SC-ST के आरक्षण पर मल्लिकार्जुन खरगे ने BJP पर बोला हमला, क्रीमी लेयर पर कही ये बात
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शनिवार को क्रीमी लेयर की अवधारणा के आधार पर एससी और एसटी को आरक्षण देने पर केंद्र सरकार के इनकार की आलोचना की. उन्होंने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसद में विधेयक लाना चाहिए था.
खरगे ने शनिवार को इस पर ट्वीट कर कहा कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने फैसला किया था कि जिसमें उन्होंने एससी-एसटी वर्ग के लोगों के लिए उप-वर्गीकृत करने की बात की थी. इस फैसले में एससी-एसटी वर्ग के आरक्षण में क्रीमी लेयर की भी बात की गई थी.
उन्होंने कहा कि भारत में अनुसूचित जाति के लोगों को सबसे पहले आरक्षण बाबासाहेब डॉ अंबेडकर के पुणा पैक्ट के माध्यम से मिला था. बाद में पंडित नेहरू और महात्मा गांधी जी के योगदान से इसे संविधान में मान्यता देकर, नौकरी और शिक्षण संस्थानों में भी लागू किया गया था.
SC-ST की वैकेंसी खाली
पिछले दिनों Supreme Court का 7-Judge Bench का फ़ैसला आया, जिसमें उन्होंने SC-ST वर्ग के लोगों के लिए Sub-Categorisation का बात की।
इस फ़ैसले में SC-ST वर्ग के आरक्षण में Creamy Layer की भी बात की गई।
भारत में Scheduled Caste के लोगों को सबसे पहले आरक्षण बाबासाहेब डॉ अंबेडकर के pic.twitter.com/36fNB7nqpn
— Mallikarjun Kharge (@kharge) August 10, 2024
खरगे ने सवाल किया कि परंतु 70 सालों के बाद भी सरकारी नौकरियों में जब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों की भर्तियां देखते है, तो पाते है कि अभी भी जो वैकेंसी है वो नहीं भरी जा रही है, अधिकतर पद खाली है, जिसका अर्थ है कि इन वर्ग के लोग, सम्मिलित रूप से मिलकर भी इन पदों को नहीं भर पा रहे है. ये अभी भी सामान्य वर्ग के लोगों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर सकते.
उन्होंने कहा कि और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आरक्षण का आधार किसी समुदाय या व्यक्ति की आर्थिक तरक्की नहीं था. बल्कि यह समाज में हजारों सालों से फैली अस्पृश्यता, छूआछूत को मिटाना और खत्म करना था और यह समाज से अभी भी खत्म नहीं हुआ है. कई उदाहरण रोज हमारे सामने आते हैं.
क्रीमी लेयर की बात करना गलत
उन्होंने कहा कि इसलिए अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय में क्रीमी लेयर के बारे में बात करना ही गलत है. कांग्रेस पार्टी इसके खिलाफ है.
उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार धीरे- धीरे सरकारी पीएसयू बेचकर नौकरियां खत्म कर रही है. ऊपर से, भाजपा की दलित-आदिवासी मानसिकता, आरक्षण पर निरंतर प्रहार कर रही है. सरकार चाहती तो इस मुद्दे को इसी सत्र में संविधान संशोधन लाकर सुलझा सकती थी. मोदी सरकार 2-3 घंटे के अंदर नई बिल ले आती है तो ये भी संभव था.
फैसले के अन्य विषयों की बारीकी के ऊपर निर्णय करने के लिए हम अलग अलग लोगों बुद्धजीवी, विशेषज्ञ, एनजीओ के साथ बातचीत कर रहे हैं.