liquor in steel glass: स्टील के गिलास में अल्कोहल पीने से शरीर में होते है ये नुकसान, 99 फीसदी लोगों को नहीं है पता
आखिर इसके पीछे क्या वजह है कि बहुत सारे लोग स्टील के गिलास में शराब (wine in steel glass) पीने को सही नहीं मानते।क्या सेहत के नजरिए से भी ये ठीक नहीं है? आइए, जानते हैं क्या है इसकी सच्चाई…
स्टील के गिलास में शराब पीने से सेहत पर क्या असर
जानकारों को मानना है कि स्टील के गिलास में शराब (wine in steel glass) पीने का सेहत के नजरिए से कोई नुकसान नहीं है। शराब बनाने की पूरी प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले उपकरण तक स्टेनलेस स्टील के होते हैं।
फर्मेंटिंग टैंक से लेकर फिल्टरिंग उपकरण तक सब स्टील के बने होते हैं। इस बात के सबूत भी नहीं मिले कि स्टील के गिलास में शराब डालने से उसका केमिकल नेचर या फ्लेवर प्रभावित होता हो।
यानी स्टील के गिलास में शराब बिलकुल सेफ है। बाजार में तो कुछ स्टायलिश बीयर मग भी आते हैं, जो स्टेनलेस स्टील के बने होते हैं. और तो और, कॉकटेल्स बनाने के शेकर्स और दूसरे मिक्सिंग उपकरण भी स्टेनलेस स्टील के ही बने होते हैं।
तो स्टील गिलास से क्या है नुकसान
जानकारों के अनुसार, शराब पीने के एहसास को बेहतर बनाता है उसे पूरी शिद्दत से महसूस कर पाना। खाने-पीने के स्वाद के एहसास की सबसे बड़ी ताकत है हमारी आंखें. बाकी शराब की महक, उसका स्वाद, उसका स्पर्श आदि महसूस करने के लिए हमारी दूसरी ज्ञानेंद्रियां मदद करती हैं।
कान का इस्तेमाल तब होता है, जब हम पैमाने टकराते हैं और इसकी खनक कानों तक पहुंचती है। ऐसे में स्टील के गिलास का सबसे बड़ा नुकसान यही है कि पीते वक्त शराब को देख पाना ही मुमकिन नहीं हो पाता।
पीने से पहले आंखों से शराब को देखने का मनोवैज्ञानिक असर बहुत बड़ा होता है, जिसका संबंध सीधे उसके स्वाद से होता है। स्टील के गिलास इसी एहसास को बेहद सीमित कर देते हैं।
ये कुछ वैसा ही है, मानो आंखों पर पट्टी बांधकर कोई स्वादिष्ट चीज खाना। वहीं स्टेनलेस स्टील के गिलास में धातु की महक भी आ सकती है, जो शराब के फ्लेवर के एहसास में बाधा बन सकती है। कांच के गिलास गंधहीन होते हैं, इसलिए ये नुकसान नहीं होता.
ये तो स्टाइल का भी मामला !
हमारे देश में अधिकतर लोगों को शराब में पानी, सोडा, जूस, कोल्ड ड्रिंक आदि मिलाने की आदत होती है। शीशे के गिलास में ये सुविधा है कि पीने वाले को डाली गई शराब और उसमें मिलाए जाने वाले दूसरे तरल की मात्रा का पूरा एहसास रहता है।
वहीं, शराब बेचने वाली कंपनियों ने भी इसकी मार्केटिंग कुछ तरह की है कि पीने के साथ-साथ पीने का तरीका भी बेहद अहम हो चला है। विज्ञापनों ने खूबसूरत ग्लासेज में महंगी शराब (expensive wine in glasses) पीने को इतना स्वीकार्य बना दिया है कि स्टील के गिलास उस एहसास को कमतर करते हुए लगते हैं।
रूपहले पर्दे पर किसी रईस किरदार को स्टील के गिलास में शराब पीते आपने शायद ही कभी देखा हो। इसलिए कांच के गिलास में शराब पीने के पीछे एक स्टाइल का मामला भी है।
एक ही तरह की क्यों होती है बीयर की बोतल
आपने देखा होगा कि बीयर की हर बोतल में एक चीज कॉमन है वो है शेप और कलर। क्या आपको पता है हर बीयर की बोतल ऊपर से पतली क्यों होती है… वैसे तो बीयर दूसरी डिजाइन वाली बोतलों में भी हैं, परंतु अधिकतर बीयर की बोतल लॉन्ग नेक में ही मिलती है।
इसमें बोतल नीचे से थोड़ी चौड़ी होती है और ऊपर एक पाइप की तरह होती है। इस तरह की डिजाइन को नॉर्थ अमेरिकन लॉन्गनेक डिजाइन बोला जाता है। अब ये इंडस्ट्री स्टैंडर्ड बोतल मानी जाती है और अक्सर इसी का इस्तेमाल होता है। इसे स्टैंडर्ड लॉन्गनेक बोतल भी कहते हैं।
ये हैं तीन कारण
इस डिजाइन के पीछे जो कारण हैं उनमें से एक तो ऐसा होने से जब कोई बोतल से बीयर पीता है तो उसे पकड़ने में आसानी होती है। इस तरह की बीयर की बोतल को आसानी से होल्ड किया जा सकता है।
साथ ही ये भी माना जाता है कि इससे शरीर और बीयर के बीच ट्रांसफर होने वाली गर्मी भी कम होती है। इस कारण बीयर ज्यादा देर तक ठंडी रहती है। वहीं इसके अलावा कई लोग इसे लागत से जोड़कर भी देखते हैं। इसे बनाने का खर्च भी कम आता है।
हरे और भूरे रंग की क्यों होती है बीयर की बोतल?
