बॉम्बे हाईकोर्ट से 10 साल बाद मिली सैफुद्दीन को राहत, बने रहेंगे दाऊदी बोहरा समुदाय के धार्मिक नेता
10 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार बॉम्बे हाईकोर्ट ने सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन को राहत दी। अदालत ने उसके भतीजे सैयदना ताहिर फखरुद्दीन का दावा खारिज करते हुए उनके दाई-अल-मुतलक या दाऊदी बोहरा समुदाय के धार्मिक नेता का पद बरकरार रखा।
साल 2014 से चल रहा मामला
यह मुकदमा शुरू में खुजैमा कुतुबुद्दीन ने अपने भाई सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन के जनवरी 2014 में 102 वर्ष की आयु में निधन के तुरंत बाद दायर किया था। बुरहानुद्दीन के दूसरे बेटे मुफद्दल सैफुद्दीन ने सैयदना का पदभार संभाला।
जस्टिस जीएस पटेल ने फैसला सुनाते हुए फखरुद्दीन का मुकदमा खारिज कर दिया। इस मामले में नौ साल तक लंबी सुनवाई चली। फिर अदालत ने पिछले साल अप्रैल में फैसला सुरक्षित रख लिया था। अंतिम सुनवाई नवंबर 2022 में शुरू हुई और अप्रैल 2023 में समाप्त हुई।
यह है पूरा मामला
कुतुबुद्दीन ने अपने मुकदमे में अदालत से अपने भतीजे सैफुद्दीन को सैयदना के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने की मांग की थी। उन्होंने दावा किया था कि उनके भाई बुरहानुद्दीन ने उन्हें ‘मजून’ (सेकंड-इन-कमांड) नियुक्त किया था और 10 दिसंबर, 1965 को घोषणा से पहले एक गोपनीय ‘नस’ (उत्तराधिकार प्रदान करने) के माध्यम से निजी तौर पर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। हालांकि, 2016 में कुतुबुद्दीन का निधन हो गया, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उनके बेटे ताहिर फखरुद्दीन को मुकदमे में वादी के रूप में उनकी जगह लेने की अनुमति दी। फखरुद्दीन ने दावा किया था कि मरने से पहले उनके पिता ने उन्हें इस पद के लिए नियुक्त किया था।
क्या है दाऊदी बोहरा?
गौरतलब है, दाऊदी बोहरा, शिया मुसलमानों के बीच एक धार्मिक संप्रदाय है। यह पारंपरिक रूप से व्यापारियों और उद्यमियों का एक समुदाय है, जिसके भारत में पांच लाख से अधिक सदस्य हैं और दुनिया भर में 10 लाख से अधिक हैं। समुदाय के शीर्ष धार्मिक नेता को दाई-अल-मुतलक के नाम से जाना जाता है।
दाऊदी बोहरा सिद्धांत के अनुसार, एक उत्तराधिकारी को ‘ईश्वरीय प्रेरणा’ के माध्यम से नियुक्त किया जाता है। समुदाय के किसी भी योग्य सदस्य को ‘नस’ (उत्तराधिकार प्रदान करना) प्रदान किया जा सकता है और जरूरी नहीं कि वर्तमान दाई के परिवार का ही सदस्य हो।
न्यायमूर्ति पटेल ने मुकदमा खारिज करते हुए कहा, ‘मैं कोई बदलाव नहीं चाहता। मैंने फैसले को तथ्यों को देखते हुए लिया है। मैंने केवल सबूत के मुद्दे पर फैसला किया है, आस्था पर नहीं।’
मुकदमे में हाईकोर्ट से सैफुद्दीन को दाई-अल-मुतलक के रूप में काम करने से रोकने की मांग की गई थी। याचिका में सैयदना के मुंबई स्थित घर सैफी मंजिल में प्रवेश का भी अनुरोध किया गया है और आरोप लगाया गया है कि सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन ने नेतृत्व की भूमिका धोखाधड़ी से संभाली।