भारत के पड़ोसी देशों में चीन के दबदबे से कैसे मुक़ाबला कर रही है मोदी सरकार

आम तौर पर मालदीव के राष्ट्रपति सत्ता संभालने के बाद अपने पहले विदेश दौरे पर भारत आते रहे हैं.लेकिन मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू ने इस परंपरा को तोड़ दिया. नवंबर में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद, भारत आने के बजाय मुइज़्ज़ू ने तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और चीन के दौरे किए हैं.मुइज़्ज़ू ने यह जता दिया है कि उनकी सरकार भारत से दूरी बनाने की नीति पर चलने वाली है.विदेश नीति के जानकारों के मुताबिक मुइज़्ज़ू के चीन के पांच दिनों के दौरे से ज़ाहिर होता है कि मालदीव की विदेश नीति बदल रही है.

ख़ुद राष्ट्रपति ने अपने देश की विदेश नीति में इस बदलाव को दोहराया, जब चीन के दौरे से वापस आने के बाद उन्होंने ट्वीट किया कि, ‘हमारा देश छोटा भले ही है, लेकिन इससे किसी को इस बात की इजाज़त नहीं मिल जाती कि वो हमको धमकाए.’

भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लक्षद्वीप को ‘बढ़ावा देने’ का मालदीव के तीन उपमंत्रियों ने बुरा माना और सोशल मीडिया पर उन्होंने अभद्र बयानबाज़ी की.

बाद में मालदीव के उन मंत्रियों को निलंबित कर दिया गया. लेकिन, तब तक दोनों देशों के रिश्तों में खटास तो आ ही चुकी थी.भारत के कई सेलेब्रिटीज़ ने अपने फैन्स से कहा कि वो घूमने जाने के लिए भारतीय द्वीपों के विकल्पों को भी आज़माएं. उनका संकेत था कि मालदीव जाने वालों के लिए लक्षद्वीप घूमने जाना भी एक विकल्प हो सकता है.

उसके बाद से ऐसा लग रहा है कि हालात बद से बदतर हो गए हैं.

मालदीव की कैबिनेट ने फ़ैसला किया कि वो भारत के साथ समुद्री सर्वेक्षण (हाइड्रोग्राफी) में सहयोग के उस समझौते का नवीनीकरण नहीं करेंगे, जो 2019 में किया गया था.

ये समझौता इसी साल यानी 2024 में ख़त्म होने जा रहा है. इससे पहले, चुनाव जीतने के फ़ौरन बाद राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू ने मालदीव में इस वक़्त तैनात भारतीय सैनिकों को उनके देश वापस भेजने का वादा किया था.

मुइज़्ज़ू का ये क़दम, अपने पूर्ववर्ती इब्राहिम सोलिह सरकार की ‘इंडिया फर्स्ट नीति’ को पलटने के इरादे का एक और संकेत था. भारत के साथ रक्षा संबंध जारी रखने को लेकर मुइज़्ज़ू सरकार की ये हिचक उस वक़्त और उजागर हो गई, जब पिछले महीने मॉरिशस में हुए कोलंबो सिक्योरिटी कॉनक्लेव के ताज़ा संस्करण में मालदीव का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ.

कोलंबो सिक्योरिटी कॉनक्लेव की शुरुआत 2011 में हुई थी, और इसका मक़सद एक सुरक्षित, महफ़ूज़ और स्थिर हिंद महासागर के विचार को बढ़ावा देना था. इसमें भारत और मालदीव के साथ साथ, श्रीलंका और मॉरिशस भी शामिल हैं.

‘इंडिया आउट’ अभियान

मालदीव में भारत विरोधी भावनाएं 2013 से ही सुलग रही हैं, जब यामीन अब्दुल गयूम राष्ट्रपति चुने गए थे. यामीन, अपने शासन काल में चीन के साथ रिश्ते मज़बूत करने की कोशिशें करते रहे थे ।2018 के चुनाव में भारत समर्थक इब्राहिम सोलिह ने यामीन को शिकस्त दे दी. उसके बाद से ही यामीन ‘इंडिया आउट’ अभियान की अगुवाई करते आ रहे हैं.

मुहम्मद मुइज़्ज़ू, यामीन के मातहत काम कर रहे थे. अगर. 2023 के राष्ट्रपति चुनाव में यामीन अब्दुल गयूम, अयोग्य क़रार नहीं दिए जाते, तो मुइज़्ज़ू की जगह वो ही मालदीव के राष्ट्रपति बनते.मालदीव की राजधानी माले स्थित पत्रकार हामिद ग़फ़ूर कहते हैं कि बॉलीवुड फिल्मों और और सैलानियों की वजह मालदीव पर भारत का गहरा सांस्कृतिक प्रभाव रहा है.

हामिद कहते हैं कि, ‘लेकिन, मालदीव में कुछ लोगों को लगता है कि भारत पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी दादागीरी चलाता रहा है. मुझे लगता है कि मालदीव में हर नागरिक की यही सोच है.’हामिद ग़फ़ूर कहते हैं कि मुइज़्ज़ू, भारत विरोधी भावनाओं को भड़काकर ही सत्ता में पहुंचे हैं. अब उनको अपने इन भारत विरोधी समर्थकों को ये दिखाकर लुभाना होगा कि उनके रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है.

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