विपक्ष के तेवर और 2024 का लोकसभा चुनाव, जातिगत जनगणना पर संघ ने कही ये बात
जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर विपक्ष लगातार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को घेरने में जुटा हुआ है. 2024 में भी विपक्षी इसी के सहारे चुनावी रण में उतरने की तैयारी में है, लेकिन संघ ने जातिगत जनगणना पर अपना नजरिया साफ कर दिया है. आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि जाति आधारित जनगणना का उपयोग समाज के समूचे उत्थान के लिए किया जाना चाहिए और ऐसा करते समय, इससे सभी संबंधित लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कारण से सामाजिक सद्भाव और एकता भंग न हो. सुनील आंबेकर के बयान के बाद अब जातीय जनगणना पर आरएसएस का स्टैंड क्लियर हो गया है.
दरअसल, सुनील आंबेकर का जातिगत जनगणना पर संघ का नजरिया रखना इसीलिए जरूर हो गया था, क्योंकि पिछले दिनों विदर्भ क्षेत्र के लिए आरएसएस के सहसंघचालक श्रीधर गाडगे ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना एक ‘निरर्थक अभ्यास’ साबित होगी और केवल कुछ व्यक्तियों की मदद करेगी. उन्होंने यह भी कहा था कि देश में जाति आधारित जनगणना की कोई जरूरत नहीं है, इससे क्या हासिल होगा? जातिगत जनगणना जाति-वार आबादी की मात्रा निर्धारित करेगी, लेकिन यह समाज या राष्ट्र के हित में नहीं होगा. श्रीधर गाडगे के बयान के बाद से ही कांग्रेस यह नैरेटिव सेट करने में जुट गई थी कि संघ दलित और पिछड़ा विरोधी है. कांग्रेस ने इसके लिए बकायदा एक वीडियो भी जारी करके आरएसएस को ओबीसी और आरक्षण विरोधी बताने में जुट गई थी.
सामाजिक न्याय पर आधारित हो जातिगत जनगणना
जातिगत जनगणना के मामले पर संघ पर खड़े हो रहे सवालों को सुनील आंबेकर ने गुरुवार को सभी मुद्दों पर नजरिया साफ कर दिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) किसी भी प्रकार के भेदभाव और विषमता से मुक्त समरसता एवं सामाजिक न्याय पर आधारित हिंदू समाज के लक्ष्य को लेकर सतत कार्यरत है. यह सत्य है कि विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से समाज के अनेक घटक आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ गए. उनके विकास, उत्थान एवं सशक्तिकरण की दृष्टि से विभिन्न सरकारें समय-समय पर अनेक योजनाएं एवं प्रावधान करती है, जिनका संघ पूर्ण समर्थन करता है.
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में जाति आधारित जनगणना पर एक बहस फिर से शुरू हो गई है, हमारा विचार है कि इसका उपयोग समाज के समग्र उत्थान के लिए किया जाना चाहिए. ऐसा करते समय, सभी संबंधित पक्षों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कारण से सामाजिक सद्भाव और एकता टूटे नहीं. सुनील आंबेकर द्वारा जारी बयान में जाति जनगणना के लिए संघ के योग्य समर्थन का सुझाव दिया गया था.
ऐसे में आंबेकर ने साफ कर दिया है कि जातिगत जनगणना को लेकर संघ का विरोध नहीं है. वो चाहता है कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए, लेकिन यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि इससे समाज में समरसता और एकात्मकता खंडित नहीं होनी चाहिए. जातिगत जनगणना सम्रग विकास और समाज के लिए होना चाहिए.
बीजेपी के खिलाफ एजेंडा सेट करने में जुटा विपक्ष
2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश को देखते हुए विपक्ष जातिगत जनगणना को लेकर बीजेपी के खिलाफ एजेंडा सेट करने में जुटा है. बिहार में सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार ने बिहार में जातिगत सामाजिक और आर्थिक सर्वे कराकर आरक्षण के दायरे को बढ़ाने का दांव चला है. इसके बाद कांग्रेस लगातार जातिगत जनगणना कराने की मांग उठा रही है तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी यूपी में जातिगत जनगणना की डिमांड कर रही है.