भले ही आप बीयर पीते हों या ना पीते हों पर आपने बीयर की बोतल (Beer Bottle) तो जरूर देखी होगी। मार्केट में अलग अलग ब्रांड की बीयर आती हैं। अगर आपने गौर किया हो तो ये सभी बोतलें या तो हरे रंग की होती हैं या फिर भूरे रंग की होती हैं।
कभी सोचा है बीयर की बॉटल सिर्फ इन्ही दो रंगों की क्यों बनाई जाती हैं। अब बहुत लोग यह सोचेंगे कि अरे भई! रंग से क्या लेना-देना, मतलब तो बस बोतल के अंदर भरी बीयर से है।
अब बोतल का रंग काला रहे या पीला या फिर नीला, उससे क्या ही लेना देना है। लेकिन, इन बोतलों का रंग ऐसा होने के पीछे एक बड़ी वजह होती हैं। क्योंकि अगर इनका रंग ऐसा न रखा जाए तो शायद आप इसे पी भी ना पाएं। बताया जाता है कि इंसान बीयर का इस्तेमाल प्राचीन मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता के समय से ही करते आ रहे हैं।
पहले इस रंग की होती थी
ऐसा माना जाता है कि हजारों साल पहले प्राचीन मिस्र में बीयर की पहली कंपनी खुली थी। चूंकि उस समय बीयर की पैकिंग ट्रांसपेरेंट बोतल में की जाती थी तो पाया गया कि सफेद बोतल में होने की वजह से सूर्य की किरणों से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें (UV Rays) बीयर में मौजूद एसिड को खराब कर रही हैं। जिस वजह से बीयर में बदबू आने लगती थी और लोग उसे पीते नहीं थे।
भूरे रंग पर सूरज की किरणों का नहीं हुआ असर
तब बीयर निर्माताओं ने इस समस्या का हल ढूंढते हुए बीयर के लिए भूरे रंग की परत चढ़ी बोतलें चुनी। इस रंग की बोतलों में बीयर खराब नहीं हुई, क्योंकि भूरे रंग की बोतलों पर सूरज की किरणों का असर नहीं हुआ।
यही कारण है कि क्लोरोफॉर्म (बेहोश करने वाला केमिकल) को भी भूरे रंग की शीशी में ही रखा जाता है, क्योंकि यह सूरज की किरणों से रिएक्शन कर लेती हैं। लेकिन, भूरे रंग की शीशी में रखने पर सूरज की किरणों का इसपर असर ही नहीं होता।
हरा रंग क्यों इस्तेमाल किया गया?
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बीयर की बोतल हरे रंग में रंगी। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भूरे रंग की बोतलों का अकाल पड़ गया था। ऐसे में बीयर निर्माताओं को फिर से एक ऐसा रंग चुनना था, जिस पर सूरज की किरणों का बुरा असर ना पड़े। तब यह काम हरे रंग ने किया और इसके बाद से बीयर हरे रंग की बोतलों में भी भरकर आने लगी।
शराब पीने से पहले क्यों बोलते हैं चीयर्स-
अक्सर लोग शराब पीने से पहले शराब के गिलास को एक दूसरे के गिलास से टकराते हैं। इसके साथ ही लोग चीयर्स बोलकर शराब पीने की शुरुआत करते हैं। हो सकता है कि आप भी ऐसा करते हों।
लेकिन, कभी आपने सोचा है कि लोग ऐसा क्यों करते हैं और इसके पीछे की क्या कहानी है। क्या है चीयर्स की कहानी?- अगर चीयर्स की बात करें तो यह ओल्ड फ्रेंच वर्ड chiere से मिलकर बना है, जिसका मतलब है चेहका या सिर।
कई रिपोर्ट्स के अनुसार 18 वीं शताब्दी तक इसका इस्तेमाल खुशी के लिए भी किया जाता था, लेकिन बाद में एक्साइटमेंट दिखाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होने लगा। इसलिए एक्साइटमेंट के लिए लोग चीयर्स का इस्तेमाल करते हैं।
क्यों टकराते हैं गिलास- अगर गिलास टकराने की बात करें तो कहा जाता है कि जब शराब पीते हैं तो हमारी पांच इंद्रियों में से चार इंद्रियां इस प्रोसेस में शामिल होती है। जैसे आंख से देखते हैं, हाथ से छूते हैं, जीभ से पीते हैं आदि। लेकिन, इसमें कान का इस्तेमाल नहीं होता है।
ऐसे में कान को शामिल करने के लिए भी गिलास टकराए जाते हैं ताकि कान भी इस प्रोसेस में शामिल हो। गिलास टकराने के पीछे ये आदत मानी जाती हैं, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में इससे अलग बातें भी कही गई हैं।
कहा जाता है कि जर्मन रिवाजों में अगर गिलास टकराते हैं तो एविल या गोस्ट शराब से दूर रहते हैं, इसलिए लोग शराब पीने से पहले एविल को दूर रखने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।