सैम पित्रोदा की सोच 3 दशक पुरानी, कांग्रेस के लिए बार-बार बन रहे ‘मणिशंकर अय्यर’
सैम पित्रोदा का नाम जब भी आता है 3 दशक से भी अधिक पुराना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का समय याद आ जाता है. एक प्रसिद्ध हिंदी पत्रिका के अंतिम पेज पर छपने वाले सटायर कॉलम में एक पत्रकार लिखता है कि किस तरह उस दौर में राजीव गांधी हर काम के लिए पित्रोदा पर निर्भर हो चुके थे.
व्यंग्य कॉलम में राजीव गांधी हर बात पर अपने सबऑर्डिनेट से बोलते हैं कि बस पित्रोदा साहब आ रहे हैं सब हो जाएगा. दरअसल कुछ समय के लिए राजीव गांधी को ऐसा लगने लगा था उनकी सारी समस्याओं का हल सैम पित्रोदा कर देंगे. पर राजीव गांधी की समस्याएं कम नहीं हुईं बल्कि पहाड़ जैसी लोकप्रियता से वो इस तरह फिसले कि दोबारा अपनी सरकार भी नहीं बना पाए. कहा जाता है कि इतिहास अपने आपको दोहराता है. राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी भी सैम पित्रोदा के मोहपाश में इस तरह से फंसे हुए हैं कि पूरी कांग्रेस पार्टी उससे प्रभावित होती रहती है. 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले भी पित्रोदा कांग्रेस के लिए नये मणिशंकर बनकर सामने आ गए थे. एक बार फिर वो कांग्रेस के लिए मणिशंकर बनने के लिए तैयार हैं.
पित्रोदा का विरासत टैक्स और कांग्रेस की सफाई
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के विरासत टैक्स को लेकर दिए गए बयान ने दूसरे चरण के वोटिंग के 2 दिन पहले कांग्रेस के लिए हिट विकेट करने जैसी स्थिति पैदा कर दी है. बीजेपी संपत्ति के बंटवारे वाली राहुल की बात पर पहले से ही हमलावर थी अब पित्रोदा के बयान पर तो उसे मुद्दा मिल गया है . कांग्रेस नेता अब बचाव की मुद्रा में आ गए हैं. पहले चरण के चुनाव में ऐसा लग रहा था कि बीजेपी बैकफुट पर आ गई है पर पित्रोदा के बयान से बीजेपी को प्राणवायु मिल गई है.
पित्रोदा ने कहा कि अमेरिका में विरासत टैक्स (Inheritance Tax) लगता है जो काफी दिलचस्प कानून है. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है. लेकिन मुझे लगता है कि इस पर चर्चा होनी चाहिए. इस बयान के बाद कांग्रेस को पित्रोदा के बचाव में उतरना पड़ा है. जयराम रमेश ने कहा कि लोकतंत्र में हर शख्स को उनके निजी विचारों पर चर्चा करने और अपनी राय रखने की स्वतंत्रता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पित्रोदा के विचार हमेशा कांग्रेस की राय से मेल खाते हों. कई बार ऐसा नहीं होता. उनकी टिप्पणी को सनसनीखेज बनाकर पेश किया जा रहा है. प्रधानंमत्री मोदी के दुर्भावनापूर्ण चुनावी कैंपेन से ध्यान भटकाने के लिए जानबूझकर पित्रोदा के बयान को गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है.सवाल यह है कि पित्रोदा हर बार गलतियां करते हैं और फिर कांग्रेस सफाई देती रहती है. हर बार अगर डैमेज कंट्रोल ही करना है तो जिस तरह मणिशंकर अय्यर से कांग्रेस ने दूरी बना ली वैसे ही जयराम रमेश से भी दूरी क्यों नहीं बना लेती है पार्टी.
संपत्ति बंटवारे की बात अब पुरानी पड़ चुकी है
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने बीते दिनों एक बयान में कहा था कि अगर चुनाव बाद उनकी सरकार सत्ता में आई तो एक सर्वे कराया जाएगा और पता लगाया जाएगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है. पीएम मोदी लगातार राहुल गांधी के इस विचार को मुद्दा बनाए हुए हैं. कांग्रेस का हर रोज इस पर सफाई आ रही है. प्रियंका गांधी ने भी मंगलवार को इस मुद्दे पर कांग्रेस की ओर सफाई दी और संपत्ति के बंटवारे की बात को बेबुनियाद बताया. पर जब इसी बात पर सैम पित्रोदा से पूछा गया तो उन्होंने अमेरिका में लगने वाले विरासत टैक्स का जिक्र कर दिया.पित्रोदा ने कहा कि अमेरिका में विरासत टैक्स लगता है. अगर किसी शख्स के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है. उसके मरने के बाद 45 फीसदी संपत्ति उसके बच्चों को ट्रांसफर हो जाती है जबकि 55 फीसदी संपत्ति पर सरकार का मालिकाना हक हो जाता है.
