अयोध्या की कहानी-2: राम मंदिर आंदोलन, 1990 में HC का आदेश, निहत्थे कारसेवकों पर गोली, फिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

भगवान, अवतार और चक्रवर्ती सम्राटों की अयोध्या राजनीति के चक्रवातों में फंस गई. किसी के लिए वो ऐतिहासिक गलतियां सुधारने का जरिया थी, तो किसी के लिए सत्ता की कुंजी. एक जनवरी 1990 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि परिसर का सर्वे कराया जाए. और अब जल्द ही अयोध्या एक बड़े बवंडर की मूक दर्शक बनने ही वाली थी. राम मंदिर आंदोलन के दूसरे चैप्टर में जानते हैं कि 90 के दशक के बाद के आंदोलन में क्या-क्या घटा जिसने राम भक्तों को 22 जनवरी का वो दिन जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराई जा रही है.

अयोध्या में आने वाले वक्त की पटकथा सैकड़ों किलोमीटर दूर से लिखी जा रही थी. प्रयागराज जो उस वक्त इलाहाबाद नाम से जाना जाता था. वहां धर्मसंसद के दौरान 27 और 28 जनवरी को वीएचपी की बैठक में फैसला हुआ कि मंदिर निर्माण के लिए 14 फरवरी से अयोध्या में कारसेवा की जाएगी. इससे केंद्र में बैठी वीपी सिंह सरकार के हाथ-पांव फूल गए. सरकार का समर्थन कर रही बीजेपी राम मंदिर निर्माण को राजनीतिक मुद्दा बना रही थी

कारसेवा की अपील पर बीजेपी का रुख क्या

राजनीति. दबाव और कई दांवपेच के बीच बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने एलान कर दिया कि वो सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकालेंगे. 12 सितंबर को आडवाणी ने ऐलान किया. और 25 सितंबर ये उनकी रथयात्रा शुरू हो गई. जिसे 30 अक्टूबर को अयोध्या में खत्म होना था. केंद्र की वीपी सिंह सरकार और उसे समर्थन दे रही बीजेपी के बीच अयोध्या के मुद्दे पर खींचतान शुरू हो गई. बीजेपी ने साफ कर दिया कि अगर आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गई तो वो केंद्र से समर्थन खींच लेगी. 23 अक्टूबर को ऐसा हुआ भी. बिहार के समस्तीपुर से आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. रथयात्रा रोक दी गई. रथ जब्त कर लिया गया. बीजेपी ने केंद्र से समर्थन वापस ले लिया. और वीपी सिंह सरकार अल्पमत में आ गई

30 अक्टूबर को जिस दिन रथ यात्रा को खत्म होना था. अयोध्या में लाखों कारसेवक पहुंचने लगे. कारसेवक निहत्थे थे. लेकिन वो पूरे जोश में थे. कई नेताओं को अयोध्या पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन कारसेवकों का झुंड अब शहर में था. सिर्फ वीएचपी के अशोक सिंघल ही थे जो किसी तरह अयोध्या पहुंचने में कामयाब हो पाए. विनय कटियार और मोरोपंत पिंगले पहले से ही यहां मौजूद थे. हल्का फुल्का लाठीचार्ज तनाव को और बढ़ा रहा था. आखिरकार हालात हाथ से निकलने लगे.

कुछ कारसेवकों ने विवादित ढांचे पर तोड़फोड़ शुरू कर दी. एक जत्थे ने ढांचे के पिछले हिस्से से नींव खोदनी शुरू कर दी. पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए गोली चलाई. जिसमें 11 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद हालात बेकाबू होते चले गए. लेकिन बड़ा स्थान नाम की जगह पर अर्धसैनिक बलों ने गोली चलाने से इनकार कर दिया. अयोध्या में तीन जगह गोली चलीं. विवादित ढांचे के गुंबदों पर चढ़े और नींव की खुदाई करने वाले कारसेवकों पर. मानव भवन तिराहे पर और सरयू पुल पर. शाम तक किसी तरह हालात काबू में आए और पुलिस ने फ्लैग मार्च किया. हालांकि सरकार ये कहती रही कि कारसेवा नहीं हुई. लेकिन देश भर में इसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. जिसमें 35 लोग की मौत हुई. 30 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा.

गोली चलने से पूरे आंदोलन पर क्या असर

2 नवंबर को तनाव चरम पर था. एक बार फिर कारसेवक आगे बढ़ने लगे तो प्रशासन ने अंधाधुंध गोली चलाईं. कितने लोगों कों गोली लगी. कितने मारे गए. इसका सही हिसाब लगाना मुश्किल था. प्रशासन ने 40 लोगों को मृत बताया. लेकिन कितने घायल थे इसकी जानकारी किसी के पास नहीं थी. बेहिसाब लोगों के खून से अयोध्या रंग गई. दो भाइयों. राजकुमार कोठारी और शरद कोठारी भी इसमें मारे गए. इन्हीं दोनों भाइयों ने 30 अक्टूबर को विवादित इमारत के गुंबद पर भगवा ध्वज फहराया था.

