुंचा।

निचली अदालत में 17 साल तक मुकदमा चला। ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर लैंड लॉर्ड को कब्जा देने से इनकार कर दिया कि प्रॉपर्टी 1982 में किराये पर दी गई थी और जब उन्हें खाली करने के लिए कहा गया तब 5 साल की अवधि पूरी नहीं हुई थी।

इसके बाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में केस गया। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने खंडेलवाल के पक्ष में फैसला दिया और तुलिका स्टोर्स को प्रॉपर्टी खाली करने का आदेश दिया। 2004 में तुलिका स्टोर्स ने इस फैसले को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट को इस पर फैसला सुनाने में 16 वर्ष लग गए। फैसला लैंडलॉर्ड के खिलाफ आया। खंडेलवाल ने 2020 में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने लैंडलॉर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने इस बात पर हैरानी भी जताई कि खरीदी हुई प्रॉपर्टी पर कब्जे का ये विवाद 38 साल तक चला।

जस्टिस कौल ने अपने फैसले में लिखा कि पहले ही इस मामले में इतना वक्त लग चुका है और अगर ये केस फिर अपील में जाता है तो ये इंसाफ का मजाक होगा। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिले असाधारण अधिकार का इस्तेमाल करते हुए इस विवाद का पटाक्षेप किया।

खंडेलवाल का ये केस अपनी तरह का कोई इकलौता केस नहीं है। देश में हजारों रवि खंडेलवाल अदालती कार्यवाही की कछुआ चाल की मार झेल रहे हैं।

देश का सबसे पुराना पेंडिंग सिविल केस पश्चिम बंगाल में मालदा सिविल जज के यहां सुनवाई के लिए पड़ा है। वह मुकदमा 4 अप्रैल 1952 को हुआ था और इस मामले ें अगली सुनवाई 31 अगस्त 2023 को है।

देश की अदालतों में दीवानी से जुड़े 31,632 मुकदमे 30 साल से ज्यादा वक्त से लंबित हैं। 70,938 क्रिमिनल केस पिछले तीन दशक से ज्यादा वक्त से अलग-अलग राज्यों की अदालतों में पेंडिंग हैं।

जो दीवानी मुकदमे 20 से 30 साल से लंबित हैं उनकी तादाद 1,08,643 है जबकि इतने पुराने क्रिमिनल केस की संख्या 4,14,280 है। अगर 10 से 20 साल पुराने पेंडिंग केस की बात करें तो 6.5 लाख सिविल और 27 लाख क्रिमिनल केस अभी निपटारे का इंतजार कर रहे हैं।

देश में फौजदारी का सबसे पुराना पेंडिंग केस 1 दिसंबर 1958 को दर्ज हुआ था। ये अमरावती के सीजेएम कोर्ट में चल रहा है। चोरी से जुड़े इस मुकदमे में सुनवाई की अगली तारीख 13 अगस्त 2023 है।

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