जानिए अमलतास खाने के फायदे और इसके औषधिय उपयोग
अमलतास के पौधे भारत में सर्वत्र होते हैं। इसका वृक्ष मध्यम प्रमाण का 25-30 फुट ऊंचा होता है तथा काण्ड त्वक धूसर वर्ण की या किंचित रक्ताभ होती है। इसके पेड़ की गोलाई तीन से पांच फुट तक होती है। इसके पुष्प वसन्त ऋतु में दीर्घ पुष्प दण्ड पर चमकीले पीत वर्ण के गुच्छों में लगते हैं। इसके झाड़ में डेढ़ दो फुट लम्बी काले रंग का फलियां लगती हैं जो शीतकाल में पकती हैं। फली के अन्दर छोटे छोटे खाने बने हुए होते हैं और उसमे काले रंग का गोंद के समान एक रसदार पदार्थ भरा रहता है, जो उसका गिरा कहलाता है। इस झाड़ की शाखाओं में एक प्रकार का लाल रस निकलता है, जो जमकर गोंद जैसा हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अमलतास भारी, स्वादिष्ट, शीतल, मृदुरेचक तथा ज्वर, हृदय रोग, रक्तपित्त, वात उदावर्त और शूल को नष्ट करने वाला होता है। इसकी फली रुचिकारक, पित्तनिवारक, कफ को नष्ट करने वाली उदर को शुद्ध करने वाली तथा ज्वर में पथ्य है। इसके पत्ते कफ तथा मेद का शोषण करने वाले और मल ढीला करने वाले हैं। इसके फूल स्वादिष्ट, शीतल कड़वे, कसैले, वातवर्धक तथा कफ और पित्त को दूर करने वाले होते हैं। इसकी मज्जा जठराग्रि को बढ़ाने वाली, स्निग्ध, पाक में मधुर, रेचक तथा वात-पित्त को नष्ट करने वाली हैं।
इसकी जड़ चर्मरोग, क्षयरोग व उपदंश में उपयोगी है। जड़ को दूध में औटाकर देने से वात-रक्तनाशक, दाह और दाद को नष्ट करनेवाली है। इसके पत्ते मृदरेचक, ज्वर को दूर करने वाले, घाव को जल्दी भरने वाले तथा गठियावात में अधिक लाभ पहुंचाने वाले होते हैं। अग्निविसर्प रोग में इनका रस दिया जाता है। इसकी फलियां मृदुरेचक, ज्वरविनाशक और स्वाद को दुरुस्त करने वाली होती है। इसके फूल सुगन्धित, स्वाद में कटु-तित्त तथा ठण्डे और संकोचक होते हैं।
नीबू के रस में आधे सेर अमलतास की फलियों को कूटकर डाल दें। दो दिन भीगने के बाद स्वच्छ वस्त्र में डालकर हाथ से हिला कर छान लें। इसके पश्चात् दालचीनी, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपर, भुनी हुई हींग, छोटी इलायची के दाने और बड़ी इलायची के दाने, इन सबको दो-दो तोला लेकर लोहे की खरल में पीसकर कपड़छन कर उसमें मिला दें। इसके पश्चात् सेंधा नमक, काला नमक, भुना हुआ काला दाना और भुना हुआ सफेद जीरा, ये चारों चीजें भी पीसकर उसमें मिला दें। इस अवलेह को तीन माशे से लेकर एक तोले की खुराक तक चाटने से मन्दाग्रि और आलस्य दूर होते हैं। रात्रि को चाटकर सोने से प्रात: काल दस्त साफ हो जाता है। चित्त खूब प्रसन्न रहता है। भोजन में अरुचि होने पर दो घण्टे पहले चाट लेने से भोजन में रुचि पैदा हो जाती हैं। इस अवलेह में पांच तोले मुनक्का को नीबू के रस में पीसकर मिला देने से तथा थोड़े पके अनार के दानों का रस मिला देने से इसकी गरम प्रकृति भी शीतल हो जाती है।
अमलतास का उपयोग
चर्मरोग – अमलतास के पत्ते, चकौर (चकवड़, चकूमर्द) के पत्ते, मैनसिल, हल्दी, कूठ, दारुहल्दी, पीपर, गन्धक; इन सबको समान मात्रा में लेकर, जल के साथ पीसकर लुगदी बनाकर कड़वे तेल में पका लें। इस तेल को फोड़ा, फुंसी, दाद, खुजली आदि चर्म रोगों पर लगाने से लाभ होता है।
ज्वर में – अमलतास के फल की मज्जा द्राक्षा के रस के साथ या दूध के साथ रोगी को पिलानी चाहिए।
उरूस्तम्भ में – पानी और तेल में पकाया हुआ अमलतास के पत्तों का शाक लवण रहित ही खिलाना चाहिए।
आमवात में – सरसों के तेल में पकाए हुए अमलतास के पत्तों के सेवन में आमवात दूर होता है।
गण्डमाला में – तण्डुलोदक में अमलतास के मूल को घिसकर उसका नस्यलेप आदि रूपों में उपयोग करने से गण्डमाला का नाश होता है।
सद्योव्रण में – अमलतास के पत्तों को पीसकर घाव में भर दें। इससे व्रण भर जाएगा। इसी प्रकार ऋतुकाल में स्त्रियों को होने वाली खुजली का और त्वचा के उत्क्षत का इसके लेप से नाश होता है।
कब्ज में – अमलतास का गूदा और इमली का गूदा समान भाग लेकर, भिगोकर, उसको छानकर रात को सोते समय पीने से पेट साफ होता है।
त्वचाविकारों में – प्रथम शरीर पर तेल मर्दन करवाकर, तक्र में पीसे गए अमलतास के पत्तों का लेप करना चाहिए।
कल्प किया हुआ अमलतास साधारण अमलतास से ज्यादा गुणकारी होता है और चार वर्ष के बच्चे को भी आसानी से हजम हो जाता है। इसलिए अमलतास को काम में लेने से पूर्व उसका कल्प कर लिया जाए, तो अच्छा रहता है।
कल्पविधि – अमलतास का पका हुआ फल लाकर एक सप्ताह तक बालू के ढेर में गाड़ दें। फिर उसे धूप में सुखा लें। इस फल के गूदे को दाख के रस के साथ देने से उत्तम विरेचन होता है और कोई हानि नहीं होती।