इतना बड़ा देश, लेकिन ज्यादातर गुजरात में क्यों पकड़ी जा रही ड्रग्स?
आप दो दिनों से एक खबर सुन रहे हैं. खबर ये कि गुजरात में जो भारत की समुद्री सीमा है, वहां पर ड्रग्स पकड़ी गई है. एकाध किलो-कट्टा नहीं, कुल 3300 किलो चरस. इसकी जानकारी खुद भारतीय नौसेना के प्रवक्ता ने ट्विटर हैंडल पर दी.
कहा कि इस ऑपरेशन में नेवी के साथ-साथ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) और गुजरात का एंटी-टेररिज़म स्क्वाड (ATS) शामिल था. कहा गया कि ये हाल फिलहाल में पकड़ी गई ड्रग्स की सबसे बड़ी खेप है. इस ऑपरेशन में ईरान के पांच नागरिकों को भी अरेस्ट कर लिया गया. फ़ोटो भी जारी कर दी गई और तमाम बयान भी सामने आ गए.
ये तो वह जानकारी हो गई, जो कई जगह आ गई. लेकिन यहां पर सामान्य ज्ञान का एक तथ्य आपको बताते हैं. भारत के समुद्र तट की लंबाई लगभग 7517 किलोमीटर है. इसमें बंगाल की खाड़ी में मौजूद अंडमान निकोबार द्वीप समूह और अरब सागर में मौजूद लक्षद्वीप समूह की तटीय लंबाई भी शामिल है. इन द्वीप समूहों को हटाकर नाप करें तो ये लंबाई 6100 किलोमीटर हो जाती है. इस पूरी लंबाई में बहुत सारे तट और बहुत सारे बंदरगाह होंगे. लेकिन आपके मन में कभी ये सवाल आया कि क्यों लगातार गुजरात के तट पर ही ड्रग्स पकड़े जाने की खबरें आ रही हैं. और खबरों का ये सिलसिला ड्रग्स तक ही नहीं, आतंकी घटनाओं तक जाता है.
कब-कब पकड़ी गईं ड्रग्स की बड़ी खेप?
-सितंबर 2021- कच्छ में मौजूद मुन्द्रा पोर्ट पर 2988 किलो हेरोइन पकड़ी गई. जिसकी अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कीमत 21 हजार करोड़ आंकी गई.
-इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक साल 2022 में गुजरात में कुल 31 हजार किलो ड्रग्स पकड़ी गई थी.
-फरवरी 2024 में गुजरात सरकार के गृह राज्य मंत्री हर्ष सांघवी ने विधानसभा में जवाब दिया कि बीते दो सालों में गुजरात में 5,956 करोड़ रुपये की ड्रग्स पकड़ी गई है.
इन सारे ऑपरेशन और सीज़र में NCB, ATS, कोस्ट गार्ड और नेवी शामिल हुए. इनमें पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान, नाइजीरिया के साथ-साथ भारतीय लोगों को अरेस्ट किया गया.
साल 1993 मुंबई सीरियल बम धमाकों में इस्तेमाल हुए हथियार और प्रतिबंधित सामान सबसे पहले पोरबंदर के गोसाबरा कोस्ट पर उतरे थे. 26/11 के मुंबई हमले के हमलावर जिस नाव एमवी कुबेर से मुंबई पहुंचे थे, उसको उन्होंने गुजरात के तट के पास से अगवा किया था.
ये कुछ ही जानकारियां हैं. ऐसी कई खबरें आपको बहुतायत से इंटरनेट पर मिल जाएंगी. ऐसे में मन में सवाल उठना लाजिम है कि महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, ओडिशा या बंगाल के तटों से लगातार क्यों नहीं आती है? या समुद्र के बीच मौजूद द्वीप समूहों से क्यों नहीं आती हैं? हम इस खबर में इसी जिज्ञासा का जवाब निकालेंगे और जवाब ढूंढने की कड़ी में कुछ तथ्य जानेंगे.
