Supreme Court Decision: 22 साल से नगर पालिका के रास्ते के कब्जे में विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
मामला बावल नगर पालिका क्षेत्र का है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सिविल जज अमनदीप बावल ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत सालों से चले आ रहे विवाद का निपटारा कर दिया। अब परिवार को कब्जा दे दिया गया है।
निचली अदालत में खिलाफ था दावा, मगर हार नहीं मानी
मामले के तथ्यों के अनुसार साल 1997 में नगर पालिका बावल ने मोहल्ला जटवाड़ा निवासी भज्जू राम की जमीन पर रास्ता बना दिया था। यह रास्ता भज्जू राम ने पैमाइश करवा कर अपनी जमीन होना बताया था.
जिसके बाद अदालती प्रक्रिया शुरू करते हुए भज्जू राम ने 9 अप्रैल 1997 को दीवानी अदालत में अपना वाद दायर किया था। इस दावे में भज्जू राम ने नगर पालिका द्वारा गलत तरीके से उसकी व्यक्तिगत जमीन हड़प करने के आरोप लगाते हुए जमीन पर रास्ता बनाने की कार्रवाई को नाजायज करार देने की मांग की थी।
निचली अदालत में यह दावा जब भज्जू राम के खिलाफ हो गया तो भज्जू राम ने 20 जनवरी 2004 को इस आदेश की अपील अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में दायर की थी। इस अपील का निर्णय करते हुए तत्कालीन सत्र न्यायाधीश आर सी बंसल ने फैसला भज्जू राम के हक में 17 अगस्त 2006 को सुना दिया।
वारिसों ने जारी रखी अदालती लड़ाई
पूरे केस की कार्रवाई के दौरान ही भज्जू राम की मौत हो चुकी थी, लेकिन उनके वारिसों ने अदालती लड़ाई जारी रखी। सुप्रीम कोर्ट में नपा की अपील निरस्त होने के बाद कार्रवाई करते हुए बावल न्यायधीश अमनदीप ने भज्जू राम के लड़के मुन्नालाल और बाबूलाल को नगर पालिका का रास्ता का कब्जा हटा कर जमीन का कब्जा दिलाने के आदेश दिए।
कब्जा कार्रवाई एसीजे सीनियर डिविजन जज अमनदीप के रीडर सुधीर चौहान ने मौका पर जाकर गिरदावर व पटवारी से पैमाइश करवाकर की गई और मौके पर ही भज्जू राम के परिवारजनों को कब्जा दिला दिया गया।
नगरपालिका ने हाई कोर्ट में अपील की दायर
फैसले के विरोध में नगर पालिका बावल ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील दायर की और यह अपील 7 नवंबर 2006 को खारिज हो गई। इस दौरान भज्जू राम ने भी जमीन का कब्जा लेने के लिए अपील के आदेश के अनुसार 7 जून 2008 को इजरा दायर की.
लेकिन नगर पालिका बावल ने हाई कोर्ट के आदेश में अपील खारिज हो जाने के बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर निचली अदालत की इजरा कार्रवाई पर रोक लगा दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 जून 2016 को नगर पालिका की अपील को निरस्त घोषित कर दिया।