7 नवंबर को बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर कांग्रेस के समर्थन से पीएम बने. 1991 में हुए आम चुनाव के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या हो गई. केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई. पीएम नरसिम्हा राव बने. यूपी विधानसभा चुनाव बीजेपी ने जीता. कल्याण सिंह सीएम बने. कल्याण सिंह ने विवादित परिसर के पास 2.77 एकड़ की जमीन अधिग्रहण करने का फैसला किया. साथ ही ये भरोसा भी दिलाया कि सरकार विवादित ढांचे की हिफाजत करेगी.

अब अयोध्या की जमीन आक्रामक राजनीति और कारसेवा दोनों को ही देख रही थी. पूरे देश की राजनीति जैसे अयोध्या पर केंद्रित हो गई थी. दिल्ली की सियासत रोज़ करवट बदल रही थी. और अयोध्या जैसे सहमे हुए इस पर नज़र रख रही थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट अयोध्या में जमीन अधिग्रहण के मामले को सुन रहा था. 30 नवंबर 1992 को उसे अपना फैसला सुनाना था. बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या जाने का एलान कर दिया. अदालत ने फैसले की तारीख टाल कर 5 दिसंबर कर दी. उसे एक बार फिर टाल कर 11 दिसंबर कर दिया गया. 5 दिसंबर को लखनऊ में बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने बड़ी रैली की.

अगले ही दिन सुबह से ही अयोध्या में लाखों श्रद्धालु और कारसेवक पहुंचने लगे. 6 दिसंबर को गीता जयंती होती है. माना जाता है महाभारत का युद्ध इसी दिन शुरू हुआ था. दिन में 12 बजे के करीब एक युवा कारसेवक ने ढांचे पर चढ़ना शुरू किया. और फिर कई कारसेवक ढांचे की तरफ भागे. और उस पर चढ़ गए. सवा 12 बजे ढांचा तोड़ना शुरू कर दिया गया

ढांचा तोड़ना शुरू हुआ तो कहां थी पुलिस

सरकार दो लाख लोगों पर फायरिंग करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी. पास ही मंच पर बीजेपी और विश्वहिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता मौजूद थे. और देखते ही देखते विवादित ढांचा गिर गया. वो ढांचा जिसे बाबर के नाम से जाना गया. जिस पर सैंकड़ों साल तक टकराव और मुकदमें चलते रहे. उसे धूल में मिला दिया गया.

ढांचा गिरने के बाद अयोध्या के बाहर राजनीति का तूफान आ गया. लेकिन यहां एक वीराना सा छा गया. एक तूफान के बाद की शांति जैसा. ध्वंस से उठी धूल में सब दब गया था. सैकड़ों साल का इतिहास. संघर्ष. अदालत. तारीखें. भाषण और विवाद. सब ज़मींदोज़ हो गया था. इसके आगे की दास्तान अदालती कार्यवाहियों में दर्ज होती रही.

साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित परिसर के तीन बराबर टुकड़े करने का आदेश दिया. जिसमें एक हिस्सा रामलला को दिया जाना था. जिसका प्रतिनिधित्व हिंदू महासभा कर रही थी. एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और एक हिस्सा सुन्नी वक़्फ बोर्ड को दिए जाने का फैसला हुआ. लेकिन 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी.

2019 में SC का ऐतिहासिक फैसला

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट को ज़मीन देने का फैसला किया. साथ ही कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का आदेश भी दिया. अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन कर तैयार है. वो मंदिर जो राम राज्य. न्याय, भारत के भव्य इतिहास और मान्यताओं का प्रतीक होगा. मस्जिद धन्नीपुर में बनेगी जो अयोध्या से करीब 25 किलोमीटर दूर है.

वेदों से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय करने वाली अयोध्या युद्ध में तो रही. लेकिन युद्ध का हिस्सा नहीं बनी. हर बार ये न्याय की जीत की साक्षी रही है. अयोध्या ने राम राज देखा. विक्रमादित्य. मुगल. नवाब. अंग्रेज. और आज़ाद भारत सब देखा. इतिहास की खरोंचों से ये दैविक भूमि दूर रही. शायद इसकी वजह इसका इतिहास रहा. रघुकुल की इस नगरी के राम राज्य ने आधुनिक राजनीति की सरकारें बनाई-बिगाड़ीं. राम आज़ादी ही नहीं. भारत के इतिहास से पहले से. मानस में बसे हैं. और अयोध्या. इसी मानस की चश्मदीद रही है.

अयोध्या. जो राम राज्य का केंद्र रही. उसकी कहानी भी उतनी ही रोचक है. जितने इसमें बसने वाले पात्रों की. इस नगरी ने वो सब कुछ देखा जो किसी महाकथा में होता है. समृद्धि. विनाश. संघर्ष और सुखद अंत. अयोध्या नई यात्रा पर निकल पड़ी है. और इस महाकथा के एक साक्षी हम भी हैं.

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