तीन देशों का अहम रोल
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान-इन तीन देशों के बड़े हिस्सों में ड्रग्स की पैदावार होती है और ये हिस्से नक्शे पर मिलकर एक चांदनुमा आकृति तैयार करते हैं. जिसे ड्रग्स माफियाओं की भाषा में ‘गोल्डन क्रेसन्ट’ यानी ‘सुनहरा अर्धचंद्र’ कहा जाता है. खबरों के मुताबिक ये क्रेसन्ट दुनिया भर का 80 प्रतिशत हेरोइन पैदा करता है. क्रेसन्ट के पहले ये तमगा गोल्डन ट्राइऐंगल के पास था. जो भारत के पूर्वोत्तर में मौजूद म्यांमार, थाईलैंड और लाओस मिलकर बनाते हैं. तो ये जो क्रेसन्ट है. वह दुनिया भर के लिए हेरोइन बनाता है. हेरोइन बना तो लिया अब उसे दुनिया भर में भेजना होता है. तो उसके लिए स्मगलिंग की जाती है.
ये स्मगलिंग कैसे होती है. इस सवाल पर वापस आएंगे. पहले गुजरात के तट को समझ लेते हैं. अभी हमने आपको बता ही दिया कि देश की तटीय सीमा कितनी लंबी है. इसमें से गुजरात के हिस्से 1640 किलोमीटर लंबी तटरेखा आती है. इंडिया टुडे की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस तट पर 144 छोटे-बड़े द्वीप हैं. 22 समुद्री पुलिस स्टेशन हैं और 3 इंटरसेप्टर नाव हैं. चूंकि रिपोर्ट तीन साल पुरानी है तो मुमकिन है कि इस संख्या में बदलाव भी हुए होंगे.
अब आप गुजरात के तट से समुद्र में आगे बढ़ेंगे, तो कुछ ही देर में पाकिस्तान की समुद्री सीमा लग जाती है. इस इलाके की रखवाली कोस्ट गार्ड, बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स और भारतीय नौसेना के अधिकारी मिलकर करते हैं. वहीं इस सीमा पर एनसीबी और गुजरात एटीएस के अधिकारी भी एक्टिव रहते हैं. जानकार बताते हैं कि गोल्डन क्रेसन्ट में जो ड्रग्स पैदा किया जाता है, उसके ट्रांसपोर्ट का जिम्मा पाकिस्तान और ईरान संभालते हैं. पाकिस्तान का कराची पोर्ट और ईरान का चाबहार पोर्ट इसमें प्रमुख भूमिका निभाते हैं और आप इन इलाकों से जब भारत की ओर समुद्र के रास्ते बढ़ेंगे तो सबसे पहले गुजरात ही आपके रास्ते आएगा. इस वजह से ड्रग्स की खेप ट्रांसपोर्ट के लिए गुजरात से होकर ही अपने ठिकानों की यात्रा करती है.
अधिकारी ये भी बताते हैं कि गोल्डन क्रेसन्ट से जो ड्रग्स की खेप गुजरात की ओर आती है, जरूरी नहीं है कि उसका भारत में इस्तेमाल भी होता हो. अगर भारत में इस्तेमाल नहीं होता तो बीच समंदर में ड्रग्स की खेप को दूसरी कश्ती में ट्रांसफर कर दिया जाता है. और अगर भारत में इस्तेमाल होना होता है, तो यहां मौजूद ड्रग हैंडलर उसको देश की सीमा के भीतर पुश करने की कोशिश करते हैं. जब इन्हीं मौकों पर तस्करों और ड्रग्स माफियाओं से चूक हो जाती है, तो वे सुरक्षा एजेंसियों के हत्थे चढ़ जाते हैं.
यानी ये बात तो साफ है कि पाकिस्तान से भौगोलिक नजदीकी होने के कारण ड्रग तस्कर गुजरात का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन सवाल है कि वह गुजरात के किस हिस्से का इस्तेमाल करते हैं? इसका जवाब जानने के लिए आपको गुजरात का भूगोल थोड़ा समझना पड़ेगा.
आप जब आप गुजरात का नक्शा ध्यान से देखेंगे तो समुद्र में राज्य के दो हिस्से निकले दिखते हैं. ऊपर वाले हिस्से को कच्छ कहते हैं और नीचे वाले हिस्से को सौराष्ट्र. इन दोनों के बीच जो संकरा-सा समुद्र का हिस्सा दिखता है उसे कहते हैं कच्छ की खाड़ी. पत्रकार बताते हैं कि ज्यादातर ड्रग्स की खेप इस खाड़ी और इसके नीचे मौजूद सौराष्ट्र के इलाके में मिलती हैं.
