सरनेम से भी परीक्षा में घटते-बढ़ते हैं नंबर, विज्ञान के विषयों पर नहीं पड़ता फर्क, मानविकी पर ज्यादा असर

नेशनल डेस्क: अगर आपको लगता है कि परीक्षा में आपके नंबर आपकी मेहनत से थोड़े ज्यादा या थोड़े कम आ रहे हैं तो संभव है कि यह आपके सरनेम की वजह से हो रहा हो। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में अलग-अलग विषयों के करीब 3 करोड़ छात्रों पर हुई शोध में पता चला कि परीक्षा में नंबर घटने या बढ़ने की एक वजह सरनेम भी है।

सरनेम की वजह से ऐसा सबसे ज्यादा सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषयों में ही होता है। इंजीनियरिंग, मेडिकल, विज्ञान जैसे विषयों के असाइनमेंट या परीक्षा के नंबरों पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता। इस शोध का हिस्सा रहे कम्प्यूटेशनल सोशल साइंटिस्ट जियाक्जिन पेई कहते हैं- तार्किक विषयों पर नंबरों का फर्क ज्यादा होता है, लेकिन जो विषय तथ्यात्मक ज्यादा हैं, अंग्रेजी के शुरुआती अक्षरों से शुरू होने वाले सरनेम वाले छात्रों को संभव है कि 100 पॉइंट स्केल पर 0.3 पॉइंट ज्यादा नंबर मिलें। पेई कहते हैं- जब भी परीक्षक शुरुआती कॉपी चेक करता है तो उसमें वह औसतन ज्यादा नंबर देता है।

बाव की कॉपियों में यह कम होता जात है। शोध में यह भी पाया गया कि परीक्षक शुरुआती 10 कॉपियों में सबसे ज्यादा नंबर देते हैं। उसके बाद यह धीरे-धीरे घटता जाता है। हालांकि यह अंतर बहुत कम होता है, लेकिन नंबरों में यह साफ जाहिर होता है।

दरअसल, परीक्षक पर जैसे-जैसे थकान हावी होती जाती है, वे कम नंबर देने लगते हैं। पेई बताते हैं- शिक्षा के क्षेत्र में यह हाल दुनिया भर में लगभग एक जैसा है। इसकी वजह काम की अधिकता और अनिश्चितता है। दोबारा कॉपी चेक करने में सख्त होते हैं परीक्षक पेई अपनी शोध में बताते हैं कि जब परीक्षक कोई कॉपी दोबारा चेक करता है तो उस दौरान वह ज्यादा सख्त होता है। कॉपी में कड़े शब्दों में कमेंट करता है। छोटी-छोटी गलतियों को भी पकड़ लेता है और उन गलतियों के आधार पर मूल्यांकन करता है।

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