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक साथ आए 28 विपक्षी दलों के INDIA गठबंधन जातीय जनगणना को बीजेपी के खिलाफ अपना सियासी हथियार बनाने में जुटा है, क्योंकि मोदी सरकार ने संसद में जातिगत जनगणना से मना कर चुकी है. ऐसे में विपक्ष को उम्मीद है कि जातिगत जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी को घेर कर ओबीसी समुदाय को अपने साथ जोड़ा जा सके. वहीं, बीजेपी ने जिस तरह से दलित, ओबीसी और सवर्ण समुदाय को एकजुट किया है, साथ ही उसे जोड़े रखने में जुटी है. बीजेपी के इस काम में संघ भी अहम भूमिका अदा करता रहा है, क्योंकि संघ की तैयारी की गई जमीन पर ही बीजेपी खड़ी है.
वहीं, महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के मंत्रियों और विधायकों ने नागपुर में इसी सप्ताह की शुरुआत में आरएसएस मुख्यालय और केबी हेडगेवार और एमएस गोलवलकर के स्मारक का दौरा किया था. इस दौरान विदर्भ क्षेत्र के लिए आरएसएस के सहसंघचालक श्रीधर गाडगे ने जातिगत जनगणना के खिलाफ बयान आया था, जिसे लेकर कांग्रेस ने संघ पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे. गाडगे की टिप्पणी से एक विवाद खड़ा हो गया, जिसने 2015 में इसी तरह के एक प्रकरण की याद दिला दी, जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए गए एक बयान ने बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया था.
कांग्रेस ने सोशल मीडिया X पर गुरुवार को एक वीडियो पोस्ट करके कहा कि बीजेपी को चलाने वाला आरएसएस हमेशा से जातिगत जनगणना के खिलाफ रहा है. कांग्रेस ने लिखा है कि संघ का रुख जातिगत जनगणना को लेकर बिल्कुल स्पष्ट है. दलितों और पिछड़ों को उनका हक किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए. इसी घृणित सोच के कारण 100 वर्षों में एक भी आरएसएस अध्यक्ष दलित या पिछड़े वर्ग से नहीं हुआ. देश में सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए जातिगत जनगणना बहुत महत्वपूर्ण है. इससे शोषित, वंचित, दलित और पिछड़े वर्ग के लिए नीतियां बनाई जा सकेंगी, ताकि उन्हें समाज में समान अधिकार मिल सकें. आरएसएस और बीजेपी इसी बात से डरते हैं. कांग्रेस ने 2015 में मोहन भागवत के द्वारा आरक्षण की समीक्षा वाले बयान को लेकर एक बार फिर से मुद्दा बनाना शुरू दिया.
RSS और BJP पर आरक्षण को खत्म करने का आरोप
आरएसएस से जुड़ी पत्रिका द ऑर्गेनाइजर को दिए एक साक्षात्कार में संघ प्रमुख भागवत ने आरक्षण की समीक्षा का सुझाव दिया था. विवाद बढ़ने पर आरएसएस ने बाद में सफाई दी थी, लेकिन इस बयान को आरजेडी लालू यादव ने जोर-शोर से उठाया था. उन्होंने आरएसएस और बीजेपी पर कथित तौर पर आरक्षण को खत्म करने की साजिश रचने का आरोप लगाया था. इसके चलते ही बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद से विपक्ष लगातार संघ को घेरता रहा है और श्रीधर गाडगे के बयान को सियासी तूल देना शुरू किया तो संघ की तरफ से सुनील आंबेकर ने स्पष्टीकरण देते हुए जिस तरह से जातिगत जनगणना के पक्ष में बयान दिया है, उससे एक बात को साफ हो गई है कि संघ जातिगत जनगणना के खिलाफ नहीं है, लेकिन साथ ही वो चाहते है कि ऐसे भी काम न हो, जिससे सामाज में बंटवारा हो.
आरएसएस लंबे समय में इस कोशिश में लगा है कि अलग-अलग जातियों में बंटे हिंदू समाज को एकजुट किया जाए. संघ लगातार सामाजिक समरसता कायम करने के लिए ‘एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान’ की बात कहता रहा है. संघ इस रणनीति के जरिए हिंदुओं के बीच जातिगत भेदभाव को खत्म करने की मुहिम चला रही है. ऐसे में संघ नहीं चाहता है कि हिंदू समुदाय के बीच किसी तरह से जातिगत भेदभाव पैदा हो. इसीलिए संघ ने साफ कर दिया है कि जातिगत जनगणना का समर्थन करती है, लेकिन सामाजिक सद्भावना बनी रहनी चाहिए. इसके बाद संघ पर सवाल खड़ा करना विपक्ष के लिए मुश्किल होगा?