गुजरात का मैप (mapsofindia.com)
इंडिया टुडे की पत्रकार जुमाना शाह अपने एक आर्टिकल में लिखती हैं कि सौराष्ट्र का जो हिस्सा समुद्र से लगता है, उस इलाके पर तस्करों की निगाह ज्यादा बनी रहती है. ऐसा क्यों? ये जवाब जानने के लिए हमने जुमाना शाह से बात की. उन्होंने कहा,
“ड्रग्स की आमद कच्छ के हिस्से में भी होती है. लेकिन कच्छ के हिस्से में बहुत सारे बंदरगाह हैं और इन बंदरगाहों की वजह से सुरक्षा एजेंसियों की गश्त ज्यादा रहती है. इसलिए तस्कर वहां पर तुलनात्मक रूप से कम एक्टिव रहते हैं. लेकिन जब आप सौराष्ट्र के इलाके में बढ़ेंगे तो आपको बंदरगाह कम मिलेंगे. लिहाजा समुद्री सरहद तुलनात्मक रूप से पोरस मिलेगी और तस्कर इसका ही फायदा उठाते हैं.”
गुजरात में ड्रग्स और आतंकवाद को कवर करने वाले पत्रकार बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि हर बार ड्रग्स को समुद्र तट पर ही पकड़ा जाता रहा हो. कई बार ड्रग्स को बीच दरिया में ही पकड़ लिया जाता है और इसमें उनकी मदद स्थानीय मछुआरे और गांव वाले करते हैं. कई बार कोस्ट गार्ड और नारकोटिक्स ब्यूरो की गश्त देखकर नशे के तस्कर अपना ड्रग्स का कन्साइनमेंट समुद्र में ही गिरा देते हैं.
बकौल जुमाना शाह,
“साल 2023 में कई बार ऐसा हुआ कि एजेंसियों को खाड़ी के इलाके में ड्रग्स के पैकेट पानी में बहते हुए मिले. पहले तो ये भ्रम हुआ कि क्या ये तस्करी का नया तरीका निकाला गया है? लेकिन फिर समझ आया कि दरअसल तस्करों को पहले ही ये सूचना मिल जा रही थी कि कोस्ट गार्ड की टीम उनकी कश्ती पर छापा मार सकती है. इसलिए वह पहले ही अपना सारा माल पानी में फेंक दे रहे थे.”
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, गुजरात में ड्रग्स इसलिए पकड़ी जा रही है क्योंकि यहां की समुद्री सीमाओं पर इन्टरसेप्ट ज्यादा किया जा रहा है और बाकी इलाके में पहुंचने के पहले ही ड्रग्स की खेप पकड़ ली जा रही है.
जमीन के रास्ते से भी होती है सप्लाई
ये तो देश की समुद्री सीमा की बात हो गई. लेकिन देश में ड्रग्स जमीन के रास्ते भी पहुंचाई जाती है. जानकार बताते हैं कि पंजाब, राजस्थान और कश्मीर की जो सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं, वहां अक्सर ड्रग्स की खेप सीमा के बाड़े को काटकर पहुंचाई जाती है. साथ ही कई इलाकों में सुरंगें भी बनाई गई हैं, जिनका इस्तेमाल तस्कर करते आए हैं. इसके अलावा हाल फिलहाल के सालों में तस्करों ने ड्रोन का भी इस्तेमाल शुरू किया है. खबरों के मुताबिक, तस्कर ड्रोन से हथियार और ड्रग्स के पैकेट गिराते थे. इस काम में उन्हें हरदीप सिंह निज्जर, गुरपतवंत सिंह पन्नू और अर्शदीप डल्ला जैसे खालिस्तान समर्थक उग्रवादी मदद पहुंचाते थे.
इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में भी ड्रग्स की आमद आसपास के देशों से आम है. हमने पहले ही आपको ड्रग्स के एक दूसरे कार्टेल गोल्डन ट्राइऐंगल के बारे में बताया. जिसे म्यांमार, लाओस और थाईलैंड मिलकर चलाते हैं. अब ये cartel पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल के जरिए देश में ड्रग्स की खेप पुश करने की कोशिश करते रहते हैं. वहीं बांग्लादेश में मौजूद तस्कर भी पश्चिम बंगाल और मेघालय के जरिए छिटपुट तरीकों से भारत में ड्रग्स की एंट्री कराने की कोशिश करते रहते हैं. सुरक्षा एजेंसियां समय-समय पर नशे की इन खेपों को पकड़ती रहती हैं.
यानी सौ की सीधी एक बात. ड्रग्स एक समस्या है. लेकिन इलाज भी निकाला जा रहा है. जब बरामदगी ज्यादा हो रही है. तो बरामदगी और छापेमारी वाला इलाका फिर से चर्चा में चला आता है.