थैलेसीमिया : इस बीमारी के मरीज को हर 2 हफ्ते में चढ़ाया जाता है खून, 50 साल जिंदा रहने का खर्च 1 करोड़ रुपये

थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जो शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से होती है. यह बीमारी एक आनुवंशिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो माता-पिता से बच्चे में जाती है. यह ऐसी बीमारी है जो लंबे समय से स्वास्थ्य चिंता का विषय बना हुआ है.

हालाँकि, चिकित्सा विज्ञान में हालिया प्रगति ने इस बीमारी से जूझ रहे रोगियों के लिए आशा के एक नए युग की शुरुआत की है, लेकिन फिर भी हर साल थैलेसीमिया के मामले बढ़ रहे हैं.

डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी में शरीर की हीमोग्लोबिन का उत्पादन करने की क्षमता को प्रभावित होती है, लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन ले जाने के लिए जिम्मेदार प्रोटीन के कारण भी ऐसा होता है. थैलेसीमिया के मरीज़ अक्सर एनीमिया, थकान और अन्य जटिलताओं का अनुभव करते हैं, जिससे उनके दैनिक जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

थैलेसीमिया का इलाज भी काफी महंगा है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक, थैलेसीमिया से पीड़ित एक बच्चे के इलाज मेंब्लड ट्रांसफ्यूजन और आयरन दवाओं के लिए हर साल दो लाख रुपये का खर्च आता है. इसका मतलब है कि 50 साल जिंदा रहने के लिए करीब एक करोड़ का खर्च आएगा. यही कारण है कि इस बीमारी से पीड़ित कई मरीज पैसों के अभाव में दम तोड़ देते हैं. हालांकि नवजात बच्चे का टीकाकरण और नियमित रूप से अगर गर्भवती महिला की जांच होती है तो इस बीमारी से बचाव कैसे किया जा सकता है.

जेनेटिक डिसऑर्डर

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में बीएमटी विभाग में डायरेक्टर डॉ.राहुल भार्गव बताते हैं कि भारत में, थैलेसीमिया रोगियों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक उन्नत उपचार तक सीमित पहुंच है. अधिकतर मामलों में शुरू में इस बीमारी के बारे में पता ही नहीं होता है.

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