Mast Mein Rehne Ka Review : जैकी श्रॉफ की ये पिक्चर आदमी को इंसान बना देगी
जैकी श्रॉफ और नीना गुप्ता की एक पिक्चर प्राइम वीडियो पर आई है. फिल्म का नाम है ‘मस्त में रहने का’. हालांकि फिल्म देखने में थोड़ी देरी हो गई. लेकिन अच्छी फिल्मों की बात हमेशा होनी चाहिए. ये फिल्म देखकर लगा – सिनेमा ऐसा ही होना चाहिए; प्रेम, पश्चाताप और निश्छलता में पगा हुआ. बहुत ज़माने के बाद जीवन से भरी हुई कोई फ़िल्म देखी. मैं चाहता हूं, आप भी ये फिल्म देखें. लेकिन आप लोगों में सवाल पूछने की प्रवृत्ति है. इसलिए पूछेंगे- हम फिल्म क्यों देखें? आपके सवाल का जवाब आगे की तमाम बातों में दिए देते हैं.
भीड़ में अकेले मानव की कहानी
इस फिल्म को देखने की सबसे पहली वजह होनी चाहिए कि ये आपके और हमारे बीच की कहानी है. शहर दोपाए जानवरों से पटा पड़ा है. आप सिर घुमाकर देखेंगे, तो होमो सेपियंस की भारी भीड़ दिखेगी. लेकिन इस भीड़ में भी मानव अकेला है. फिल्म में ऐसे ही कुछ किरदार हैं, जो अपने अकेलेपन से जूझ रहे हैं. किसी को प्रेम की तलाश है और किसी को सिर्फ एक साथी की. ये फिल्म इंसान की इमोशनल नीड्स को अंडरलाइन करती है.
बेहतरीन जस्टापोजीशनिंग
डायरेक्टर विजय मौर्या ने फिल्म में जस्टापोजीशनिंग बहुत अच्छी की है. जैसे ‘पैरासाइट’ में अमीर-गरीब के पैरलल ड्रा किए गए थे, यहां युवान और बुढ़ान की दो समांतर रेखाएं अनंत पर जाकर मिलती हैं. एक जवान लड़का है, उसे पैसे की ज़रुरत है. लेकिन इस बीच वो एक साथी भी खोज रहा है. पर उसकी प्राथमिक ज़रुरत पैसा ही है. और इसके ठीक उलट एक बुजर्ग है, उसे एक साथी की तलाश है. पूरी फिल्म साथी और पैसे के दोआब पर खड़ी है. ‘मस्त में रहने का’ बेसहारा लोगों के बरगद की जड़ को पकड़कर झूल रही है. जीवन में एक वक़्त आता है, जब आप अकेले नहीं जी सकते. आपको एक ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है, जिसके सामने आप अपने मन का ढक्कन खोलकर रख सकें.
आला दर्जे का ट्रीटमेंट
‘मस्त में रहने का’ देखने के बाद हमारे भी मन का इमोशनल ढक्कन खुल जाता है. मूवी सबटेक्स्ट में बात करती है. किरदारों की निश्चलता इस फिल्म का गहना है. फिल्म का ट्रीटमेंट इतना सुंदर है कि एक चोर से भी आपको समानभूति होती है. फिल्म कई तरह के विरोधाभासों पर चलती है. सिग्नल पर भीख मांगने वाली लड़की का डरावना जीवन भी उसके खुद के मन में कितना निडर हो सकता है, और अपने घर से भागकर बड़े शहर आए लड़के का निडर जीवन भी कितना डरावना हो सकता है.
जैकी श्रॉफ का यूनिक काम
जैकी श्रॉफ ने जादू की झप्पी देने वाला काम किया है. उन्होंने प्रेम में भीगे हुए एक बुजुर्ग का किरदार निभाया है. उनका किरदार किसी छुईमुई के पौधे जैसा है, जैसे बस छूने भर से मुरझा जाएगा. इससे पहले जैकी को हमने ज़्यादातर रफ़ कैरेक्टर्स प्ले करते हुए देखा है. लेकिन यहां उन्होंने एक्टिंग की मास्टरक्लास लगाई है. ऐसा ही कुछ नीना गुप्ता ने किया है. वो इससे पहले भी ऐसा काम करती आई हैं, तो उनको देखकर कुछ ख़ास अचरज नहीं होता. अभिषेक चौहान को इस फिल्म के बाद ढेर सारा काम मिलने वाला है. उन्होंने इस फिल्म के लिए अभिनय की सीमाएं लांघी हैं. फैसल मलिक और मोनिका पंवार ने भी बेहतरीन काम किया है. उनसे जो मांग थी ठीक वैसा ही काम करके उन्होंने दिया है; न रत्ती भर कम, न रत्ती भर ज़्यादा.