Sumit Antil: जिंदगी ने पिता और सपना दोनों छीन लिए, मां की हिम्मत टूटी तो कहा सब्र कर, बड़े-बड़े लोगों में अब इस खिलाड़ी का भी नाम
सुमित अंतिल से हिंदुस्तान जैसा उम्मीद कर रहा था, देश की उस उम्मीद पर वो पूरी तरह से खरे उतरे. देश में 3 सितंबर की सुबह को वो सुनहरी सुबह में तब्दील करने में कामयाब रहे. उन्होंने पेरिस में ना सिर्फ गोल्ड मेडल जीता बल्कि एक नए पैरालंपिक रिकॉर्ड के साथ ये कमाल किया. F64 मेंस जैवलिन इवेंट में सुमित अंतिल अपने गोल्ड मेडल को डिफेंड करने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने टोक्यो के बाद अब पेरिस पैरालंपिक में वो भारत के लिए गोल्ड जीता है. हालांकि, पैरालंपिक खेलों में भाले से गोल्डन दूरी नापने वाले सुमित अंतिल के लिए जिंदगी में सबकुछ इतना आसान नहीं रहा है, जितना दिखता है. ऐसा क्यों, इसके लिए जरूरी है फ्लैशबैक में जाकर उनकी जिंदगी के बारे में जानना.
7 साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठा
सुमित अंतिल का सपना अपने पिता राम कुमार अंतिल की तरह बनने का था. वो भी अपने पिता की तरह इंडियन आर्मी का हिस्सा बनना चाहते थे. इंडियन एयरफोर्स में कार्यरत सुमित अंतिल के पिता का निधन एक लंबी बीमारी के चलते तभी हो गया था, जब वो सिर्फ 7 साल के थे. कच्ची उम्र में सिर से पिता का साया उठा तो सुमित अंतिल और उनके परिवार के लिए जिंदगी मानों पहाड़ सी हो गई थी. ऐसे में मां ने हिम्मत से काम लिया. उन्होंने सुमित अंतिल को खेलों में आगे बढ़ने का हौसला दिया.
दर्दनाक हादसे के बाद पैर कटा, सपना टूटा
मां की हौसलाआफजाई के बाद अपनी लंबी-चौड़ी कद काठी को देखते हुए सुमित अंतिल ने रेसलिंग में करियर बनाने का फैसला किया. उन्होंने रेसलिंग को करियर बनाते हुए इंडियन आर्मी जॉइन करने को ठाना. लेकिन, वो कहते हैं ना कि हर बार वैसा नहीं होता जैसा हम सोचते हैं. सुमित अंतिल के केस में भी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
बात तब की है जब सुमित सिर्फ 16 साल के थे और वो 12वीं में पढ़ते थे. ट्यूशन से घर आने के दौरान उनकी बाइक को सीमेंट से लदी एक ट्रैक्टर ट्रॉली ने टक्कर मार दी. इस दर्दनाक हादसे में सुमित को अपना दायां पैर गंवाना पड़ा, जिसके साथ ही उनका रेसलर बनने का सपना भी टूट गया. इस हादसे ने उनकी मां को झकझोर कर रख दिया. उस वक्त सुमित अंतिल ने अपनी मां से कहा कि सब्र करो, सब ठीक हो जाएगा.
2017 में शुरू हुआ पैरालंपिक चैंपियन बनने का सफर
2015 में ये घटना घटी और 2017 में अपने ही गांव के एक पारा एथलीट रह चुके राजकुमार के कहने पर सुमित ने पारा स्पोर्ट्स में आने का फैसला किया. और, यहीं से शुरू हुआ जैवलिन थ्रो में सुमित अंतिल का पैरालंपिक चैंपियन बनने का सफर. उन्होंने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में कोच नवल सिंह की देख-रेख में ट्रेनिंग शुरू की. शुरुआत में तो उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने अंत में सब पर काबू पा लिया.
2019 से कामयाबी को पंख लगने हुए शुरू
2019 में फिर वो लम्हा आया जब वर्ल्ड जैवलिन के सीने पर सुमित अंतिल को अपनी छाप छोड़ने का बड़ा मौका मिला. उन्होंने उस साल हुए इटली में हुए वर्ल्ड पारा एथलीट चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता. इसी साल दुबई में हुए वर्ल्ड पारा एथलीट चैंपियनशिप में भी उन्होंने भारत की चांदी कराई.
लेकिन, सुमित के लिए जिंदगी तब एक नया मोड़ लेती दिखी जब उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में 68.55 मीटर के एक नए रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता था. साल 2022 में उन्होंने 73.29 मीटर का फिर से एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, जो अब भी बरकरार है. इस हैरतअंगेज थ्रो के साथ उन्होंने एशियन पारा गेम्स का गोल्ड मेडल अपने नाम किया था.
देश के किसी बड़े खिलाड़ी से कम नहीं सुमित की कामयाबी
भारत में जैवलिन का मतलब वैसे तो नीरज चोपड़ा से है. लेकिन, सच ये है कि अब सुमित अंतिल भी इसके एक बड़े स्टार बनकर उभरे हैं. वो अब किसी पहचान के मोहताज नहीं है. जिस तरह से टोक्यो के बाद पेरिस में और अधिक दूरी को नापते हुए एक नए पैरालंपिक रिकॉर्ड के साथ देश को सोना दिलाया है, उसके बाद उनका नाम भारत के नामचीन खिलाड़ियों के साथ लिया जाएगा, इसमें कोई दो राय नहीं है.
देश के लिए वो अब उतने ही अहम हैं, जितने की कामयाबी का झंडा बुलंद करने वाले दूसरे बड़े खिलाड़ी रहे हैं. हरियाणा के सोनीपत के खेवरा गांव से शुरू हुए सुमित अंतिल के सफर की दास्तान हर किसी के लिए जो बाधाओं को पार कर आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए एक मिसाल है.