Internet Archive में सेव हैं 835 अरब वेब पेज, 4 करोड़ किताब, 1 करोड़ वीडियो! इसके पीछे क्यों पड़े बुक पब्लिशर्स?

Internet Archive Books: दुनिया भर के कंटेंट को डिजिटल रूप में स्टोर करने वाली संस्था इंटरनेट आर्काइव पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. खुद को गैर-लाभकारी कहने वाली संस्था को कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है. जिस मिशन के साथ यह वजूद में आई थी, उस मिशन पर तलवार खिंच गई है. कई बड़े बुक पब्लिशर्स ने इंटरनेट आर्काइव पर कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया है. इसके चलते इंटरनेट आर्काइव को अपने प्लेटफॉर्म से करीब 5 लाख किताबें हटानी पड़ सकती हैं.
इंटरनेट आर्काइव के अनुसार यह एक फ्री ऑनलाइन लाइब्रेरी के तौर पर काम करती है. लेकिन बुक पब्लिशर्स इससे सहमत नहीं हैं. इसलिए उन्होंने फ्री डिजिटल लाइब्रेरी होने का दावा करने वाली इंटरनेट आर्काइव को कानून का सामना करने की चुनौती दी है. यह लोगों तक फ्री ऑनलाइन कंटेंट पहुंचाने और डिजिटल कानून के बीच टकराव को दिखाता है.
इंटरनेट आर्काइव का असली काम
इंटरनेट आर्काइव की पैरेंट कंपनी का नाम वेबैक मशीन (Wayback Machine) है. इसके तहत इंटरनेट आर्काइव किताब खरीदकर उसे डिजिटाइज करती है. इसके बाद बुक के डिजिटल वर्जन को यूजर्स इस्तेमाल कर सकते हैं, या पढ़ सकते हैं. यह संस्था 1996 से वेब पेज को भी सहेज रही है. इसका दावा है कि इसने अब तक 866 अरब वेब पेजों को अपने सर्च इंजन पर डाला है.
इंटरनेट आर्काइव के पास 28 साल से ज्यादा पुरानी वेब हिस्ट्री का रिकॉर्ड है. वेबैक मशीन दुनिया भर की 1200 से ज्यादा लाइब्रेरी के साथ मिलकर काम करती है. इसका Archive-It प्रोग्राम के तहत कंटेंट को डिजिटल वर्जन में स्टोर किया जाता है.
इंटरनेट आर्काइव पर कंटेंट का खाजाना
जून के आखिर में इंटरनेट आर्काइव का कहना था कि उसके प्लेटफॉर्म पर कई अरब वेब पेज के अलावा 4.4 करोड़ बुक और टेक्स्ट, 1.5 करोड़ ऑडियो रिकॉर्डिंग, 1.06 करोड़ वीडियो, 48 लाख इमेज और 10 लाख सॉफ्टवेयर मौजूद हैं. इस कलेक्शन में लाइव कंसर्ट और टेलीविजन प्रोग्राम भी शामिल है.
यह खुद को तो लाइब्रेरी बताती है, लेकिन बुक पब्लिशर्स इसे पाइरेसी के अड्डा बताते हैं. कोर्ट ने बुक पब्लिशर्स के हक में अपना फैसला दिया है. अपने प्लेटफॉर्म से लाखों किताबें हटाने के बाद भी इंटरनेट आर्काइव पर कंटेंट का अकूत खजाना मौजूद रहेगा.
कोविड में चलाई इमरजेंसी लाइब्रेरी
कोविड-19 के दौरान पूरी दुनिया लॉकडाउन था. इधर-उधर आने-जाने पर पाबंदी थी. ऐसे में इंटरनेट आर्काइव ने ‘नेशनल इमरजेंसी लाइब्रेरी’ (NEL) शुरू की. इसका मकसद घर में कैद लोगों तक किताबों को पहुंचाना था, क्योंकि फिजिकल लाइब्रेरी बंद थी. आर्काइव ने एक समय पर एक किताब पढ़ने वाली लिमिट को बढ़ाकर दस हजार तक कर दिया था.
रीडर्स को कंट्रोल करने के लिए आर्काइव ‘कंट्रोल्ड डिजिटल लैंडिंग’ सिस्टम का इस्तेमाल करती है. जब आर्काइव को मुकदमे का सामना करना पड़ा तो इसने इमरजेंसी लाइब्रेरी को बंद कर दिया.
इंटरनेट आर्काइव के खिलाफ कोर्ट का ऑर्डर
अपनी लाइब्रेरी पर कॉपीराइट बुक्स के डिजिटल वर्जन का बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचना बुक पब्लिशर्स को रास नहीं आया. इसलिए उन्होंने कॉपीराइट कानून के उल्लंघन का हवाला देते हुए इंटरनेट आर्काइव पर मुकदमा ठोक दिया. 2020 में शुरू हुए हैचेट बनाम इंटरनेट आर्काइव मामले में ट्रेडिशनल बुक पब्लिशर्स हैचेट, हार्पर कॉलिन्स, विली और पेंगुइन रैंडम हाउस ने इंटरनेट आर्काइव पर मुकदमा दायर किया.
इनका आरोप था कि इंटरनेट आर्काइव ने उनकी कॉपीराइट किताबों को गैरकानूनी रूप से स्कैन करके डिजिटलाइज किया, और पब्लिक तक उनकी किताबें पहुंचाई. पिछले साल 24 मार्च को डिस्ट्रिक्ट जज जॉन जी कोएल्टल ने पब्लिशर्स के हक में आदेश जारी किया. इंटरनेट आर्काइव पर लाखों ई-बुक्स मौजूद हैं, जिन्हें कोई भी फ्री में डाउनलोड कर सकता है, या पढ़ सकता है. कॉपीराइट कानून के तहत जज ने किताबें हटाने का ऑर्डर दिया. इंटरनेट आर्काइव ने इस फैसले को निराशाजनक बताया है.

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