RSS और सरकारी कर्मचारियों का मामला… विपक्ष को घेरने के लिए सरकार का ‘प्लान रामफल’

राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगा प्रतिबंध केंद्र सरकार ने हटा दिया है. इसको लेकर विवाद उफान पर है. विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है. वहीं इस मामले में सरकार ने अपने पक्ष में करीब पांच दशक पहले के दो कोर्ट के आदेश की चर्चा की है. इसमें एक केस पंजाब और हरियाणा राज्य के हाई कोर्ट का है, तो वहीं दूसरा मैसूर हाई कोर्ट का.
साल 1965 में रामफल नाम के व्यक्ति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में भाग लेने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. हालांकि इस मामले में उन्होंने अपनी भागीदारी स्वीकार की थी. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर विरोध जताया था कि आरएसएस कोई राजनीतिक दल नहीं है और इसलिए यह किसी नियम का उल्लंघन नहीं है. लेकिन पंजाब सरकार ने ये विचार किया कि आरएसएस एक राजनीतिक दल है और इसलिए उनकी भागीदारी आचरण नियमों के विरुद्ध थी.
रद्द कर दिया गया बर्खास्तगी का आदेश
इसी कारण उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. इस बर्खास्तगी के आदेश के खिलाफ रामफल ने हाई कोर्ट में रिट याचिका की. इस याचिका को अदालत ने इस लिए स्वीकार कर लिया क्योंकि कि सरकार के पास ऐसा कोई तथ्य नहीं था, जिससे यह माना जा सके कि आरएसएस एक राजनीतिक दल है. इसके बाद साल 1967 में इस अदालत ने रामफल की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया.
आरएसएस एक गैर राजनीतिक संगठन है- मैसूर हाई कोर्ट
सरकार मौजूदा समय में अपना पक्ष रखने के लिए एक मैसूर उच्च न्यायालय के फैसले को भी बता रही है. इसमें एक सरकारी अधिकारी का प्रमोशन सिर्फ इसलिए नहीं किया जा रहा था क्योंकि वे आरएसएस के सक्रिय सदस्य थे. इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. यहां कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया आरएसएस एक गैर-राजनीतिक और सांस्कृतिक संगठन है. इसमें गैर-हिंदुओं के प्रति कोई घृणा या दुर्भावना नहीं है. साल 1966 में कोर्ट ने आदेश दिया कि आरएसएस के सदस्य प्रमोशन के लिए अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे.
कई जज और सेना अधिकारी भी लेते हैं कार्यक्रमों में भाग
राष्ट्रीय स्वयंसेवक पिछले कई वर्षों से समय-समय पर राष्ट्रीय आपदा की परिस्थितियों में मदद के लिए आगे रहता है. लेकिन 1958 में सरकारी कर्मचारियों को संघ गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रतिबंधित किया गया था. हालांकि लोगों ने संघ को राजनैतिक दल नहीं बल्कि एक सामाजिक संगठन माना है. सुप्रीम कोर्ट के कई जज और सेना अधिकारी संघ के कई कार्यक्रमों में भाग लेते हैं.
ब्रिटेन में सामाजिक संगठनों में भाग लेने का अधिकार
साल 2000 में संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह ने सरकारी कर्मचारियों के द्वारा संघ की गतिविधियों मे भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने अथवा हटाने की कार्यवाही में हस्तक्षेप न करते हुए इसके निर्णय का अधिकार सरकारों पर छोड़ दिया था. बता दें, ब्रिटेन में न्यायपालिका तथा पुलिस विभाग में काम कर रहे कर्मचारियों को छोड़कर बाकी के सभी शासकीय कर्मचारियों को सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों, यहां तक की राजनैतिक पार्टी की गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है.

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