रामचरितमानस: जब नारद जी ने रामजी से पूछा, हे प्रभु आपने मुझे विवाह क्यों नहीं करने दिया
सीताजी की तलाश में श्रीराम भाई लक्ष्मणजी के साथ वन-वन भटक रहे हैं. श्रीराम कहते हैं- हे लक्ष्मण! जरा वन की शोभा तो देखो. इसे देखकर किसका मन क्षुब्ध नहीं होगा? पक्षी और पशुओं के समूह सभी स्त्रीसहित हैं. मानो वे मेरी निन्दा कर रहे हैं. हमें देखकर हिरनों के झुंड भागने लगते हैं, तब हिरनियां उनसे कहती हैं- तुमको भय नहीं है. तुम तो साधारण हिरनों से पैदा हुए हो, अतः तुम आनन्द करो. ये तो सोने का हिरन खोजने आये हैं. हाथी हथिनियों को साथ लगा लेते हैं. वे मानो मुझे शिक्षा देते हैं कि स्त्री को कभी अकेली नहीं छोड़ना चाहिये. भलीभांति चिन्तन किए हुए शास्त्र को भी बार-बार देखते रहना चाहिये. अच्छी तरह सेवा किये हुए भी राजा को वश में नहीं समझना चाहिये और स्त्री को चाहे हृदय में ही क्यों न रखा जाय; परन्तु युवती स्त्री, शास्त्र और राजा किसी के वश में नहीं रहते. हे तात! इस सुन्दर वसन्त को तो देखो. प्रिया के बिना मुझको यह भय उत्पन्न कर रहा है. मुझे विरह से व्याकुल, बलहीन और बिलकुल अकेला जानकर कामदेव ने वन, भौंरों और पक्षियों को साथ लेकर मुझपर धावा बोल दिया, परन्तु जब उसका दूत यह देख गया कि मैं भाई के साथ हूं, तब उसकी बात सुनकर कामदेव ने मानो सेना को रोककर डेरा डाल दिया है. विशाल वृक्षों में लताएं उलझी हुई ऐसी मालूम होती हैं मानो नाना प्रकार के तंबू तान दिये गए हैं. केला और ताड़ सुन्दर ध्वजा-पताका के समान हैं. इन्हें देखकर वही नहीं मोहित होता जिसका मन धीर है.
अनेकों वृक्ष नाना प्रकार से फूले हुए हैं. मानो अलग-अलग बाना (वर्दी) धारण किए हुए बहुत-से तीरंदाज हों. कहीं-कहीं सुन्दर वृक्ष शोभा दे रहे हैं. मानो योद्धा लोग अलग-अलग होकर छावनी डाले हों. कोयलें कूज रही हैं, वही मानो मतवाले हाथी चिंघाड़ रहे हैं. ढेक और महोख पक्षी मानो ऊंट और खच्चर हैं. मोर, चकोर, तोते, कबूतर और हंस मानो सब सुन्दर ताजी (अरबी) घोड़े हैं. तीतर और बटेर पैदल सिपाहियों के झुंड हैं. कामदेव की सेना का वर्णन नहीं हो सकता. पर्वतों की शिलाएं रथ और जल के झरने नगाड़े हैं. पपीहे भाट हैं, जो गुणसमूह (विरदावली) का वर्णन करते हैं. भौंरों की गुंजार भेरी और शहनाई है. शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा मानो दूत का काम लेकर आई है. इस प्रकार चतुरंगिणी सेना साथ लिए कामदेव मानो सबको चुनौती देता हुआ विचर रहा है. हे लक्ष्मण! कामदेव की इस सेना को देखकर जो धीर बने रहते हैं, जगत में उन्हीं की वीरों में प्रतिष्ठा होती है. इस कामदेव के एक स्त्री का बड़ा भारी बल है. उससे जो बच जाय, वही श्रेष्ठ योद्धा है. हे तात! काम, क्रोध और लोभ- ए तीन अत्यन्त प्रबल दुष्ट हैं. ए विज्ञान के धाम मुनियों के भी मनों को पलभर में क्षुब्ध कर देते हैं. लोभ को इच्छा और दम्भ का बल है, काम को केवल स्त्री का बल है और क्रोध को कठोर वचनों का बल है; श्रेष्ठ मुनि विचारकर ऐसा कहते हैं.