उन्होंने कहा कि ये बहुत ही रोचक कानून है. इसके तहत प्रावधान है कि आपने अपने जीवन में खूब संपत्ति बनाई है और आपके जाने के बाद आपको अपनी संपत्ति जनता के लिए छोड़नी चाहिए. पूरी संपत्ति नहीं बल्कि आधी, जो मुझे सही लगता है. लेकिन भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है. यहां अगर किसी के पास 10 अरब रुपये की संपत्ति है. उसके मरने के बाद उनके बच्चों को सारी की सारी संपत्ति मिल जाती है, जनता के लिए कुछ नहीं बचता. मुझे लगता है कि इस तरह के मुद्दों पर लोगों को चर्चा करनी चाहिए. मुझे नहीं पता कि इस चर्चा का निचोड़ क्या निकलेगा. हम नई नीतियों और नए प्रोग्राम की बात कर रहे हैं, जो लोगों के हित में हो ना कि सिर्फ अमीरों के हित में हो.
हो सकता है सैम पित्रोदा सही कह रहे हों. पर एक तो इस तरह की बातें ऐन चुनाव के मौके पर नहीं कहीं जाती हैं. दूसरे इस तरह के विचारों को दुनिया भर में तरजीह नहीं मिल रही है.चीन और रूस जैसे देशों में हर साल बढ़ती पूंजिपतियों की संख्या इसका उदाहरण हैं. दुनिया भर में पूंजीवाद को बढ़ावा मिल रहा है. यह माना जा रहा है कि पूंजीवाद और फायदे के इकॉनमी से गरीबों का कल्याण होगा. जितनी अमीरी बढ़ेगी धन उतना ही रिसकर नीचे तक पहुंचेगा.काफी हद तक दुनिया में इसे सही होते देखा गया है. इकॉनमी की ग्रोथ रेट जितनी बढ़ती है गरीबी और बेरोजगारी उतनी ही कम होती है. इकॉनमी की ग्रोथ रेट बिना पूंजीवाद के बढ़ना संभव नहीं है. शायद चीन भी इस रास्ते पर इसलिए ही चल रहा है.
क्या पित्रोदा कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सकते हैं?
सैम पित्रोदा इस समय राहुल गांधी के सबसे प्रिय सलाहकारों में से एक हैं. कांग्रेस के लोग समझते हैं कि सैम पित्रोदा कांग्रेस को पुनर्जीवित कर सकते हैं. एक सोशल मीडिया साइट पर आज से कुछ महीने पहले इस बात बहस हो रही थी कि क्या सैम पित्रोदा कांग्रेस को नया जीवन दे सकते हैं? कहने का मतलब है ये कि कांग्रेस पार्टी उन्हें कितनी अहमियत देती है ये बात कांग्रेस के बारे में चिंता करने वाले देश के जागरूक वोटर्स को भी है. पर इस सोशल मीडिया पर अधिकतर लोगों का मानना है कि सैम पित्रोदा यह काम करने में सक्षम नहीं है. उनके विचार पुराने पड़ चुके हैं. पिछले दिनों उन्होंने जिस तरह के बयान राम मंदिर के बारे दिए थे और जिस तरह वो संपत्ति बंटवारे की बात करते हैं उससे यही लगता है कि उनपर वामपंथी विचारों की छाया है. शायद कुछ वैसा ही जिसकी चर्चा पीएम मोदी अरबन नक्सलवाद के रूप में अक्सर किया करते हैं. कांग्रेस पार्टी का जितना नुकसान इस तरह के वामपंथी विचारों के चलते हुआ उतना नुकसान बीजेपी ने भी नहीं किया है. कांग्रेस ने अपने चरमोत्कर्ष काल में कभी भी वामपंथ को पार्टी पर हॉवी नहीं होने दिया.
2019 चुनाव के पहले भी न्याय योजना के लिए मिडिल क्लास पर टैक्स लगाने की बात कहकर बिगाड़ा था खेल
जिस तरह 2014 के चुनावों के पहले राहुल गांधी के खास सहयोगी रहे मणिशंकर अय्यर ने तब पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी को चायवाला बोलकर कांग्रेस को हिट विकेट करा दिया था उसी तरह सैम पित्रोदा ने भी 2019 के चुनावों में कांग्रेस का गुण गोबर कर दिया था. अंतिम दो फेज के चुनाव बचे हुए थे जिसमें दिल्ली और पंजाब में वोटिंग होनी थी. पित्रोदा ने सिख विरोधी दंगों के बारे कहा कि अब क्या 1984 का ? 84 में हुआ तो हुआ. उनके इस बयान को नरेंद्र मोदी और अमित शाह हाथों-हाथ लिया और चुनावी रैलियों में कांग्रेस पर जमकर हल्ला बोला.दिल्ली में बीजेपी नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने सिखों की भावनाओं को दुखाने के लिए एफआईआर भी कराई.
हालांकि इससे भी बड़ी गलती पित्रोदा ने तब कर दी थी जब उन्होंने राहुल गांधी की न्याय योजना के लिए देश के मध्यवर्ग पर टैक्स बढ़ाने की बात कर दी थी. दरअसल न्याय योजना के तहत कांग्रेस ने वादा किया था कि देश के सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों को सालाना 72 हजार रुपये दिए जाएंगे. जब पित्रोदा से पूछा गया कि इस योजना के लिए बजट कहां से आएगा तो उन्होंने मिडिल क्लास पर टैक्स थोपने की बात कह दी थी. बालाकोट स्ट्राइक पर संदेह करके भी उन्होंने कांग्रेस का काम खराब किया था.