‘केजरीवाल या ममता’, खरगे के PM वाली स्क्रिप्ट किसकी? चक्रव्यूह में फंसी कांग्रेस
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एक कहावत बड़ी पुरानी है, एक तीर से दो निशाने साधने की. ऐसा करने वाले चतुर माने जाते हैं. दिल्ली में हुई इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक भी इसी मुहावरे का शिकार हो गई है. लेकिन यहां तो एक तीर से दो नहीं बल्कि कई निशाने साधने की तैयारी है. अभी तो देखने और सुनने में कांग्रेस को ये दांव अपने फ़ायदे का लग सकता है. पर लगने और होने में भी फ़र्क़ है.
नरेंद्र मोदी को हराने के लिए कांग्रेस ने जो बैठक बुलाई थी, उसी बैठक में उसके साथ खेला हो गया. कांग्रेस को इसकी भनक तक नहीं लगी. अब कांग्रेस की हालत कुछ ऐसी है जैसे आगे पहाड़ और पीछे खाई. अभी तो आग़ाज़ है, तीर ठीक निशाने पर लगा तो अंजाम में इंडिया गठबंधन के टूटने का भी ख़तरा है.
चक्रव्यूह में फंसी कांग्रेस
ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के गठबंधन ने कांग्रेस को चक्रव्यूह में फंसा दिया है. इंडिया गठबंधन के अंदर ही दोनों मुख्यमंत्रियों के गठबंधन ने खेल कर दिया है. राजनीतिक रूप से ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों एक ही नाव पर सवार हैं. जाने माने साहित्यकार प्रेमचंद ने गोदान में नाव की ऐसी ही एक सवारी का ज़िक्र किया है. उन्होंने लिखा है जब नाव पर बीच नदी में होते हैं तो हमेशा इस बात का डर होता है किसी चट्टान से नाव न टकरा जाए. लेकिन जब वह पलटती है तो जान बचाने के लिए वही चट्टान सहारा बन जाता है.
खरगे को पीएम उम्मीदवार बनाने की पेशकश
अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी का साझा दांव ठीक वैसा ही है. इंडिया गठबंधन में शुरूआत से ही दोनों नेता कम्फर्टेबल नहीं रहे हैं. बैठक की शुरूआत में ही ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे बढ़ा दिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष खरगे को इस गठबंधन का संयोजक या फिर चेयरमैन बनाना चाहिए. अरविंद केजरीवाल ने भी इसका समर्थन किया. अरविंद केजरीवाल ने तो खरगे को पीएम उम्मीदवार बनाने की पेशकश कर दी.
दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने कहा कि मल्लिकार्जुन खरगे दलित नेता हैं. उनके नाम और चेहरे से गठबंधन को फ़ायदा होगा. जब केजरीवाल ऐसा कह रहे थे, ठीक उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने उन्हें रोका. खरगे ने कहा कि हमें दलित नेता कहना उचित नहीं है. मैं ट्रेड यूनियन की राजनीति से निकल कर यहां तक पहुंचा हूं. उन्होंने कहा कि अभी प्रधानमंत्री की बात ही नहीं है. हम सबको मिल कर चुनाव लड़ना है.
खरगे के चेहरे से बैकफुट पर कांग्रेस
ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने खरगे के चेहरे के बहाने कांग्रेस को बैकफ़ुट पर ला दिया है. कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है कि न निगलते बन रहा है और न ही उगलते. इंडिया गठबंधन में होने पर भी कई घटक दलों का कांग्रेस पर भरोसा नहीं है. ममता और केजरीवाल की जोड़ी ने इसी डोर पर चोट किया है. दोनों ने स्क्रिप्ट हफ़्ते भर पहले ही तैयार कर लिया था. बस इंतज़ार इंडिया गठबंधन के मंच का था.
ममता का राजनीतिक वजूद
बंगाल में कांग्रेस और लेफ़्ट की क़ीमत पर ही ममता का राजनीतिक वजूद है. वे किसी भी हालत में कांग्रेस और लेफ़्ट के लिए स्पेस नहीं छोड़ना चाहती हैं. कुछ जानकार बताते हैं कि किसी न किसी बहाने ममता बनर्जी गठबंधन से बाहर आ सकती है. ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष खरगे का नाम आगे कर उन्होंने अपना दांव चल दिया है. इसका असर भी दिखने लगा है. कहा जा रहा है कि खरगे के नाम पर नीतीश कुमार नाराज़ हो गए हैं. लेकिन कोई खुल कर दलित नेता के नाम का विरोध नहीं कर सकता है.
ममता और केजरीवाल की राजनीति
ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की राजनीति में बहुत कुछ कॉमन है. दोनों नेताओं के लिए कांग्रेस की पराजय में ही जय है. जो वोट कांग्रेस के पास हुआ करती थी, अब वही वोट आम आदमी पार्टी और टीएमसी में शिफ़्ट कर गया है. दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में अरविंद केजरीवाल सीटों का बंटवारा अपनी शर्तों पर चाहते हैं. पंजाब की राजनीति दलित वोटों से तय होती रही है. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे का नाम आगे कर उसी वोट बैंक को अपना बनाए रखने की है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन नैचुरल गठजोड़ नहीं है. क्या पता अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन से बाहर निकलने का होम वर्क अभी से शुरू कर दिया है. खेला तो हो गया है. अब देखना ये है कि सेल्फ़ गोल होता है या फिर गोल!