घर-घर बेचा दूध, ट्यूशन देकर निकाला पढ़ाई का खर्च, उधार ले शुरू किया काम और यह बंदा बन गया बंधन बैंक का मालिक

कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. दुनिया में न जाने कितनी ही शख्सियतों ने इस पंक्ति को चरितार्थ किया है. इन्‍हीं लोगों में एक नाम बंधन बैंक (Bandhan Bank) के फाउंडर और सीईओ चंद्रशेखर घोष (Chandrashekhar Ghosh) का भी है. आज अरबपति बन चुके चंद्रशेखर घोष कभी पाई-पाई को मोहताज थे? अपनी गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया और उसी का नतीजा है कि आज वह एक सफल इंसान हैं.

अपना गुजारा चलाने को कभी दूध बेचने वाले चंद्रशेखर आज बंधन बैंक के मालिक हैं जिसका बाजार पूंजीकरण 28997 करोड़ रुपये है. उनका कहना है कि अपनी मेहनत और हुनर से कोई भी व्यक्ति दुनिया में कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है. उन्‍होंने कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा. पढाई के बाद उन्‍होंने एनजीओ में कम वेतन में नौकरी भी की.

पिता की थी मिठाई की छोटी सी दुकान

1960 में त्रिपुरा के अगरतला में जन्मे चंद्रशेखर घोष के पिता की मिठाई की एक छोटी सी दुकान थी. उनका परिवार मूल रूप से बांग्लादेश का ही है और आजादी के समय वे शरणार्थी बनकर त्रिपुरा में आ गए थे. इस दुकान से होने वाली आय से नौ सदस्यों के परिवार का गुजारा मुश्किल से चल पाता था. घोष ने बचपन से आर्थिक तंगी देखी. वे भी दुकान पर पिता का हाथ बंटाते थे. वे घर-घर जाकर दूध भी बेचा करते. काम करते हुए भी उन्‍होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी. चंद्रशेखर ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई ग्रेटर त्रिपुरा के एक सरकारी स्कूल में की. उसके बाद ग्रैजुएशन करने के लिए वह बांग्लादेश चले गए.

ट्यूशन पढ़ाकर निकाला पढ़ाई का खर्चघोष ने ढाका यूनिवर्सिटी से 1978 में स्टैटिस्टिक्स में ग्रैजुएशन किया. यूनिवर्सिटी की पढाई और वहां रहने का खर्च उनके घरवाले नहीं उठा सकते थे. अपना खर्च चलाने को वे बच्‍चों को ट्यूशन पढ़ाते थे. ढाका में वे ब्रोजोनंद सरस्वती के आश्रम में रहते थे.

NGO की नौकरी ने बदली राह

साल 1985 उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. मास्टर्स खत्म करने के बाद उन्हें ढाका के एक इंटरनेशनल डेवलपमेंट नॉन प्रॉफिट ऑर्गैनाइजेशन (BRAC) में जॉब मिल गई. वहां उन्होंने देखा कि गांव की महिलाएं छोटी सी आर्थिक सहायता से भी काम शुरू कर के अपना जीवन स्तर बेहतर कर रही हैं. इससे घोष बहुत प्रभावित हुए और उनके दिमाग में भी आइडिया आया की भारत में भी वे ऐसा काम करके न केवल महिलाओं की सहायता कर सकते हैं, बल्कि एक अच्‍छा बिजनेस भी खड़ा कर सकते हैं ।

नौकरी छोड़ शुरू की माइक्रोफाइनेंस कंपनी

लगभग डेढ़ दशक तक बांग्‍लादेश में काम करने के बाद 1997 में चंद्रशेखर घोष कोलकाता वापस लौट आए. 1998 में उन्होंने विलेज वेलफेयर सोसाइटी के लिए काम करना शुरू कर दिया. यह संगठन लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए काम करता था. घोष ने 2001 में बंधन नाम से महिलाओं को लोन देने के लिए माइक्रोफाइनेंस कंपनी बनाई. चंद्रशेखर घोष ने अपने साले और कुछ लोगों से 2 लाख रुपये उधार लेकर अपनी कंपनी शुरू थी. उन्होंने बंधन नाम से एक स्वयंसेवी संस्था भी शुरू की. 2002 में उन्हें सिडबी की तरफ से 20 लाख का लोन मिला. उस साल बंधन ने लगभग 1,100 महिलाओं को 15 लाख रुपये का लोन बांटा. उस वक्त उनकी कंपनी में सिर्फ 12 कर्मचारी हुआ करते थे.

2009 में बनाई एनबीएफसी

2009 में घोष ने बंधन को रिजर्व बैंक द्वारा NBFC यानी नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड करवा लिया. उन्होंने लगभग 80 लाख महिलाओं की जिंदगी बदल दी. वर्ष 2013 में RBI ने निजी क्षेत्र द्वारा बैंक स्थापित करने के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे. घोष ने भी बैंकिंग का लाइसेंस पाने के लिए आवेदन कर दिया. 2015 में घोष को बैंकिंग लाइसेंस मिल गया और इस तरह बंधन बैंक अस्तित्‍व में आ गया.

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