कम वोटिंग से कैसे पास होगा मिशन 400 पार? जानिए क्यों BJP को बदलनी पड़ी अपनी रणनीति

Lok Sabha Election, Bihar: देशभर में सात चरणों में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को संपन्न हो चुका है। पहले चरण में 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 102 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई।

इस वोटिंग में सबसे अधिक चर्चा में बिहार की चार लोकसभा सीट, नवादा, जमुई (सुरक्षित) औरंगाबाद और गया (सुरक्षित) रही।

इन सीटों पर मतदान का प्रतिशत पिछले बार की तुलना में बेहद कम रहा। इसमें भी सबसे अधिक चर्चा का विषय नवादा सीट बना जहां भाजपा इस बार अपना कैंडीडेट देकर चुनावी मैदान में है। ऐसे में चर्चा की वजह यह है कि जब सत्तारूढ़ दल पूरे देश में मोदी की लहर यानी भाजपा के आगे होने का दावा कर रही है तो फिर इस सीट पर मतदान कम क्यों हुए? जबकि यहां के जातीय समीकरण भी भाजपा के पक्ष वाले बताए जाते हैं…

जब इन तमाम सवालों के जवाब जानें की कोशिश की गई तो जो जानकारी निकलकर सामने आई वह भाजपा सहित तमाम राजनीतिक पार्टियों की चिंता बढ़ा सकती है। लेकिन सबसे अधिक एनडीए के माथे पर बल पड़ने वाले हैं, क्योंकि यहां के मूल वोटर एनडीए के कोर वोट बैंक माने जाते हैं। ऐसे में कम वोटिंग होना एनडीए के लिए खतरे की घंटी है।

गर्मी और लगन ने डाला वोटिंग पर असर

दरअसल, चुनाव आयोग और जिला प्रशासन के सूत्र बताते हैं कि इस बार इस इलाके में मतदान में लोग अधिक रुचि नहीं दिख रहे थे। इसकी पहली वजह तो गर्मी थी और दूसरी वजह बड़ी संख्या में पलायन। लोगों का ऐसा कहना था कि इतनी गर्मी और लगन के मौसम में मतदान करने लोग निकल नहीं रहे हैं। उनका यह कहना था की लंबी लाइन में लगकर इस गर्मी के मौसम में इंतजार क्यों करना जितना तो वैसे भी उनके अंदर चल रहे प्रत्याशी को ही है। लिहाजा वह नहीं जाते हैं तो क्या असर पड़ने वाला है। लेकिन लोकतंत्र में हर वोट जरुरी है इसलिए हम आपसे वोट जरूर करने की अपील करते हैं।

अब यह तो हुई आम बात लेकिन इसको लेकर जो राजनीतिक सूत्र बताते हैं वह कहानी काफी इतर और रोचक है। सूत्र बताते हैं कि यहां पर एनडीए के जो प्रत्याशी थे उनको पार्टी के तरफ से हर संभव मदद की कोशिश की गई इसके बावजूद वह इस गफलत में रह गए कि उनके लिए चुनाव काफी आसान है। देशभर में पीएम मोदी की लहर है, लेकिन वह समझ नहीं पाए कि इस बार चुनाव हवा पर नहीं बल्कि मुद्दे पर हो रहा है।

इस बार के मतदाता जागरूक है और वह आपसे सवाल करेंगे और अगर मन लायक जवाब नहीं मिलेगा तो फिर वह अपना मन और मत दोनों बदल सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि नवादा लोकसभा सीट से एनडीए के कैंडिडेट को सभी बूथ पर पोलिंग एजेंट भी नहीं मिल पाए। अब बिना पोलिंग एजेंट के चुनाव किया जाना कैसा होता है यह बताने की आवश्यकता शायद ही महसूस हो।

बीजेपी के कोर वोटर में नाराजगी!

वहीं, तरफ दूसरी तरफ इस बात की भी चर्चा तेज है कि भाजपा के जो कोर वोटर हैं वह इस बात से नाराज हैं कि भाजपा के लिए झंडा धोने का काम हम लोगों का समाज करें और जब बात सम्मान की आए तो भाजपा दूसरे समुदाय को लोगों को अधिक महत्व देने लगती है। भाजपा को ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है लिहाजा वह लोग मौन होकर वोट बहिष्कार करेंगे। जिसका असर यह हुआ कि भाजपा के जो कोर वोटर कहे जाते हैं वह लोग बड़ी संख्या में मतदान केंद्र पर पहुंचे ही नहीं।

ऐसे में जो लड़ाई नवादा सीट के लिए काफी आसान बताई जा रही थी वह थोड़ी मुश्किल हो गई। वहीं, बात करें जमुई, औरंगाबाद और गया कि तो यहां पर पहले से ही मतदान प्रतिशत उतना अधिक नहीं रहा है। इन इलाकों में पलायन करने वाले लोगों की भी संख्या बड़ी है। लिहाजा अगर इन इलाकों में मतदान कम हुआ है तो अधिक चिंता की विषय नहीं है।

उधर बिहार में कब मतदान होने के बाद 400 पर का नारा देने वाली भाजपा टेंशन में आ गई है। भाजपा के बड़े नेता यह बताते हैं कि शायद 2014 के बाद यह पहली दफा होगा जब पहले चरण के मतदान खत्म होने के बाद खुद ट्वीट करता हो और उसके बाद सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ताओं की प्रेस वार्ता शुरू हो जाती हो। इतना ही नहीं उसके बाद दनादन रैलियां भी शुरू हो जाती है और मुद्दे भी बदल दिए जाते हैं।

अब मुद्दा वापस से धर्म और सामुदायिक पर आ जाता है। पहले चरण में जो मुद्दा परिवारवाद का बना हुआ था वह दूसरे चरण आते-आते वापस से पुराने एजेंडे पर आ जाता है। ऐसे में यह कहा जाना कि बिहार में कम वोटिंग होना भाजपा के लिए खतरे की घंटी है गलत नहीं होगा। भाजपा ने जो मिशन 400 का लक्ष्य रखा है उसके लिए ये बहुत बड़ा रेड अलर्ट है।

अब देखना यह है कि कम वोटिंग के बाद बिहार में जब इन सीटों की मतगणना की जाती है तो फिर जीत हार का अंतर कितना रहता है। कम मतदान होने के बाद जीत हार का आंकड़ा भी काफी कम होने के अनुमान है। लिहाजा जीत किसी भी पार्टी के नेता की हो, जीत-हार का अंतर कम होना उनके लिए भी एक मंथन का विषय हो सकता है।

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