High Court News: हिंदू होने के कारण… तो हाईकोर्ट ने ऐसा क्‍यों कहा? क‍िस केस की सुनवाई के ल‍िए संडे को अदालत पहुंचे जज साहब

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत गिरफ्तार एक विचाराधीन कैदी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए रविवार को व‍िशेष रूप से अदालत बैठी, याच‍िका में पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की मांग कर रहा था. हालांक‍ि अदालत ने कैदी को जमानत या अंतरिम जमानत देने पर कड़ी आपत्ति जताई, लेकिन अदालत ने कहा कि अंतिम संस्कार में शामिल होने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 का हिस्सा था और इस तरह विचाराधीन कैदी के लिए अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की मंजूरी म‍िल गई.

हाईकोर्ट ने कहा क‍ि विचाराधीन कैदियों सहित अन्‍य कैदी भी संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत इस अधिकार का उपयोग कर सकते हैं. माता-पिता/पति/पत्नी/बच्चे के अंतिम संस्कार में शाम‍िल होने का अधिकार अनुच्छेद 25 के दायरे में आएगा. बेशक, यह पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता है. कोर्ट ने कहा क‍ि मौजूदा स्थिति को इस अधिकार के अधीन बरकरार रखेगा. जब तक असाधारण परिस्थितियां न हों, कोर्ट द्वारा इस अधिकार से इनकार नहीं किया जाएगा. अदालत ने कहा क‍ि इस मामले में ऐसी कोई विशेष परिस्थिति नहीं है कि अधिकार से इनकार किया जाए.

लाइव लॉ की र‍िपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि अनुच्छेद 25 को किसी भी व्यक्ति द्वारा लागू किया जा सकता है और यह स्वतंत्र व्यक्तियों और कैदियों के बीच कोई अंतर नहीं करता है. अदालत ने यह भी कहा कि हिंदू होने के कारण कैदी को कुछ धार्मिक दायित्वों का निर्वहन करना होगा. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अदालतों को धर्म के मामलों पर उचित ध्यान देना चाहिए. इस प्रकार, अदालत ने उस व्यक्ति को अंतिम संस्कार और 16वें दिन के समारोह में शामिल होने की अनुमति देने के लिए अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किया.

ये धर्म के मामले हैं: हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने कहा क‍ि याचिकाकर्ता एक हिंदू है. एक पुत्र के रूप में उसे कुछ धार्मिक दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है. उसे वह अर्पित करना होता है जिसे ‘पिंड’ कहा जाता है. यदि कोई सबसे बड़ा बेटा है, तो वही चिता को मुखाग्नि दे सकता है. ये धर्म के मामले हैं और न्यायालय को इसका उचित सम्मान करना चाहिए. हालांकि मैं जमानत नहीं दे सकता, लेकिन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल करके निश्चित रूप से निर्देश जारी कर सकता हूं.

जमानत के दौरान कोई अपराध करने की संभावना नहीं थी: हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता एस गुरुमूर्ति को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20(बी)(ii)(सी), 29(1) और 8(सी) के तहत अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया था और बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. हालांकि उन्होंने हाल ही में पारित एक ऐसे ही आदेश पर भरोसा किया, लेकिन अदालत इसके पक्ष में नहीं थी. अदालत सरकारी वकील से सहमत हुई, जिन्होंने कहा कि वाणिज्यिक मात्रा से जुड़े मामलों में, अदालतों को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत निर्धारित मापदंडों को ध्यान में रखना चाहिए. अदालतों को इस बात से संतुष्ट होना था कि यह मानने के लिए उचित आधार थे कि अभियुक्त दोषी नहीं था और जमानत के दौरान कोई अपराध करने की संभावना नहीं थी.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *